{हिंदी-विमर्श:8605} भारतीय मीडिया के डिजिटल प्रयोगों का आधार तैयार है ....बालेन्दु शर्मा दाधीच


ऑनलाइन माध्यमों पर विज्ञापनों की एक बेहद लोकप्रिय पद्धति है जिसे कहते हैं- Pay Per Click। इसके तहत विज्ञापनदाता को विज्ञापन के प्रदर्शन के लिए पैसा नहीं देना होता बल्कि उसे तभी पैसा देना है जब किसी यूज़र ने उसके विज्ञापन को क्लिक किया। यानी वह क्लिक करने के बाद विज्ञापनदाता की वेबसाइट या उसके उत्पाद के पेज तक पहुँचा। टेलीविजन या अखबार में ऐसी व्यवस्था कहाँ हैआप अनुमान लगा सकते हैं कि ऑनलाइन मीडिया की विज्ञापन प्रणाली विज्ञापनदाताओं के लिए ज्यादा लाभप्रद है। इतना ही नहींवह ज्यादा परिणामोन्मुखी भी है क्योंकि जब यूज़र विज्ञापन पर क्लिक कर कंपनी के वेब पेज पर पहुँचता है तो वह वहीं पर उत्पाद के लिए ऑर्डर भी कर सकता है। दर्शक के खरीददार के रूप में कनवर्जन की दर यहाँ ज्यादा है। इसलिए अनायास नहीं है कि पश्चिमी देशों में विज्ञापनदाताओं के लिए ऑनलाइन मीडिया ज्यादा पसंदीदा विकल्प बन रहा है। देर-सबेर भारत में भी ऐसा हो सकता है।
एक महत्वपूर्ण रुझान जिस पर कम लोगों का ध्यान गया हैवह है समाचारों के क्षेत्र में तकनीकी कंपनियों की बढ़ती उपस्थिति। याद कीजिए शॉन बोमैन और क्रिस विलिस का वह बयान कि खबरों के गेटकीपर के रूप में पारंपरिक मीडिया की भूमिका खतरे में है। आज दुनिया में खबरों तक पहुँचने का सबसे बड़ा माध्यम अगर कोई है तो वह है गूगल न्यूजऔर गूगल कोई मीडिया कंपनी नहीं है बल्कि तकनीकी कंपनी है। यही बात याहू और एमएसएन पर लागू होती है। भारत में रीडिफ और सिफी जैसी कंपनियों के पोर्टल खबरों के सबसे बड़े स्रोतों में माने जाते हैं और ये मूल रूप से मीडिया कंपनियाँ नहीं हैं बल्कि सूचना प्रौद्योगिकी और विज्ञापन कंपनियाँ हैं। नए मीडिया ने खबरों के क्षेत्र को सबके लिए खोल दिया है। इसमें फायदा किसका है और नुकसान किसकाइसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है।

एक महत्वपूर्ण रुझान जिस पर कम लोगों का ध्यान गया हैवह है समाचारों के क्षेत्र में तकनीकी कंपनियों की बढ़ती उपस्थिति। आज दुनिया में खबरों तक पहुँचने का सबसे बड़ा माध्यम अगर कोई है तो वह है गूगल न्यूजऔर गूगल कोईमीडिया कंपनी नहीं है बल्कि तकनीकी कंपनी है। यही बात याहू और एमएसएन पर लागू होती है। भारत में भी रीडिफ इसका उदाहरण है।

डिजिटल माध्यमों की चुनौती टेलीविजन और प्रिंट दोनों के लिए समान है। वह आने वाले दिनों में और गंभीर हो सकती है। लेकिन इसे टालना संभव है। इसका सिर्फ एक तरीका हैखुद को नए दौर के अनुरूप ढालना और इनोवेशन या नएपन की तरफ कदम बढ़ाना। पारंपरिक मीडिया किस तरह नए मीडिया के साथ जुड़ सकता हैइसी में उसकी स्थायी कामयाबी निहित है। न्यूयॉर्क टाइम्सवाशिंगटन पोस्ट और हमारा अपना टाइम्स ऑफ इंडिया समूह इसके अच्छे उदाहरण हैं। डिजिटल मीडिया की चुनौती तब चुनौती नहीं रह जाती जब हम उसके खिलाफ खड़े होने की बजाए उसके साथ खड़े हो जाते हैं और उसकी शक्तियों का अपने विकास के लिए इस्तेमाल करने लगते हैं।
मीडिया के लिए जरूरी है इनोवेशन
जहाँ तक हिंदी मीडिया का सवाल हैहमने अपने डिजिटल इनोवेशन को ई-पेपर उपलब्ध करानेअपने अखबार या टेलीविजन चैनल की वेबसाइट बना लेने और मोबाइल एप पर टीवी प्रोग्राम या खबरों की डिलीवरी करने तक सीमित रखा है। यह एक अच्छी शुरूआत ज़रूर है लेकिन पर्याप्त नहीं है। नए माध्यमों का दोहन करने के लिए नई सोच की ज़रूरत है।
इस दिशा में अच्छा काम करने वालों में मुझे दो-तीन समूह दिखाई देते हैंजैसे टाइम्स ऑफ इंडिया समूह जो कन्टेन्ट के साथ-साथ सर्विसेजई-कॉमर्स और पारंपरिक मीडिया से स्वतंत्र एप्स में सक्रिय है। उसकी कुछ वेबसाइटें और पोर्टल बहुत ही अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैंजैसे- Magicbricks.com, Simplymarry.com और TimesJobs.com उसके कई एप्स भी हैं जिनमें Gaana.com काफी लोकप्रिय है। नेटवर्क 18 समूह जो नई किस्म की वेबसाइटें और सेवाएँ लेकर आया हैइनमें compareindia.comin.com और tech2.com खास तौर पर उल्लेखनीय हैं। हिंदुस्तान टाइम्स समूह ने भी कुछ इनोवेटिव प्रयास किएहालाँकि उसका go4i चल नहीं सका। आज भी उसकी एक वेबसाइट shine.com मौजूद है जो ठीकठाक स्थिति में है।
एक अहम इनोवेशन जो इन दिनों देखने को मिला हैवह है स्टार इंडिया का हॉट स्टार। यह एक वीडियो स्ट्रीमिंग सर्विस है जो मोबाइल एप्लीकेशन और वेबसाइट के जरिए स्टार के लोकप्रिय कार्यक्रमों की स्ट्रीमिंग करती है। यह स्टार के पारंपरिक टेलीविजन चैनलों के बजाए यह ऐप्प वैकल्पिक डिलीवरी माध्यम का इस्तेमाल करता है लेकिन परिणाम क्या हैस्टार समूह के लिए ज्यादा दर्शक तैयार करना। जो कार्यक्रम पहले ही प्रसारित हो चुके हैं उनके लिए नए दर्शक लाना और विज्ञापनों का भी नया प्लेटफॉर्म तैयार करना। भारतीय बाजार इन प्रयोगों के लिए तैयार है।

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