अमेरिका में युवा हिन्दी शिविर-डॉ० सुरेन्द्र गंभीर/निदेशक – युवा हिन्दी शिविर अटलाँटा




२००७ में जब न्यूयार्क में विश्व हिन्दी सम्मेलन हुआ तो उसमें अनेक

प्रवासी भारतीयों को एक बात खटकी कि उसमें प्रवासी भारतीयों की युवा पीढ़ी

के लिए कुछ नहीं था। यदि इस सम्मेलन में हमारी युवा पीढ़ी के लिए भी कुछ

कार्यक्रम होते तो प्रवासी संदर्भ में हमारी सांस्कृतिक भाषा और हमारे

मूल्यों को कुछ प्रोत्साहन मिलता। इसी विचार ने २००९ में युवा हिन्दी

संस्थान को जन्म दिया। इसी संस्थान के तत्वावधान में अमेरिका के अटलाँटा

जार्जिया प्रदेश में जून १९ से २८ तक १० दिन का भाषा शिविर युवा पीढ़ी के

१०० सदस्यों के लिए हो रहा है।

इस कार्यक्रम को जहां एक ओर अमरीकी सरकार की उदार आर्थिक सहायता प्राप्त

है वहां दूसरी ओर अमरीका के प्रतिष्ठित कई विश्वविद्यलायों और शोध

संस्थानों का समर्थन और सहयोग प्राप्त है। इस शिविर का दैनिक कार्यक्रम

और गतिविधियों का समायोजन भाषा-विज्ञान के शोध-समर्थित नियमों के आधार पर

होगा ताकि युवाओं को इस सांस्कृतिक अवगाहन से अधिकाधिक भाषा-लाभ हो और

हिन्दी भाषा में प्रवीणता को बढ़ाने के लिए उनके भविष्य के द्वार खुलें।

अमरीकी सरकार की भी यह हमसे अपेक्षा है । युवा हिन्दी संस्थान के

कार्यकर्ता उसी दिशा में पिछले कई महीनों से इसी योजना को कार्यान्वित

करने के लिए प्रयत्नशील हैं।

शिविर का कार्यक्रम प्रातः नौ बजे योगाभ्यास से शुरू होगा और उसके बाद

हिन्दी शिक्षण की कक्षाएं, कंप्यूटर लैब, हस्तकला, अनेकानेक खेल

(क्रिकेट, बैडमिंटन, टेबलटैनिस, शतरंज, खो-खो, पिट्ठू आदि), नाटक, संगीत,

नेचर वॉक, सांस्कृतिक कार्यक्रम और बॉलीवुड के गरमागरम गानों के साथ नाच

का दैनिक कार्यक्रम है। दोपहर के खाने के समय भी हिन्दी के कुछ चलचित्र

दिखाए जाएंगे जिसमें सब-टाइटल रहेंगे। शिविर की सब गतिविधियों में सब

निर्दैश और सभी बातचीत हिन्दी के माध्यम से ही संपन्न होगी। शिविर में

अंग्रेज़ी का प्रयोग वर्जित है। भाषा और संस्कृति में अवगाहन और भाषा

सीखने का और उसे आत्मसात् करने का यही सहज तरीका है।

अमेरिका में हिन्दी की शिक्षा के लिए यह स्वर्णिम समय है। अमरीका सरकार

ने हिन्दी को एक महत्वपूर्ण भाषा के रूप में स्वीकार किया है और फलस्वरूप

सभी सरकारी स्कूलों में विदेशी भाषा के रूप में हिन्दी को पढ़ाने के द्वार

खोल दिए गए हैं। अमेरिकी सरकार का यह मानना है कि भविष्य में आर्थिक और

राजनैतिक शक्ति के रूप में उभरते हुए भारत के साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय

और राजनयिक संबंधों के संदर्भ में हिन्दी का महत्व बहुत अधिक है और यह

दिन-ब-दिन बढ़ने वाला है। इसी सार्वभौमिक राजनैतिक विश्लेषण को ध्यान में

रखते हुए अमरीका की अगली पीढ़ी को दुनिया की महत्वपूर्ण भाषाओं और उनकी

संस्कृतियों के ज्ञान से लैस करना बहुत आवश्यक समझा जा रहा है और इसी

उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस दीर्घकालीन योजना की व्यवस्था हुई है ।

भाषाओं की इस महत्वपूर्ण योजना को व्हाइट हाउस के नेशनल सिक्योरिटी

लैंगवेज इनिश्येटिव के तहत क्रियान्वित किया जा रहा है।

भाषा हमारे चिंतन की वाहिका है और हर भाषा का हर मानव के कुछ विशिष्ट

मूल्यों के साथ विशेष संयोग होता है। जहां एक ओर प्रवासी युवा पीढ़ी के

सदस्य अमरीका को एक समर्थ देश बनाने में अपना योगदान देंगे वहां भविष्य

में विभिन्न क्षेत्रों में वे अपने विभिन्न व्यवसायों के लिए भी अपने

कैरियर का मार्ग प्रशस्त करेंगे। हिन्दी भाषा ज्ञान के साथ हमारी युवा

पीढ़ी के संबंध भारत के साथ भी संपुष्ट होंगे । उदीयमान भारत से लेकर

अमरीका तक सभी के भविष्य के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिशा है।

अमरीकी समाज में द्विभाषी लोगों की मांग बराबर बढ़ रही है और भविष्य में

यह और ज़्यादा बढ़ने वाली है। चाहे वे डॉक्टर हों, वकालत के पेशे में हों,

अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय में हों, सरकारी महकमों में हों – सब जगह दूसरी

भाषा पर उस भाषा से संबंधित समाजों के मूल्यों और अन्तर्निहित

विचारधाराओं को समझने वाले और उन पर अधिकारपूर्वक बात करने वालों को

वरीयता प्राप्त है। अमरीका के वर्तमान वयस्क कर्मचारियों को विदेशी

भाषाओं की शिक्षा देने के लिए सरकार के कई अपने स्कूल भी हैं जिनमें

वर्जीनिया में स्थित फ़ॉरन सर्विस इंस्टीट्यूट और मांट्रे कैलिफ़ोनिया में

स्थित डिफ़ैंस लैंग्वेज इंस्टीट्यूट प्रमुख हैं।

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