केंद्र सरकार की 'डिजिटल इंडिया' नामक पहल भारत में सूचना क्रांति के दूसरे दौर का सूत्रपात कर सकती है। नागरिकों को तकनीकी दृष्टि से सक्षम बनाने, सरकारी सेवाओं को डिजिटल माध्यमों से जनता तक पहुँचाने, सूचना तकनीक और दूरसंचार के क्षेत्र में व्यापक आधारभूत विकास करने तथा विभिन्न विभागों व मंत्रालयों की डिजिटल सेवाओं को आपस में जोड़ने वाली इतनी बड़ी, सुनियोजित और समन्वित परियोजना की परिकल्पना भारत में अब तक नहीं की गई थी। हालाँकि केंद्र और राज्य सरकारें पिछले कुछ दशकों से कंप्यूटरीकरण और ई-प्रशासन को महत्व देती आई हैं और उन्होंने इस दिशा में अपने-अपने स्तर पर सफलताएं भी अर्जित की हैं, किंतु सूचना क्रांति में निहित व्यापक संभावनाओं की तुलना में ये उपलब्धियाँ बहुत सीमित हैं। 'डिजिटल इंडिया' को भारत की राजनैतिक-सामाजिक व्यवस्था, हमारी अर्थव्यवस्था और देश की जनता को ज्ञान आधारित भविष्य की ओर ले जाने के महत्वाकांक्षी प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।
डिजिटल इंडिया के माध्यम से इंटरनेट को दोतरफा संपर्क, आग्रह और डिलीवरी के माध्यम के रूप में इतनी बड़ी आबादी तक ले जाया जा सके तो ई-प्रशासन, ई-कॉमर्स, ई-शिक्षा और ई-बैंकिंग जैसे क्षेत्रों का कायाकल्प हो जाएगा। | ||
केंद्र सरकार तीन बड़े लक्ष्यों को लेकर आगे बढ़ रही है- पहला, देश में व्यापक स्तर पर आधारभूत डिजिटल सेवाओं का विकास जिनका प्रयोग नागरिकों द्वारा बेरोकटोक किया जा सके। दूसरा, जनता को इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से सरकारी सेवाएं तथा प्रशासनिक सुविधाएं हर समय उपलब्ध रहें, जिसे तकनीकी भाषा में 'ऑन डिमांड' कहा जाता है, अर्थात् जब चाहें, सेवा पाएँ। तीसरा लक्ष्य है- भारतीय नागरिकों को तकनीकी दृष्टि से सक्षम और सबल बनाना। इसके लिए ज़रूरी है कि तकनीकी उपकरणों, सुविधाओं, ज्ञान और सूचनाओं को समाज के सभी स्तरों तक पहुँचाया जाए।
वैश्विक रुझानों के अनुरूप
मार्क जुकरबर्ग के बयान के कारोबारी निहितार्थ हो सकते हैं, लेकिन उनकी टिप्पणी व्यावहारिक है। मैकिन्सी के अनुसार विश्व के सर्वाधिक इंटरनेट-वंचित लोग भारत में ही हैं। अगर इतनी बड़ी आबादी इंटरनेट से जुड़ जाती है और इस माध्यम का प्रयोग उसके साथ सीधे कनेक्ट करने के लिए किया जाता है तो उसके परिणाम कितने विस्मयकारी हो सकते हैं, इसकी कल्पना मात्र ही रोमांचित कर देती है। इंटरनेट को दोतरफा संपर्क, आग्रह और डिलीवरी के माध्यम के रूप में इतनी बड़ी आबादी तक ले जाया जा सके तो ई-प्रशासन, ई-कॉमर्स, ई-शिक्षा और ई-बैंकिंग जैसे क्षेत्रों का कायाकल्प हो जाएगा। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद को यकीन है कि देश में डिजिटल क्रांति और मोबाइल क्रांति के घटित होने के कगार पर है। महत्वपूर्ण यह है कि यह कनेक्टिविटी प्रशासन और जनता के बीच मौजूद अवरोधों को ध्वस्त करने में भी योगदान देंगी और हमारी प्रशासनिक मशीनरी को ज्यादा पारदर्शी तथा जवाबदेह बनाएंगी।
केंद्र सरकार ने सन् 2017 तक 2.5 लाख गांवों में ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है। लगभग इतने ही विद्यालयों को सन् 2019 तक वाइ-फाइ सुविधा से लैस कर दिया जाएगा। नैशनल ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क, जिस पर करीब 35 हजार करोड़ रुपए की राशि खर्च की जाने वाली है, ग्रामीण जनता को इंटरनेट सुपरहाइवे पर ले आएगा। डिजिटल सेवाओं के सार्थक प्रयोग के लिए डिजिटल शिक्षा और जागरूकता भी बहुत महत्वपूर्ण है। केंद्र सरकार का 'दिशा' नामक कार्यक्रम इसमें हाथ बँटाएगा और बड़ी संख्या में भारतीय नागरिकों को डिजिटल साक्षरता की ओर भी ले जाएगा।
श्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करते समय ई-गवर्नेंस के साथ-साथ एम-गवर्नेंस का भी जिक्र किया था, जिसका अर्थ है सचल युक्तियों या मोबाइल गैजेट्स के माध्यम से तकनीकी सेवाओं तथा सुविधाओं की डिलीवरी। डिजिटल इंडिया परियोजना में मोबाइल फोन के प्रयोग को काफी महत्व दिया जा रहा है क्योंकि यह सरकारी सेवाओं को घर-घर तक ले जाने का आसान जरिया बन सकता है। भारत में कंप्यूटर और इंटरनेट का प्रयोग आज भी बहुत सीमित है किंतु मोबाइल कनेक्शनों के प्रसार की दृष्टि से हम चीन के बाद विश्व में दूसरे नंबर पर हैं। अगस्त 2014 के आंकड़ों के अनुसार भारत में 80 करोड़ से भी अधिक मोबाइल कनेक्शन मौजूद हैं। जहाँ कंप्यूटर और इंटरनेट के प्रयोग के लिए बिजली की उपलब्धता एक बड़ा मुद्दा है, वहीं मोबाइल के साथ ऐसा नहीं है इसलिए भारतीय परिस्थितियों में ई-गवरनेंस की तुलना में एम-गवरनेंस अधिक प्रभावी सिद्ध हो सकता है।
विकास के नौ स्तंभ
डिजिटल इंडिया के लिए निर्धारित सन् 2019 की समय सीमा बहुत दूर नहीं है, जो इतनी विशाल परियोजना के लिए बड़ी चुनौती सिद्ध होने वाली है। भारत में बिजली, आधारभूत सुविधाओं, संचार तंत्र आदि की भी सीमाएं हैं। लास्ट माइल कनेक्टिविटी, यानी अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक सेवाएं मुहैया कराने के लिए विशाल तंत्र के निर्माण की जरूरत है और उसे स्थायित्व देने के लिहाज से लाभप्रद बनाए जाने की भी। सरकार को इस चुनौती का अहसास है और उसे नए सहयोगियों के साथ जुड़ने में आपत्ति नहीं है। सरकार न सिर्फ आम लोगों, विशेषज्ञों आदि को जोड़ने की इच्छुक है बल्कि निजी क्षेत्र की कंपनियों को साथ लेकर चलने में भी कोई हिचक नहीं है। ‘डिजिटल इंडिया’ में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है और यही वजह है कि गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक, अमेजॉन जैसी विश्व की अग्रणी आईटी कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों ने पिछले दिनों भारत का दौरा किया है। आईबीएम और सिस्को जैसी अन्य कंपनियाँ भी परियोजना में अपनी दिलचस्पी दिखा चुकी है। भारत के आईटी उद्योग के लिए भी बड़ा कारोबारी अवसर उभरने जा रहा है।
भारत के समाज और अर्थव्यवस्था में विकास की व्यापक संभावनाएं निहित हैं किंतु समुचित आधारभूत ढाँचे के अभाव में हम उन संभावनाओं का पर्याप्त दोहन नहीं कर पाते। डिजिटल इंडिया परियोजना भारत में डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में मील का पत्थर सिद्ध होने वाली है। अगले पाँच साल में जिस बड़े पैमाने पर आधारभूत सुविधाओं का विकास होने वाला है, वह बाजार अर्थव्यवस्था से जुड़े हमारे व्यापक आर्थिक लक्ष्यों के भी अनुकूल है। उम्मीद करनी चाहिए कि डिजिटल इंडिया न सिर्फ सरकार और नागरिकों के बीच दूरी को पाट सकेगी बल्कि इक्कीसवीं सदी की अपेक्षाओं के अनुरूप हमें ज्ञान आधारित भविष्य की ओर भी ले जा सकेगी।
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