क्वीन : फिल्म समीक्षा /समय ताम्रकर

रानी (कंगना रनोट) के मेहंदी कार्यक्रम के सीन से जब फिल्म शुरू होती है तो लगता है कि एक ओर लाउड पंजाबी वेडिंग पर आधारित फिल्म देखने को मिलेगी, लेकिन कुछ मिनटों में यह गलतफहमी दूर हो जाती है। रानी को उसका होने वाला पति विजय (राजकुमार राव) शादी के दो दिन पहले बताता है कि स्टेटस में समानता न होने के कारण वह यह शादी नहीं कर सकता। लंदन से लौटने के बाद उसे रानी पिछड़ी हुई लगती है। 

आम लड़की रानी जिसने सड़क भी अकेले पार नहीं की, हनीमून पर अकेले जाने का तय करती है। हनीमून को लेकर उसने कई सपने देखे थे। वह अकेली पेरिस के लिए निकल पड़ती है और वहां से एम्सर्टडम। इस बाहरी यात्रा के साथ वह भीतरी यात्रा भी करती है और उसका वो पहलू सामने आता है जिससे उसका परिचय भी पहली बार होता है। एक घबराने और नर्वस रहने वाली लड़की से आत्मविश्वासी लड़की बनने की इस यात्रा के दर्शक साक्षी बनते हैं। 

में इस तरह की फिल्म और वह भी महिला किरदार को लेकर बनाने का साहस फिल्ममेकर नहीं कर पाते हैं और इस मायने में विकास बहल निर्देशित फिल्म 'क्वीन' अनोखी है। 'क्वीन' कई बार 'इंग्लिश-विंग्लिश' की याद दिलाती है, हालांकि दोनों का विषय और ट्रीटमेंट जुदा है।

की कहानी में बहुत ज्यादा ड्रामा नहीं है और न ही निर्देशक का प्रस्तुतिकरण भावुकता से भरा है। न रानी को हालात की मारी दिखाते हुए आंसू बहाउ दृश्य रखे गए हैं और न ही उसमें हो रहे बदलावों को घुमाव भरे ड्रामे के जरिये दिखाया गया है। कहानी के नाम पर रानी की यात्रा है और छोटे-छोटे प्रसंगों के जरिये उसमें हो रहे बदलाव को निर्देशक ने दिखाया है। 

फिल्म की स्क्रिप्ट परवेज शेख, चैताली परमार और विकास बहल ने मिलकर लिखी है और उन्होंने कई छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दिया है। कई दृश्य ऐसे हैं जो खामोशी से बहुत कुछ कह जाते हैं। भारत में लड़कियों को अति-सुरक्षित माहौल में रखा जाता है, जिससे उनकी स्वतंत्रता तक प्रभावित हो जाती है और व्यक्तित्व निखर नहीं पाता। रानी जहां भी जाती है उसके साथ उसका बहुत छोटा भाई भी साथ में जाता है जो वक्त पड़ने पर शायद ही उसकी रक्षा कर पाए, लेकिन यह उस मानसिकता को दर्शाता है कि लड़की की सुरक्षा के लिए एक मर्द का साथ होना जरूरी है भले ही वह बच्चा हो। 'क्वीन' में रानी के जरिये दिखाया गया है कि जब वह अकेले सफर करती है, होटल में रूकती है, चोर से भिड़ती है, कार ड्राइव करती है तो उसमें आत्मविश्वास जागता है। सुरक्षित माहौल न मिलने पर उसमें खुद करने का जज्बा जागता है। 

एम्सर्टडम पहुंचने पर रानी को तीन लड़कों के साथ रूम शेयर करना पड़ता है जिसमें से एक जापानी, एक फ्रेंच और एक रशियन है। इन तीनों के बीच एक भारतीय के जरिये दिखाया गया है कि सांस्कृतिक धरातल पर हम कितने ही अलग हो, भावनाओं के मामले में एक जैसे हैं। बाथरूम में छिपकली नजर आने पर सभी डर जाते हैं। सुनामी में अपने माता-पिता को खोने का दु:ख जापानी को हमेशा सालता रहता है और वह तब बेहतर महसूस करता है जब रानी अपने माता-पिता से बात करती है।

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इन गंभीर बातों को हल्के-फुल्के प्रस्तुतिकरण के द्वारा पेश किया गया है। बीच-बीच में मुस्कान लाने वाले प्रसंग आते रहते हैं जो लगातार मनोरंजन करते रहते हैं। रानी की दोस्त विजय लक्ष्मी (लिसा हेडन) और रानी के परिवार के बीच बातचीत वाले सीन हास्य से भरपूर हैं। फिल्म का अंत भी बेहतर तरीके से किया गया है। 

हालांकि फिल्म कई बार लंबी प्रतीत होती है और कुछ दृश्यों को अनावश्यक रूप से खींचा भी गया है। रानी के मंगेतर का हृदय परिवर्तन अचानक हो जाना अखरता भी है, लेकिन फिल्म की खूबियों के आगे ये छोटी-मोटी कमजोरियां गौण हैं। अमित त्रिवेदी का संगीत फिल्म का प्लस पाइंट है और निर्देशक ने गानों का उपयोग खूबसूरती से किया है। कई बार फिल्म बोझिल होती है तब अमित का संगीत फिल्म को संभाल लेता है और ऊर्जा से भर देता है। 'लंदन ठुमकदा', 'बदरा बहार', 'ओ गुजरिया' जैसे गीत बेहतरीन बन पड़े हैं। 

गैंगस्टर, लाइफ इन मेट्रो, फैशन, तनु वेड्स मनु जैसी फिल्मों से साबित कर चुकी हैं कि वे बेहद प्रतिभाशाली एक्ट्रेस हैं और यह पूरी तरह से निर्दे‍शक पर निर्भर करता है कि उनका इस्तेमाल निर्देशक कैसे करता है। कई फिल्मों में कंगना ने बुरा अभिनय भी किया है, लेकिन कसूरवार निर्देशक को माना जा सकता है। 'क्वीन' में कंगना ने कमाल का अभिनय किया है। एक नर्वस, घबराई हुई लड़की जिसकी शादी दो दिन पहले टूट जाती है से लेकर आत्मविश्वासी लड़की के रूप में बदलने के सारे भाव उनके चेहरे पर नजर आते हैं। निर्देशक विकास बहल ने कंगना की उच्चारण संबंधी कमजोरियों को बड़ी सफाई से उनकी खूबी बना दिया है। 

लिसा हेडन को इतना बेहतर रोल कभी नहीं मिला। रोल के मुताबिक उन्होंने सेक्स अपील भी परोसी और अच्छा अभिनय भी किया। राजकुमार राव ने अभिनय की एक खास शैली अपना रखी है और वे अब एक जैसे लगते हैं। वे काबिल अभिनेता हैं और एक जैसे अभिनय से उन्हें बचना चाहिए। फिल्म की सपोर्टिंग कास्ट का काम भी उम्दा है। 

जो अच्छी फिल्म देखना चाहते हैं उन्हें 'क्वीन' जरूर देखना चाहिए। 

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बैनर : वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स, फैंटम प्रोडक्शन्स 
निर्माता : अनुराग कश्यप, विक्रमादित्य मोटवाने
निर्देशक : विकास बहल 
संगीत : अमित त्रिवेदी
कलाकार : कंगना रनोट, राजकुमार राव, लिसा हेडन, बोक्यो मिश, जेफरी हो, जोसेफ गिटोब
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 26 मिनट 
रेटिंग : 3.5/5

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