
भारत में सिनेमा
फिल्म प्रभाग
1943 में स्थापित 'इंडियन न्यू परेड' तथा 'इंफॉर्मेशन फिल्म्स ऑफ इंडिया' का पुन: नामकरण कर जनवरी, 1948 में फिल्म प्रभाग का गठन किया गया। सिनेमेटोग्राफ अधिनियम, 1918 का 1952 में भारतीयकरण किया गया जिसके तहत् वृत्तचित्र फिल्मों का पूरे देश में प्रदर्शन करना अनिवार्य कर दिया गया
फिल्म प्रभाग, 1949 में देश भर के थियेटरों में 15 राष्ट्रीय भाषाओं में हर शुक्रवार को एक वृत्तचित्र या एनिमेशन फिल्म या समाचार आधारित फिल्म जारी करता है। प्रभाग ने वस्तुत: स्वतंत्रता पश्चात का पूरा इतिहास तैयार किया है। इसका मुख्यालय मुंबई में है। यह निर्माण, स्टूडियो, रिकॉर्डिंग थियेटर, संपादन कक्ष, एनिमेशन एकक, कैमरे, वीडियो सेटअप, पूर्व दर्शन थियेटर जैसी सुविधाओं से लैस है। प्रभाग 15 भारतीय भाषाओं में फिल्मों की डबिंग भी स्वयं करता है।
फिल्म प्रभाग की कहानी स्वतंत्रता के समय से देश के घटनापूर्ण समय के साथ तालमेल रखती है और यह 60 वर्ष से अधिक पुरानी है। यह प्रभाग भारतीय जनता के व्यापक भाग को राष्ट्र निर्माण की गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी की सूची बनाने के विचार से प्रेरित करता आया है। इस प्रभाग के लक्ष्य और उद्देश्य राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्यों पर केन्द्रित है और ये राष्ट्रीय कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में लोगों को शिक्षित और प्रेरित करने एवं भारतीय तथा विदेशी दर्शकों को भूमि की छवि तथा विरासत प्रदर्शित करने के लिए हैं। यह प्रभाग लघु फिल्म आंदोलन की वृद्धि में भी पोषित करने पर लक्षित है जो राष्ट्रीय सूचना, संचार तथा समेकन के क्षेत्र में भारत के लिए अत्यंत महत्व रखते हैं।
प्रभाग द्वारा लघु फिल्मों, संखिप्त फिल्मों, एनिमेशन फिल्मों तथा समाचार पत्रिकाओं का निर्माण मुम्बई स्थित मुख्यालय से और रक्षा तथा परिवार कल्याण पर फिल्में दिल्ली इकाई में तैयार की जाती हैं और कोलकाता एवं बैंगलोर में स्थित क्षेत्रीय निर्माण केन्द्रों से ग्रामीण दर्शकों के लिए संक्षिप्त काल्पनिक फिल्में तैयार की जाती हैं। यह प्रभाग देश भर के लगभग 8500 से अधिक सिनेमा हॉलों का आपूर्ति करने के साथ गैर-नाट्य वृत्तों जैसे क्षेत्र प्रचार निदेशालय, राज्य सरकारी की चल इकाइयों, दूरदर्शन, परिवार कल्याण विभाग का क्षेत्र इकाइयों, शैक्षिक संस्थानों, फिल्म संस्थाओं और स्वयंसेवी संगठनों को भी आपूर्ति करता है। राज्यों सरकारों की लघु फिल्में और समाचार रीलें भी नाट्य वृत्तों में प्रभाग की निर्मुक्तियों में दिखाई जाती हैं। इस प्रभाग में भारत तथा विदेशों को लघु फिल्मों और फीचर फिल्मों के प्रिंट, स्टॉक शॉट्स, वीडियो कैसिट और लघु फिल्मों और फीचर फिल्मों के वितरण अधिकार की ब्रिकी भी की जाती है। फिल्मों के निर्माण के अलावा फिल्म प्रभाग अपने स्टुडियो, रिकॉर्डिंग थियेटर, संपादन कक्ष और अन्य सिनेमा संबंधी उपकरण निजी फिल्म निर्माताओं को किराए पर भी देता है।
सूचना और प्रचारण मंत्रालय, भारत सरकार ने लघु फिल्मों, संक्षिप्त और एनिमेशन फिल्मों के लिए एमआईएफएफ आयोजित करने का कार्य फिल्म प्रभाग को सौंपा है।
एमआईएफएफ प्रतियोगिता का लक्ष्य व्यापक ज्ञान में छवियों के योगदान का प्रसार और दुनिया के देशों के बीच आपसी भाईचारे की भावना को लाना है। यह आयोजन फिल्म निर्माताओं, फिल्म उत्पादकों, वितरकों, प्रदर्शकों तथा फिल्म आलोचकों को विभिन्न देशों से आकर मिलने का एक अनोखा मंच प्रदान करता है जो इस महोत्सव के दौरान आपस में अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं। पिछले कई वर्षों से एमआईएफएफ फिल्म निर्माताओं के कार्यों को प्रदर्शित करने, अपने विचारों के आदान प्रदान का एक वरीयता प्राप्त तथा बहु प्रतीक्षित आयोजन है। एमआईएफएफ ने अपनी ऐतिहासिक यात्रा 1990 में आरंभ की और तब से यह लघु फिल्म आंदोलन के अंतरराष्ट्रीय आयोजनों के आकार तक बड़ा हो गया है। द्विवर्षीय एमआईएफएफ में बड़ी संख्या में जाने माने लघु फिल्म निर्माता तथा संक्षिप्त फिल्म निर्माता और बुद्धिजीवी, छात्र आते हैं जो भारत के अलावा दुनिया के अन्य हिस्सों से भी होते हैं। लगभग 35-40 देशों से 500 से अधिक प्रविष्टियां इस महोत्सव के प्रत्येक संस्करण में आती है। संक्षिप्त फिल्मों, लघु फिल्मों और एनिमेशन के लिए एमआईएफएफ के दसवें संस्करण का आयोजन 3 फरवरी 2008 को महाराष्ट्र सरकार के सहयोग से मुंबई में नेशनल सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्टस (एनसीपीए) में किया गया।
प्रभाग के संगठन को निम्नलिखित चार विंगों में बांटा गया है:
उत्पादन
वितरण
अंतरराष्ट्रीय लघु फिल्म, संक्षिप्त और एनिमेशन फिल्म महोत्सव और
प्रशासन
उत्पादन विंग
उत्पादन विंग निम्नलिखित प्रकार की फिल्मों के उत्पादन के लिए उत्तरदायी है
लघु फिल्म
विशेष रूप से ग्रामीण दर्शकों के लिए बनाई गई छोटी फीचर फिल्मे
एनिमेशन फिल्में और
वीडियो फिल्म
मुम्बई में मुख्यालय के अतिरिक्त प्रभाग के तीन उत्पादन केन्द्र बैंगलोर, कोलकाता और नई दिल्ली में स्थित है।
कृषि से लेकर कला और वास्तुकला, उद्योग से लेकर अंतरराष्ट्रीय परिदृश्यों, भोजन से लेकर त्यौहारों तक, स्वास्थ्य देखभाल से आवास तक, विज्ञान और प्रौद्योगिकी से लेकर खेलों तक, व्यापार और वाणिज्यिक से लेकर परिवहन तक, जनजातीय कल्याण से लेकर समुदाय विकास तक आदि विषय और विषयवस्तुओं को इन लघु फिल्मों शामिल किया जाता है। सामान्यत: प्रभाग द्वारा देश भर के स्वतंत्र निर्माताओं को आबंटन के लिए इसकी उत्पादन अनुसूची का 40 प्रतिशत के आस पास भाग आरक्षित किया जाता है, ताकि अलग अलग प्रतिभाओं को प्रोत्साहन दिया जा सके और देश में लघु फिल्म आंदोलन को बढ़ावा दिया जा सके।
सामान्य निर्माण कार्यक्रम के अतिरिक्त प्रभाग द्वारा सरकार के सभी मंत्रालयों और विभागों सहित सार्वजनिक क्षेत्र संगठनों को लघु फिल्मों के उत्पादन में सहायता दी जाती है।
फिल्म प्रभाग का न्यूजरील विंग मुख्य शहरों और कस्बों के साथ राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्रों की राजधानियों में फैला हुआ है जो प्रमुख घटनाओं के कवरेज में शामिल है। यह देश के विभिन्न भागों में अतिविशिष्ट अतिथियों आदि के आगमन और इनकी विदेश यात्रा तथा प्राकृतिक आपदाओं आदि का कवरेज भी करता है। इन कवरेज रीलों का उपयोग पाक्षिक समाचार पत्रिकाओं को बनाने एवं पुरातात्विक सामग्री के संकलन में भी किया जाता है।
फिल्म प्रभाग की लोकप्रिय कार्टून फिल्म इकाई में भी सैल या पुरानी एनिमेशन के स्थान पर कंप्यूटर एनिमेशन के साथ उच्च प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया गया है। हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों में आधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस यह इकाई अब ओपस, कंसर्टों, हाई एंड तथा माया सहित समुन्नत सॉफ्टवेयर के साथ 2-डी तथा 3-डी एनिमेशन का निर्माण कर सकती है।
कमेंटरी अनुभाग में फिल्मों तथा समाचार पत्रिकाओं की डबिंग का कार्य किया जाता है जो 14 भारतीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं में मूल संस्करण (अंग्रेजी/हिन्दी) से किया जाता है।
प्रभाग की दिल्ली स्थित इकाई को रक्षा मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग तथा अन्य मंत्रालयों / विभागों के लिए अनुदेशात्मक तथा प्रेरणात्मक फिल्में बनाने का दायित्व सौंपा गया है। बदलते हुए परिदृश्य को अपनाने के विचार से इस इकाई को वीडियो फिल्म बनाने की सुविधा से सज्जित किया गया है।
कोलकाता और बैंगलोर स्थित प्रभाग के क्षेत्रीय केन्द्र सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों जैसे परिवार कल्याण, सामुदायिक सौहार्द, दहेज, बंधुआ मजदूर, अस्पृश्ता आदि के संदेश फैलाने के लिए सामाजिक तथा शैक्षिक लघु फिल्में भी तैयार करते हैं।
वितरण विंग
वितरण विंग का नेतृत्व वितरण के प्रभारी अधिकारी करते हैं और यह कोलकाता, लखनऊ, नागपुर, मुम्बई, हैदराबाद, विजयवाड़ा, बैंगलोर, चेन्नई, मदुरै और तिरुवनंतमपुरम में स्थित 10 वितरक शाखा कार्यालयों का नियंत्रण भी करते हैं। इन शाखाओं का नेतृत्व या तो वरिष्ठ शाखा प्रबंधक अथवा शाखा प्रबंधक करते हैं जो कार्यालय प्रमुख के अलावा संबंधित शाखाओं के डीडीओ के तौर पर भी कार्य करते हैं और वे सभी सिनेमा थियेटरों में अनुमोदित फिल्मों की आपूर्ति के लिए उत्तरदायी हैं (जो केन्द्रीय सिनेमेटोग्राफ अधिनियम, 1952 के तहत आवश्यक है), करारनामे का निष्पदन, फिल्म प्रभाग प्रमाणपत्र जारी करना और साथ ही प्रदर्शकों से एक प्रतिशत का किराया जमा करना।
फिल्म प्रभाग द्वारा 52 अनुमोदित फिल्मों के 262 प्रिंट (कुल 13676) जिन्हें एनएफडीसी की 8 फिल्मों (कुल 2024 प्रिंट) के साथ देश भर में 8410 सिनेमा गृहों में प्रति सप्ताह जारी किए गए हैं, जिनसे मार्च 2008 तक 6,01,42,481 रु. की कमाई हुई है।
वितरण विंग ने स्वयं को पुन: परिभाषित किया है और फिल्म महोत्सवों को राज्य और जिला स्तर पर एक नियमित गतिविधि बना दिया है, जो स्वतंत्र रूप से या गैर सरकारी संगठनों, फिल्म संस्थाओं, शैक्षिक संस्थानों आदि के सहयोग से जन समूह तक पहुंचने और लघु फिल्म आंदोलन को प्रोत्साहन तथा बढ़ावा देने के लिए आयोजित किए जाते हैं। वितरण शाखा कार्यालयों ने मार्च 2008 तक 50 फिल्म महोत्सवों का आयोजन किया जो भारत के सबसे दूरदराज के स्थानों तक भी पहुंचें। इन फिल्म महोत्सवों को सभी वर्गों के दर्शकों से प्रशंसा मिली।
फिल्म लाइब्रेरी अनुभाग
फिल्म प्रभाग की फिल्म लाइब्रेरी भारत के समकालीन इतिहास और इसकी समृद्ध विरासत एवं कलापूर्ण परम्परा का मूल्यवान पुरातात्विक खजाना है। इसकी मांग पूरी दुनिया के फिल्म निर्माताओं के बीच है। यह स्टॉक फुटेज बिक्री के माध्यम से राजस्व अर्जित करने के अलावा सेवाएं प्रदान कर फिल्मों के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण फुटेज का योगदान देता है। फिल्म लाइब्रेरी का कुल संग्रह 8200 शीर्षकों के लगभग 1.9 लाख मदों का है, जिसमें मूल चित्रों के नेगेटिव, डेपू / इंटरनेगेटिव, साउंड नेगेटिव, मास्टर इंटर पॉजिटिव, संतृप्त प्रिंट, प्री डब साउंड नेगेटिव, 16 मि.मी. प्रिंट, लाइब्रेरी प्रिंट और आंसर प्रिंट आदि इन फिल्मों को पुरातात्विक मूल्य के आधार पर सर्वाधिक कीमती, कीमती और सामान्य फिल्मों की श्रेणी में बांटा गया है। सर्वाधिक कीमती श्रेणी की 1102 फिल्मों को उच्च परिभाषा के फॉर्मेट में डिजीटल रूप में भंडारित किया गया है और 4213 शीर्षकों को मानक परिभाषा फॉर्मेट में अंतरित किया गया है। यह लाइब्रेरी प्रयोक्ता अनुकूल कम्प्यूटरीकृत सूचना प्रणाली का उपयोग करती है। फिल्म लाइब्रेरी के विवरण वेबसाइट पर भी उपलब्ध हैं।
प्रशासनिक विंग
प्रशासनिक विंग द्वारा वित्त, कार्मिक, भंडार, लेखा, कारखाना प्रबंधन और सामान्य प्रशासन जैसी अनिवार्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। यह विंग वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के प्रत्यक्ष नियंत्रण में है, जिनकी सहायता निम्नलिखित अधिकारी करते हैं:
सहायक प्रशासनिक अधिकारी, जो कार्मिक प्रबंधन, क्रय, सामान्य प्रशासन, सतर्कता और सुरक्षा से संबंधित मामलों की देखभाल करते है
वित्त और लेखा के मामलों में आंतरिक महोत्सव सलाहकार के परामर्श में लेखा
केंद्रीय चलचित्र प्रमाणन बोर्ड
सिनेमाटोग्राफ अधिनियम 1952 के तहत् स्थापित केंद्रीय चलचित्र प्रमाणन बोर्ड, भारत में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए फिल्मों का प्रमाणन करता है। बोर्ड में एक अध्यक्ष और 25 अन्य गैर सरकारी अधिकारी होते हैं। बोर्ड का मुख्यालय मुंबई में है और इसके नौ क्षेत्रीय कार्यालय - बैंगलोर, मुंबई, नई दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, चैन्नई, तिरुवनंतपुरम, कटक तथा गुवाहाटी में हैं। सलाहाकर पैनल फिल्मों की जांच में क्षेत्रीय कार्यालयों की सहायता करते हैं। इन पैनलों में समाज के विभिन्न वर्गों के लोग शामिल होते हैं। जानी मानी फिल्मी हस्ती श्रीमती शर्मिला टैगोर वर्तमान में बोर्ड की अध्यक्षा के रूप में कार्यरत हैं।
सिनेमाटोग्राफ अधिनियम 1952 के अनुच्छेद 5बी (2) के तहत् केंद्र सरकार द्वारा जारी सांविधिक दिशानिर्देशों का उल्लंघन किए जाने के कारण 43 भारतीय और 16 विदेशी फीचर फिल्मों के प्रमाणपत्र नामंजूर किए गए। इनमें से कुछ को बाद में संशोधन के बाद प्रमाणपत्र दे दिए गए।
केंद्रीय चलचित्र प्रमाणन बोर्ड के सदस्यों की 108वीं बैठक हैदराबाद में 27 मार्च, 2006 को हुई। केंद्रीय चलचित्र प्रमाणन बोर्ड के सदस्यों की 109वीं बैठक बैंगलोर में 31 जुलाई, 2006 को हुई। केंद्रीय चलचित्र प्रमाणन बोर्ड के सदस्यों की 110वीं बैठक पुडुचेरी में 17 दिसंबर, 2006 को हुई। सभी बैठकों श्रीमती शर्मिला टेगौर जो बोर्ड की अध्यक्षा के सामने हुई।
फिल्मों के निरीक्षण के लिए सलाहकार पैनल के सदस्यों के लिए कार्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। सलाहकार पैनल के सदस्यों तथा निरीक्षण अधिकारियों के लिए पिछले वर्ष विभिन्न क्षेत्रीय केंद्रों में कार्य गोष्ठियां आयोजित की गई। इस दौरान फिल्मों के निरीक्षण से संबद्ध विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई और फिल्मों को प्रमाणपत्र देने संबंधी विभिन्न दिशानिर्देशों को समझाने के लिए कुछ चुनिदां फिल्मों से काटे गए हिस्से दिखाए गए। इन कार्य गोठिष्यों में अनुशासन और आचार संहिता पर अमल की आवश्यकता पर बल दिया गया।
सिनेमेटोग्राफ अधिनियम के तहत् न तो बोर्ड और न ही केंद्र सरकार के पास फिल्मों के प्रदर्शन के समय बोर्ड के फैसले लागू करने का अधिकार है। यह अधिकार राज्य सरकारों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन को दिया गया है। बोर्ड ने फिल्मों में अंतर्वेशन की पहचान को व्यवस्थित करने के समय-समय पर प्रयास किए हैं। वर्ष के दौरान सभी नौ क्षेत्रों में प्रतिबंधों का उल्लंघन रोकने में प्राइवेट जासूसी एजेंसियों की मदद ली गई।
वर्ष 2006 में जनवरी से दिसंबर तक फिल्मों में विभिन्न स्थानों पर अंतर्वेशन 46 मामले सामने आए और इनकी जांच रिपोर्ट संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट को आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी गई।
सीबीएफसी का कार्यभार विभिन्न चैनलों की फिल्मों के प्रमाणन के कारण बढ़ता गया है, जैसा कि मुम्बई उच्च न्यायालय के निर्णय में बताया गया। वीडियो फिल्मों के प्रमाणन में वृद्धि 2005 में 4188 से बढ़कर 2006 में 7129 हो गई है। लक्ष्य और समय सीमाओं को पूरा करने के लिए प्रमाणन कार्य में तेजी लाने हेतु सीबीएफसी के विभिन्न क्षेत्रों में सीबीएफसी ने विभिन्न सेटेलाइट चैनलों के कार्य को वितरित किया है। फिल्मों के कार्य के निपटान हेतु केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से अतिरिक्त जांच अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर बुलाया गया है।
राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम लिमिटेड
राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम लिमिटेड की स्थापना 1975 में हुई थी। वर्ष 1980 में भारतीय चलचित्र निर्यात निगम और फिल्म वित्त निगम के विलय के बाद इसका पुनर्गठन किया गया। इस निगम का मुख्य उद्देश्य भारत में सिनेमा की गुणवत्ता में सुधार लाना और श्रव्य-दृश्य तथा संबंधित क्षेत्रों में अति आधुनिक प्रौद्योगिकी विकसित करना है। निगम की मुख्य गतिविधियों में शामिल हैं: सामाजिक दृष्टि से उपयुक्त विषयों पर रचनात्मक व कलात्मक उत्कृष्टता वाली और प्रायोगिक स्वरूप वाली बढ़िया फिल्मों का वित्त पोषण और निर्माण तथा विभिन्न माध्यमों से फिल्मों का वितरण व प्रसार। राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम उद्योग को नवीनतम प्रौद्योगिकी के अनुरूप आवश्यक निर्माण पूर्व और निर्माण पश्चात बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराता है। यह फिल्म समितियों, राष्ट्रीय फिल्म सर्किल सप्ताहों, भारतीय फिल्मों की झांकी और फिल्म समारोहों के आयोजन से फिल्म संस्कृति और फिल्मों की समझ विकसित करने के प्रयास करता है।
एनएफडीसी गुणवत्ता, विषय वस्तु और निर्माण मूल्यों दृष्टि से उत्कृष्ट, कम बजट की फिल्मों की अवधारणा को बढ़ावा देता है।
एनएफडीसी वेणु निर्दशित निगम की पिरनामम (मलयालम) को अशदोद अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह इज्रराइल में सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
निगम ने सीआईआई के साथ मिलकर आईएफएफआई के दौरान गोवा में फिल्म बाजार का आयोजन किया।
एनएफडीसी द्वारा स्थापित सिने कलाकार कल्याण कोष भारतीय फिल्म उद्योग का सबसे बड़ा ट्रस्ट है। इसका संग्रहित कोष 4.48 करोड़ रुपए हैं।
फिल्म समारोह निदेशालय
फिल्म समारोह निदेशालय की स्थापना 1973 में की गई। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन इस निदेशालय का उद्देश्य, अच्छे सिनेमा को प्रोत्साहन देना है। इसके लिए यह निम्न वर्गों के तहत् अपनी गतिविधियों का संचालन करता है:
अंतरराष्ट्रीय भारतीय फिल्म समारोह।
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार तथा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार।
सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम तथा विदेशों में शिष्टमंडलों के ज़रिए भारतीय फिल्म प्रदर्शन का आयोजन।
भारतीय पनोरमा का चयन।
विदेशों में अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भागीदारी।
भारत सरकार की ओर से विशेष फिल्मों का प्रदर्शन।
प्रिंट संग्रहण तथा अभिलेखन।
ये गतिविधियां, सिनेमा के क्षेत्र में भारत और अन्य देशों के बीच विचारों, संस्कृति तथा अनुभव के आदान-प्रदान के लिए बेजोड़ मंच प्रदान करती हैं। ये भारतीय सिनेमा को सशक्त मंच प्रदान करती हैं
फिल्म प्रभाग
1943 में स्थापित 'इंडियन न्यू परेड' तथा 'इंफॉर्मेशन फिल्म्स ऑफ इंडिया' का पुन: नामकरण कर जनवरी, 1948 में फिल्म प्रभाग का गठन किया गया। सिनेमेटोग्राफ अधिनियम, 1918 का 1952 में भारतीयकरण किया गया जिसके तहत् वृत्तचित्र फिल्मों का पूरे देश में प्रदर्शन करना अनिवार्य कर दिया गया
फिल्म प्रभाग, 1949 में देश भर के थियेटरों में 15 राष्ट्रीय भाषाओं में हर शुक्रवार को एक वृत्तचित्र या एनिमेशन फिल्म या समाचार आधारित फिल्म जारी करता है। प्रभाग ने वस्तुत: स्वतंत्रता पश्चात का पूरा इतिहास तैयार किया है। इसका मुख्यालय मुंबई में है। यह निर्माण, स्टूडियो, रिकॉर्डिंग थियेटर, संपादन कक्ष, एनिमेशन एकक, कैमरे, वीडियो सेटअप, पूर्व दर्शन थियेटर जैसी सुविधाओं से लैस है। प्रभाग 15 भारतीय भाषाओं में फिल्मों की डबिंग भी स्वयं करता है।
फिल्म प्रभाग की कहानी स्वतंत्रता के समय से देश के घटनापूर्ण समय के साथ तालमेल रखती है और यह 60 वर्ष से अधिक पुरानी है। यह प्रभाग भारतीय जनता के व्यापक भाग को राष्ट्र निर्माण की गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी की सूची बनाने के विचार से प्रेरित करता आया है। इस प्रभाग के लक्ष्य और उद्देश्य राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्यों पर केन्द्रित है और ये राष्ट्रीय कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में लोगों को शिक्षित और प्रेरित करने एवं भारतीय तथा विदेशी दर्शकों को भूमि की छवि तथा विरासत प्रदर्शित करने के लिए हैं। यह प्रभाग लघु फिल्म आंदोलन की वृद्धि में भी पोषित करने पर लक्षित है जो राष्ट्रीय सूचना, संचार तथा समेकन के क्षेत्र में भारत के लिए अत्यंत महत्व रखते हैं।
प्रभाग द्वारा लघु फिल्मों, संखिप्त फिल्मों, एनिमेशन फिल्मों तथा समाचार पत्रिकाओं का निर्माण मुम्बई स्थित मुख्यालय से और रक्षा तथा परिवार कल्याण पर फिल्में दिल्ली इकाई में तैयार की जाती हैं और कोलकाता एवं बैंगलोर में स्थित क्षेत्रीय निर्माण केन्द्रों से ग्रामीण दर्शकों के लिए संक्षिप्त काल्पनिक फिल्में तैयार की जाती हैं। यह प्रभाग देश भर के लगभग 8500 से अधिक सिनेमा हॉलों का आपूर्ति करने के साथ गैर-नाट्य वृत्तों जैसे क्षेत्र प्रचार निदेशालय, राज्य सरकारी की चल इकाइयों, दूरदर्शन, परिवार कल्याण विभाग का क्षेत्र इकाइयों, शैक्षिक संस्थानों, फिल्म संस्थाओं और स्वयंसेवी संगठनों को भी आपूर्ति करता है। राज्यों सरकारों की लघु फिल्में और समाचार रीलें भी नाट्य वृत्तों में प्रभाग की निर्मुक्तियों में दिखाई जाती हैं। इस प्रभाग में भारत तथा विदेशों को लघु फिल्मों और फीचर फिल्मों के प्रिंट, स्टॉक शॉट्स, वीडियो कैसिट और लघु फिल्मों और फीचर फिल्मों के वितरण अधिकार की ब्रिकी भी की जाती है। फिल्मों के निर्माण के अलावा फिल्म प्रभाग अपने स्टुडियो, रिकॉर्डिंग थियेटर, संपादन कक्ष और अन्य सिनेमा संबंधी उपकरण निजी फिल्म निर्माताओं को किराए पर भी देता है।
सूचना और प्रचारण मंत्रालय, भारत सरकार ने लघु फिल्मों, संक्षिप्त और एनिमेशन फिल्मों के लिए एमआईएफएफ आयोजित करने का कार्य फिल्म प्रभाग को सौंपा है।
एमआईएफएफ प्रतियोगिता का लक्ष्य व्यापक ज्ञान में छवियों के योगदान का प्रसार और दुनिया के देशों के बीच आपसी भाईचारे की भावना को लाना है। यह आयोजन फिल्म निर्माताओं, फिल्म उत्पादकों, वितरकों, प्रदर्शकों तथा फिल्म आलोचकों को विभिन्न देशों से आकर मिलने का एक अनोखा मंच प्रदान करता है जो इस महोत्सव के दौरान आपस में अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं। पिछले कई वर्षों से एमआईएफएफ फिल्म निर्माताओं के कार्यों को प्रदर्शित करने, अपने विचारों के आदान प्रदान का एक वरीयता प्राप्त तथा बहु प्रतीक्षित आयोजन है। एमआईएफएफ ने अपनी ऐतिहासिक यात्रा 1990 में आरंभ की और तब से यह लघु फिल्म आंदोलन के अंतरराष्ट्रीय आयोजनों के आकार तक बड़ा हो गया है। द्विवर्षीय एमआईएफएफ में बड़ी संख्या में जाने माने लघु फिल्म निर्माता तथा संक्षिप्त फिल्म निर्माता और बुद्धिजीवी, छात्र आते हैं जो भारत के अलावा दुनिया के अन्य हिस्सों से भी होते हैं। लगभग 35-40 देशों से 500 से अधिक प्रविष्टियां इस महोत्सव के प्रत्येक संस्करण में आती है। संक्षिप्त फिल्मों, लघु फिल्मों और एनिमेशन के लिए एमआईएफएफ के दसवें संस्करण का आयोजन 3 फरवरी 2008 को महाराष्ट्र सरकार के सहयोग से मुंबई में नेशनल सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्टस (एनसीपीए) में किया गया।
प्रभाग के संगठन को निम्नलिखित चार विंगों में बांटा गया है:
उत्पादन
वितरण
अंतरराष्ट्रीय लघु फिल्म, संक्षिप्त और एनिमेशन फिल्म महोत्सव और
प्रशासन
उत्पादन विंग
उत्पादन विंग निम्नलिखित प्रकार की फिल्मों के उत्पादन के लिए उत्तरदायी है
लघु फिल्म
विशेष रूप से ग्रामीण दर्शकों के लिए बनाई गई छोटी फीचर फिल्मे
एनिमेशन फिल्में और
वीडियो फिल्म
मुम्बई में मुख्यालय के अतिरिक्त प्रभाग के तीन उत्पादन केन्द्र बैंगलोर, कोलकाता और नई दिल्ली में स्थित है।
कृषि से लेकर कला और वास्तुकला, उद्योग से लेकर अंतरराष्ट्रीय परिदृश्यों, भोजन से लेकर त्यौहारों तक, स्वास्थ्य देखभाल से आवास तक, विज्ञान और प्रौद्योगिकी से लेकर खेलों तक, व्यापार और वाणिज्यिक से लेकर परिवहन तक, जनजातीय कल्याण से लेकर समुदाय विकास तक आदि विषय और विषयवस्तुओं को इन लघु फिल्मों शामिल किया जाता है। सामान्यत: प्रभाग द्वारा देश भर के स्वतंत्र निर्माताओं को आबंटन के लिए इसकी उत्पादन अनुसूची का 40 प्रतिशत के आस पास भाग आरक्षित किया जाता है, ताकि अलग अलग प्रतिभाओं को प्रोत्साहन दिया जा सके और देश में लघु फिल्म आंदोलन को बढ़ावा दिया जा सके।
सामान्य निर्माण कार्यक्रम के अतिरिक्त प्रभाग द्वारा सरकार के सभी मंत्रालयों और विभागों सहित सार्वजनिक क्षेत्र संगठनों को लघु फिल्मों के उत्पादन में सहायता दी जाती है।
फिल्म प्रभाग का न्यूजरील विंग मुख्य शहरों और कस्बों के साथ राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्रों की राजधानियों में फैला हुआ है जो प्रमुख घटनाओं के कवरेज में शामिल है। यह देश के विभिन्न भागों में अतिविशिष्ट अतिथियों आदि के आगमन और इनकी विदेश यात्रा तथा प्राकृतिक आपदाओं आदि का कवरेज भी करता है। इन कवरेज रीलों का उपयोग पाक्षिक समाचार पत्रिकाओं को बनाने एवं पुरातात्विक सामग्री के संकलन में भी किया जाता है।
फिल्म प्रभाग की लोकप्रिय कार्टून फिल्म इकाई में भी सैल या पुरानी एनिमेशन के स्थान पर कंप्यूटर एनिमेशन के साथ उच्च प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया गया है। हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों में आधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस यह इकाई अब ओपस, कंसर्टों, हाई एंड तथा माया सहित समुन्नत सॉफ्टवेयर के साथ 2-डी तथा 3-डी एनिमेशन का निर्माण कर सकती है।
कमेंटरी अनुभाग में फिल्मों तथा समाचार पत्रिकाओं की डबिंग का कार्य किया जाता है जो 14 भारतीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं में मूल संस्करण (अंग्रेजी/हिन्दी) से किया जाता है।
प्रभाग की दिल्ली स्थित इकाई को रक्षा मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग तथा अन्य मंत्रालयों / विभागों के लिए अनुदेशात्मक तथा प्रेरणात्मक फिल्में बनाने का दायित्व सौंपा गया है। बदलते हुए परिदृश्य को अपनाने के विचार से इस इकाई को वीडियो फिल्म बनाने की सुविधा से सज्जित किया गया है।
कोलकाता और बैंगलोर स्थित प्रभाग के क्षेत्रीय केन्द्र सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों जैसे परिवार कल्याण, सामुदायिक सौहार्द, दहेज, बंधुआ मजदूर, अस्पृश्ता आदि के संदेश फैलाने के लिए सामाजिक तथा शैक्षिक लघु फिल्में भी तैयार करते हैं।
वितरण विंग
वितरण विंग का नेतृत्व वितरण के प्रभारी अधिकारी करते हैं और यह कोलकाता, लखनऊ, नागपुर, मुम्बई, हैदराबाद, विजयवाड़ा, बैंगलोर, चेन्नई, मदुरै और तिरुवनंतमपुरम में स्थित 10 वितरक शाखा कार्यालयों का नियंत्रण भी करते हैं। इन शाखाओं का नेतृत्व या तो वरिष्ठ शाखा प्रबंधक अथवा शाखा प्रबंधक करते हैं जो कार्यालय प्रमुख के अलावा संबंधित शाखाओं के डीडीओ के तौर पर भी कार्य करते हैं और वे सभी सिनेमा थियेटरों में अनुमोदित फिल्मों की आपूर्ति के लिए उत्तरदायी हैं (जो केन्द्रीय सिनेमेटोग्राफ अधिनियम, 1952 के तहत आवश्यक है), करारनामे का निष्पदन, फिल्म प्रभाग प्रमाणपत्र जारी करना और साथ ही प्रदर्शकों से एक प्रतिशत का किराया जमा करना।
फिल्म प्रभाग द्वारा 52 अनुमोदित फिल्मों के 262 प्रिंट (कुल 13676) जिन्हें एनएफडीसी की 8 फिल्मों (कुल 2024 प्रिंट) के साथ देश भर में 8410 सिनेमा गृहों में प्रति सप्ताह जारी किए गए हैं, जिनसे मार्च 2008 तक 6,01,42,481 रु. की कमाई हुई है।
वितरण विंग ने स्वयं को पुन: परिभाषित किया है और फिल्म महोत्सवों को राज्य और जिला स्तर पर एक नियमित गतिविधि बना दिया है, जो स्वतंत्र रूप से या गैर सरकारी संगठनों, फिल्म संस्थाओं, शैक्षिक संस्थानों आदि के सहयोग से जन समूह तक पहुंचने और लघु फिल्म आंदोलन को प्रोत्साहन तथा बढ़ावा देने के लिए आयोजित किए जाते हैं। वितरण शाखा कार्यालयों ने मार्च 2008 तक 50 फिल्म महोत्सवों का आयोजन किया जो भारत के सबसे दूरदराज के स्थानों तक भी पहुंचें। इन फिल्म महोत्सवों को सभी वर्गों के दर्शकों से प्रशंसा मिली।
फिल्म लाइब्रेरी अनुभाग
फिल्म प्रभाग की फिल्म लाइब्रेरी भारत के समकालीन इतिहास और इसकी समृद्ध विरासत एवं कलापूर्ण परम्परा का मूल्यवान पुरातात्विक खजाना है। इसकी मांग पूरी दुनिया के फिल्म निर्माताओं के बीच है। यह स्टॉक फुटेज बिक्री के माध्यम से राजस्व अर्जित करने के अलावा सेवाएं प्रदान कर फिल्मों के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण फुटेज का योगदान देता है। फिल्म लाइब्रेरी का कुल संग्रह 8200 शीर्षकों के लगभग 1.9 लाख मदों का है, जिसमें मूल चित्रों के नेगेटिव, डेपू / इंटरनेगेटिव, साउंड नेगेटिव, मास्टर इंटर पॉजिटिव, संतृप्त प्रिंट, प्री डब साउंड नेगेटिव, 16 मि.मी. प्रिंट, लाइब्रेरी प्रिंट और आंसर प्रिंट आदि इन फिल्मों को पुरातात्विक मूल्य के आधार पर सर्वाधिक कीमती, कीमती और सामान्य फिल्मों की श्रेणी में बांटा गया है। सर्वाधिक कीमती श्रेणी की 1102 फिल्मों को उच्च परिभाषा के फॉर्मेट में डिजीटल रूप में भंडारित किया गया है और 4213 शीर्षकों को मानक परिभाषा फॉर्मेट में अंतरित किया गया है। यह लाइब्रेरी प्रयोक्ता अनुकूल कम्प्यूटरीकृत सूचना प्रणाली का उपयोग करती है। फिल्म लाइब्रेरी के विवरण वेबसाइट पर भी उपलब्ध हैं।
प्रशासनिक विंग
प्रशासनिक विंग द्वारा वित्त, कार्मिक, भंडार, लेखा, कारखाना प्रबंधन और सामान्य प्रशासन जैसी अनिवार्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। यह विंग वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के प्रत्यक्ष नियंत्रण में है, जिनकी सहायता निम्नलिखित अधिकारी करते हैं:
सहायक प्रशासनिक अधिकारी, जो कार्मिक प्रबंधन, क्रय, सामान्य प्रशासन, सतर्कता और सुरक्षा से संबंधित मामलों की देखभाल करते है
वित्त और लेखा के मामलों में आंतरिक महोत्सव सलाहकार के परामर्श में लेखा
केंद्रीय चलचित्र प्रमाणन बोर्ड
सिनेमाटोग्राफ अधिनियम 1952 के तहत् स्थापित केंद्रीय चलचित्र प्रमाणन बोर्ड, भारत में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए फिल्मों का प्रमाणन करता है। बोर्ड में एक अध्यक्ष और 25 अन्य गैर सरकारी अधिकारी होते हैं। बोर्ड का मुख्यालय मुंबई में है और इसके नौ क्षेत्रीय कार्यालय - बैंगलोर, मुंबई, नई दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, चैन्नई, तिरुवनंतपुरम, कटक तथा गुवाहाटी में हैं। सलाहाकर पैनल फिल्मों की जांच में क्षेत्रीय कार्यालयों की सहायता करते हैं। इन पैनलों में समाज के विभिन्न वर्गों के लोग शामिल होते हैं। जानी मानी फिल्मी हस्ती श्रीमती शर्मिला टैगोर वर्तमान में बोर्ड की अध्यक्षा के रूप में कार्यरत हैं।
सिनेमाटोग्राफ अधिनियम 1952 के अनुच्छेद 5बी (2) के तहत् केंद्र सरकार द्वारा जारी सांविधिक दिशानिर्देशों का उल्लंघन किए जाने के कारण 43 भारतीय और 16 विदेशी फीचर फिल्मों के प्रमाणपत्र नामंजूर किए गए। इनमें से कुछ को बाद में संशोधन के बाद प्रमाणपत्र दे दिए गए।
केंद्रीय चलचित्र प्रमाणन बोर्ड के सदस्यों की 108वीं बैठक हैदराबाद में 27 मार्च, 2006 को हुई। केंद्रीय चलचित्र प्रमाणन बोर्ड के सदस्यों की 109वीं बैठक बैंगलोर में 31 जुलाई, 2006 को हुई। केंद्रीय चलचित्र प्रमाणन बोर्ड के सदस्यों की 110वीं बैठक पुडुचेरी में 17 दिसंबर, 2006 को हुई। सभी बैठकों श्रीमती शर्मिला टेगौर जो बोर्ड की अध्यक्षा के सामने हुई।
फिल्मों के निरीक्षण के लिए सलाहकार पैनल के सदस्यों के लिए कार्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। सलाहकार पैनल के सदस्यों तथा निरीक्षण अधिकारियों के लिए पिछले वर्ष विभिन्न क्षेत्रीय केंद्रों में कार्य गोष्ठियां आयोजित की गई। इस दौरान फिल्मों के निरीक्षण से संबद्ध विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई और फिल्मों को प्रमाणपत्र देने संबंधी विभिन्न दिशानिर्देशों को समझाने के लिए कुछ चुनिदां फिल्मों से काटे गए हिस्से दिखाए गए। इन कार्य गोठिष्यों में अनुशासन और आचार संहिता पर अमल की आवश्यकता पर बल दिया गया।
सिनेमेटोग्राफ अधिनियम के तहत् न तो बोर्ड और न ही केंद्र सरकार के पास फिल्मों के प्रदर्शन के समय बोर्ड के फैसले लागू करने का अधिकार है। यह अधिकार राज्य सरकारों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन को दिया गया है। बोर्ड ने फिल्मों में अंतर्वेशन की पहचान को व्यवस्थित करने के समय-समय पर प्रयास किए हैं। वर्ष के दौरान सभी नौ क्षेत्रों में प्रतिबंधों का उल्लंघन रोकने में प्राइवेट जासूसी एजेंसियों की मदद ली गई।
वर्ष 2006 में जनवरी से दिसंबर तक फिल्मों में विभिन्न स्थानों पर अंतर्वेशन 46 मामले सामने आए और इनकी जांच रिपोर्ट संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट को आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी गई।
सीबीएफसी का कार्यभार विभिन्न चैनलों की फिल्मों के प्रमाणन के कारण बढ़ता गया है, जैसा कि मुम्बई उच्च न्यायालय के निर्णय में बताया गया। वीडियो फिल्मों के प्रमाणन में वृद्धि 2005 में 4188 से बढ़कर 2006 में 7129 हो गई है। लक्ष्य और समय सीमाओं को पूरा करने के लिए प्रमाणन कार्य में तेजी लाने हेतु सीबीएफसी के विभिन्न क्षेत्रों में सीबीएफसी ने विभिन्न सेटेलाइट चैनलों के कार्य को वितरित किया है। फिल्मों के कार्य के निपटान हेतु केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से अतिरिक्त जांच अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर बुलाया गया है।
राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम लिमिटेड
राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम लिमिटेड की स्थापना 1975 में हुई थी। वर्ष 1980 में भारतीय चलचित्र निर्यात निगम और फिल्म वित्त निगम के विलय के बाद इसका पुनर्गठन किया गया। इस निगम का मुख्य उद्देश्य भारत में सिनेमा की गुणवत्ता में सुधार लाना और श्रव्य-दृश्य तथा संबंधित क्षेत्रों में अति आधुनिक प्रौद्योगिकी विकसित करना है। निगम की मुख्य गतिविधियों में शामिल हैं: सामाजिक दृष्टि से उपयुक्त विषयों पर रचनात्मक व कलात्मक उत्कृष्टता वाली और प्रायोगिक स्वरूप वाली बढ़िया फिल्मों का वित्त पोषण और निर्माण तथा विभिन्न माध्यमों से फिल्मों का वितरण व प्रसार। राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम उद्योग को नवीनतम प्रौद्योगिकी के अनुरूप आवश्यक निर्माण पूर्व और निर्माण पश्चात बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराता है। यह फिल्म समितियों, राष्ट्रीय फिल्म सर्किल सप्ताहों, भारतीय फिल्मों की झांकी और फिल्म समारोहों के आयोजन से फिल्म संस्कृति और फिल्मों की समझ विकसित करने के प्रयास करता है।
एनएफडीसी गुणवत्ता, विषय वस्तु और निर्माण मूल्यों दृष्टि से उत्कृष्ट, कम बजट की फिल्मों की अवधारणा को बढ़ावा देता है।
एनएफडीसी वेणु निर्दशित निगम की पिरनामम (मलयालम) को अशदोद अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह इज्रराइल में सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
निगम ने सीआईआई के साथ मिलकर आईएफएफआई के दौरान गोवा में फिल्म बाजार का आयोजन किया।
एनएफडीसी द्वारा स्थापित सिने कलाकार कल्याण कोष भारतीय फिल्म उद्योग का सबसे बड़ा ट्रस्ट है। इसका संग्रहित कोष 4.48 करोड़ रुपए हैं।
फिल्म समारोह निदेशालय
फिल्म समारोह निदेशालय की स्थापना 1973 में की गई। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन इस निदेशालय का उद्देश्य, अच्छे सिनेमा को प्रोत्साहन देना है। इसके लिए यह निम्न वर्गों के तहत् अपनी गतिविधियों का संचालन करता है:
अंतरराष्ट्रीय भारतीय फिल्म समारोह।
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार तथा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार।
सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम तथा विदेशों में शिष्टमंडलों के ज़रिए भारतीय फिल्म प्रदर्शन का आयोजन।
भारतीय पनोरमा का चयन।
विदेशों में अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भागीदारी।
भारत सरकार की ओर से विशेष फिल्मों का प्रदर्शन।
प्रिंट संग्रहण तथा अभिलेखन।
ये गतिविधियां, सिनेमा के क्षेत्र में भारत और अन्य देशों के बीच विचारों, संस्कृति तथा अनुभव के आदान-प्रदान के लिए बेजोड़ मंच प्रदान करती हैं। ये भारतीय सिनेमा को सशक्त मंच प्रदान करती हैं
तथा भारतीय फिल्मों के लिए व्यावसायिक अवसरों को बढ़ावा देती हैं। देश के भीतर इसने विश्व सिनेमा की नवीनतम प्रवृत्तियां आम जनता, फिल्म उद्योग तथा विद्यार्थियों तक पहुंचने का काम किया है।
भारत का राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार
भारत के राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार की स्थापना फरवरी 1964 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन एक स्वतंत्र मीडिया इकाई के रूप में की गई। एनएफएआई का प्राथमिक चार्टर भारतीय सिनेमा की विरासत को प्रदर्शन हेतु सुरक्षित रखना है और यह देश में एक स्वस्थ फिल्म संस्कृति के प्रसार के लिए एक केन्द्र के रूप में कार्य करता है। सिनेमा के विभिन्न पक्षों पर फिल्म छात्रवृत्तियों और अनुसंधान को प्रोत्साहन देना भी इसकी उद्देश्यों का भाग है। भारतीय सिनेमा के साथ विदेशी दर्शकों को परिचित करना और अभिलेखागार के अन्य घोषित कार्य में इसे दुनिया भर में और अधिक दृष्टव्य बनाना शामिल है।
एनएफएआई मई 1969 से अंतरराष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार का सदस्य है जो संरक्षण तकनीकी और दस्तावेज़ीकरण आदि के बारे में इसे विशेषज्ञों की सलाह उपलब्ध कराता है। अभिलेखागार के पास अंतरराष्ट्रीय फिल्म परिरक्षण मानकों के अनुरूप अपना फिल्म वॉल्ट्स है। रंगीन फिल्मों के संरक्षण हेतु विशेष वॉल्ट का निर्माण भी जारी है। विश्व भर में सिनेमा के बारे में प्रकाशित 25,000 से अधिक पुस्तकों की लाइब्रेरी सिनेमा के गंभीर छात्रों के लिए एक वरदान है। लाइब्रेरी में 100 से अधिक भारतीय और विदेशी फिल्म पत्रिकाएं आती हैं। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से प्राप्त भारतीय और विदेशी फिल्मों की 30,000 से अधिक पटकथाएं भी अभिलेखागार में सुरक्षित हैं।
यह पुरातत्व विभाग का कार्य है कि संग्रह को समृद्ध बनाने के लिए राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय फिल्मों की खोज और अधिग्रहण करें। विश्व भर में सिनेमा के बारे में प्रकाशित 30,000 से अधिक पुस्तकों की लाइब्रेरी सिनेमा के गंभीर छात्रों के लिए एक वरदान है। लाइब्रेरी में 100 से अधिक भारतीय और विदेशी फिल्म पत्रिकाएं आती हैं। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से प्राप्त भारतीय और विदेशी फिल्मों की 30,000 से अधिक पटकथाएं भी अभिलेखागार में सुरक्षित हैं।
अनुसंधान और दस्तावेजीकरण केंद्र में भारतीय सिनेमा की सहायक सामग्री का विशाल संग्रह है। यह केंद्र फिल्मों के फोटोग्राफ/स्टिल्स, गीतों की पुस्तिकाएं, पोस्टर, पर्चे और अन्य प्रचार सामग्री एकत्र करने की कोशिश करता है, जो विभिन्न फिल्म प्रमाणित की जाती हैं।
एनएफएआई सिनेमा के सभी पहलुओं के बारे में अनुसंधान और अकादमिक गतिविधियों को बढ़ावा देता है। यह जाने माने भारतीय फिल्म निर्माताओं और अग्रणी फिल्मी हस्तियों के बारे में मोनोग्राफ, भारतीय सिनेमा से जुड़ी विषयवस्तु पर अनुसंधान वृत्त और वरिष्ठ कलाकारों और तकनीशियनों से इतिहास की रिकॉर्डिंग का काम सौंपता है। अभिलेखागार अब तक ऐसी 12 परियोजना का प्रकाशन कर चुका है। फिल्म संस्कृति के प्रचार के लिए एनएफएआई के पास फिल्म वितरण लाइब्रेरी है जो फिल्म सोसायटियां, शिक्षा संस्थानों और सांस्कृतिक संगठनों को फिल्म की आपूर्ति करती है। यह मुंबई, कोलकाता, बैंगलोर, चैन्नई, हैदराबाद, तिरुवनंतपुरम, कोच्चि, जमशेदपुर, पुणे और दिल्ली जैसे केंद्रों पर संयुक्त प्रदर्शन का काम भी करता है। यह भारत और विदेश में अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के लिए फिल्मों का बड़ा स्रोत है।
एनएफआई पिछले तीन दशक से पुणे में भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान के सहयोग से हर वर्ष चार सप्ताह का फिल्म समीक्षा पाठ्यक्रम चलाता है। विभिन्न पेशों से जुड़े लोगों को भारत और विश्व के सर्वश्रेष्ठ सिनेमा के बारे में जानकारी मिलती है। इसमें फिल्म माध्यम की मूल बातें, एक कला के रूप में सिनेमा, फिल्म इतिहास, फिल्म सिद्धांत, सिनेमा का अन्य कलाओं से संबंध के बारे में पढ़ाया जाता है। अभिलेखागार पुणे से बाहर की शिक्षा संस्थाओं और सांस्कृतिक संगठनों के सहयोग से इसी तरह से पाठ्यक्रम चलाता है।
भारत और विदेश के विद्वान और शोधकर्त्ता एनएफएआई को स्रोत का बड़ा केंद्र मानते है, जहां उन्हें भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े संग्रह और संभवत: सिनेमा कला से जुड़ी सर्वश्रेष्ठ लाइब्रेरी मिलती है। एनएफएआई की वेबसाइट http://www.nfaipune.gov.in (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)है।
भारतीय बाल फिल्म समिति
भारतीय बाल फिल्म समिति की स्थापना 1955 में बच्चों को फिल्मों के माध्यम से उच्च आदर्शों की प्रेरणा देने वाला मनोरंजन प्रदान करने के उद्देश्य से की गई। समिति बच्चों की फिल्मों का निर्माण, संग्रहण, वितरण/प्रदर्शन और संवर्द्धन करती है।
बाल फिल्म समिति का मुख्यालय मुंबई में है और नई दिल्ली तथा चेन्नई में इसके क्षेत्रीय/शाखा कार्यालय है। समिति द्वारा निर्मित/संग्रहित फिल्मों का प्रदर्शन राज्य/जिलावार बाल फिल्म समारोहों, थियेटरों और स्कूलों में गैर थियेटर मंचों के माध्यम से वितरकों तथा गैर सरकारी संगठनों के जरिए किया जाता है। बाल फिल्मों का राज्य और जिला स्तर पर समारोहों का आयोजन अप्रैल-मई 2006 में उत्तर पूर्व क्षेत्र में किया गया। मेघालय, असम, त्रिपुरा में लगभग 97,000 बच्चों के लिए 206 शो किए गए। समिति अपनी फिल्मों के वीडियो कैसेट तथा सीडी का विक्रय भी करती है। भारतीय बाल फिल्म समिति की फिल्मों का प्रसारण नियमित रूप से टेलीविजन चैनलों पर किया जाता है। समिति द्वारा निर्मित फिल्मों का प्रसारण नियमित रूप से टेलीविजन चैनलों पर किया जाता है। समिति द्वारा निर्मित फिल्मों का प्रसारण विभिन्न राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय समारोहों में किया गया। इन फिल्मों ने कई पुरस्कार भी जीते। वर्ष 2006-07 के दौरान समिति ने अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म समारोह में हिस्सा लिया। यह हर दूसरे वर्ष अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म समारोह का आयोजन करती है। भारतीय बाल फिल्म समिति के सार्थक अस्तित्व के 50 वर्ष पूरे होने पर यह अपनी स्वर्ण जयंती मना रही हैं, जिसे 14 से 18 नवम्बर 2006 में सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली में मनाया गया।
विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय
डीएवीपी भारत सरकार की प्रमुख मल्टीमीडिया विज्ञापन एजेंसी है। सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों को विभिन्न माध्यमों से प्रचारित करने वाली यह सिंगल-विंडो एजेंसी है। इन माध्यमों में समाचार पत्र विज्ञापन, मुद्रित प्रचार सामग्री (फोल्डर, पोस्टर, ब्रोशर, किट, पुस्तिकाएं, कैलेंडर तथा डायरियां), बाहरी प्रचार (होर्डिंग, बस बैक पैनल, बैनर, कियोस्क, कंप्यूटर, एनिमेशन डिस्प्ले इत्यादि), दृश्य-श्रव्य प्रचार (ओडियो वीडियो स्पॉट, लघु फिल्में, डॉक्यु ड्रामा, जिंगल, प्रयोजित कार्यक्रम इत्यादि) और प्रदर्शनियां शामिल हैं। विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय का मुख्यालय दिल्ली में है। इसके बैंगलोर तथा गुवाहाटी में दो क्षेत्रीय कार्यालय हैं और देश भर में इसकी 32 क्षेत्रीय प्रदर्शनी इकाइयां हैं।
प्रेस विज्ञापन: डीएवीपी की सूची में 3000 समाचार पत्र तथा सावधि प्रकाशन हैं, जिन्हें सभी राज्यों में जानी जाने वाली 22 भाषाओं में विज्ञापन जारी किए जाते हैं। यह सूची भारत सरकार की विज्ञान नीति के दिशानिर्देशों तथा प्रक्रियाओं के आधार पर तैयार की जाती है। इसका उद्देश्य सरकार के संदेशों, लक्ष्यों तथा बजट का विज्ञापनों के माध्यम से अधिक से अधिक प्रचार करना है। निदेशालय ने वित्त वर्ष 2006-07 के दौरान तक 19,010 विज्ञापन जारी किए।
दृश्य-श्रव्य प्रचार: डीएवीपी का दृश्य-श्रव्य कक्ष, मंत्रालयों तथा विभागों के लिए सामाजिक विषयों पर स्पॉट तथा कार्यक्रम बनाता है तथा प्रसारित करता है। निदेशालय दृश्य/श्रव्य कार्यक्रम सूचीबद्ध निर्माताओं द्वारा निर्मित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों में ऑडियो तथा वीडियो स्पॉट/जिंगल, प्रयोजित तथा लोकसंगीत आधारित रेडियो कार्यक्रम, प्रेरणादायक टेली फिल्में शामिल हैं जिन्हें राष्ट्रीय प्रसारण के लिए हिंदी, अंग्रेजी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में डब किया जाता है। वर्ष 2006-07 के दौरान रेडियो स्पॉट/जिंगल, 467 वीडियो स्पॉट/फिल्मों तथा प्रायोजित रेडियो/वीडियो कार्यक्रमों सहित 1,34,380 ऑडियो-वीडियो कार्यक्रमों का निर्माण विभिन्न भाषाओं में किया गया।
मुद्रित प्रचार सामग्री: सरकार द्वारा जन-जन तक पहुंचाने के लिए सामाजिक महत्व के संदेशों के बारे में निदेशालय द्वारा विभिन्न प्रकार की प्रचार सामग्री जैसे पोस्टर, फोल्डर, पुस्तिकाएं, ब्रोशर, डायरी, कैलेंडर, दीवार पर लटकाने की सामग्री, स्टिकर आदि की डिजाइन और मुद्रण हिंदी, अंग्रेजी और विभिन्न भारतीय भाषाओं में होता है। वर्ष 2006-07 के दौरान डीएवीपी ने प्रचार मदों पर 570.35 लाख रु. मूल्य का प्रकाशन विभिन्न भाषाओं में किया।
प्रदर्शनी: फोटो प्रदर्शनियां राष्ट्रीय विकास और सामाजिक महत्व के विभिन्न मुद्दों का संदेश प्रचारित करने का महत्वपूर्ण माध्यम हैं। डीएवीपी निदेशालय विभिन्न विषयों पर प्रदर्शन के लिए प्रदर्शनी सामग्री, फिल्म-संग्रंथन (मोंटाज़) शिल्प तथ्य को मूर्त रूप देता है तथा तत्संबंधी डिजाइन, विकास और निर्माण कार्य करता है। वर्ष 2006-07 के दौरान देशभर में 704 फोटो प्रदर्शनियां लगाई गई, जो 2,860 प्रदर्शनी दिवसों तक जारी रहीं।
बाहरी प्रचार: केंद्र सरकार के मंत्रालयों/विभागों की नीतियों/कार्यक्रमों का संदेश प्रदर्शित करने के लिए डीएवीपी द्वारा होर्डिंग्स, दीवारों पर चित्रांकन, सिनेमा स्लाइड्स, कंप्यूटरीकृत एनिमेशन डिस्प्ले, कियोस्क, बस क्यू शेल्टरों, बस के पीछे लगे पैनल आदि विभिन्न प्रकार के बाह्य प्रचार-प्रचार का इस्तेमाल किया गया। यह एक पारम्परिक किन्तु किसी संदेश को फैलाने और प्रदर्शित करने का एक प्रभावी साधन है जो आने जाने वालों को लगातार इसकी याद दिलाता है। वर्ष 2006-07 में 449.38 लाख रु. मूल्य के 7870 डिस्प्ले का निष्पादन निदेशालय द्वारा किया गया।
मास मेलिंगडीएवीपी की मास मेलिंग विंग के पास 16.5 लाख से अधिक संगठनों के पते संरक्षित हैं, जहां लक्षित जानकारी और संदेश भेज कर देश भर में व्यापक जनसमुदाय तक पहुंचा जा सकता है। वर्ष 2006-07 के दौरान विभिन्न विषयों पर मुद्रित 1.18 करोड़ प्रतियां भेजी गई।
स्टूडियो: डीएवीपी का अपना एक संपूर्ण स्टूडियो हैं, जिसमें विभिन्न अभियानों के लिए अपेक्षित प्रचार सामग्री तैयार की जाती है। जिस क्षेत्र में प्रचार अभियान शुरू किया जाना है उसकी विशेष प्रचार जरुरतों को देखते हुए सामग्री का डिजाइन डीएवीपी ने अपने स्टूडियो में तैयार किए जाता है। स्टूडियो में डी.टी.पी. सेल है जिससे मुद्रित प्रचार सामग्री, प्रेस विज्ञापन, बाहरी विज्ञापन आदि तैयार किए जाते हैं।
प्रशिक्षण
भारतीय फिल्म तथा टेलीविजन संस्थान
पुणे का भारतीय फिल्म तथा टेलीविजन संस्थान, फिल्म निर्माण और टेलीविजन कार्यक्रमों के निर्माण की कला तथा शिल्प का प्रशिक्षण देने वाला एक प्रमुख संस्थान है। यह संस्थान फिल्म और टेलीविजन में तीन साल का पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा पाठ्यक्रम तथा टेलीविजन में एक वर्ष का प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम चलाता है। संस्थान ने अब फीचर फिल्म पटकथा लेखन में एक वर्ष का प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम और अभिनय में दो वर्ष का डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी शुरू किया है। शैक्षिक वर्ष 2005-06 से कला निर्देशन में दो वर्ष का पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा पाठ्यक्रम जिसमें 12 छात्र भर्ती किए गए, और एनिमेशन तथा कंप्यूटर ग्राफिक्स में डेढ़ वर्ष का प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम शुरू किया गया है। संस्थान, दूरदर्शन के कर्मचारियों के लिए टेलीविजन निर्माण तथा तकनीकी कार्यों का प्रशिक्षण पाठ्यक्रम चलाता है और अब तक पांच हजार से अधिक प्रशिक्षणार्थियों ने प्रशिक्षण पूरा कर लिया है। यह मीडिया से संबंधित विभिन्न व्यवसायिक विषयों में अल्पावधि पाठ्यक्रम भी चलाता है।
संस्थान अपने छात्रों द्वारा निर्मित फिल्में नियमित रूप से राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय समारोहों से प्रतियोगिता तथा गैर-प्रतियोगिता दोनों वर्गों के लिए भेजता है, ताकि उन्हें अपने काम के प्रदर्शन का मौका मिल सके। इनमें से कई फिल्मों ने राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं। संस्थान अपने छात्रों और संकाय सदस्यों के लिए आदान-प्रदान कार्यक्रम द्वारा दुनिया के प्रमुख अन्य फिल्म स्कूलों के साथ गठबंधन सुदृढ़ बनाने में भी शामिल है।
संस्थान का एक महत्वपूर्ण वार्षिक आयोजन चार सप्ताह का ग्रीष्मकालीन फिल्म समीक्षा पाठ्यक्रम है, जिसे वह पुणे के राष्ट्रीय भारतीय फिल्म अभिलेखागार के सहयोग से चलाता है।
सत्यजीत रे फिल्म तथा टेलीविजन संस्थान
सत्यजीत रे फिल्म तथा टेलीविजन संस्थान, कोलकाता की स्थापना, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत्, एक स्वायत्त शैक्षिक संस्थान के रूप में की गई। इसका पंजीकरण 1995 में, पश्चिम बंगाल, संस्था पंजीकरण अधिनियम, 1961 के अंतर्गत किया गया। यह एक राष्ट्रीय संस्थान है जिसमें 3 वर्ष के पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा पाठ्यक्रम:
फिल्म निर्देशन और पटकथा लेखन
मोशन फिल्म फोटोग्राफी
संपादन फिल्म और वीडियो और
साउंड रिकॉर्डिंग में चलते हैं।
विभिन्न पाठ्यक्रमों में भर्ती के लिए, संस्थान अखिल भारतीय स्तर पर परीक्षा आयोजित करता है। 'चेन पाओ चाइनीज चिली सॉस', 'हियर इज माय नॉक्टर्न' और 'फ्लाइट ऑफ डिस्ट्रेस' नामक वृत चित्रों को मुंबई फिल्म समारोह 2006 में अधिकारिक प्रविष्टि मिली। 'हियर इज माय नॉक्टर्न' को केंस फिल्म समारोह 2006 में प्रदर्शन के लिए चुना गया। संस्थान की कई फिल्मों को भारत और विदेश के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों का आमंत्रण मिला। संस्थान के छात्रों के प्रयासों को विश्व के सिने प्रेमियों ने हमेशा सराहा। संस्थान फिल्मों और दृश्य कला/मीडिया पर नियमित रूप से गोष्ठियों/सम्मेलन/प्रदशर्नियों का आयोजन करता है। संस्थान ने दिसंबर 2005 में दोएज-2005 नाम पटकथा विकास, सह-निर्माण पर अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया जो बहुत सफल रहा। इसके अलावा संस्थान ने भारतीय सूचना सेवा के अधिकारियों और केंद्रीय विद्यालय जैसे अन्य शिक्षा संस्थाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए।
भारत के राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार की स्थापना फरवरी 1964 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन एक स्वतंत्र मीडिया इकाई के रूप में की गई। एनएफएआई का प्राथमिक चार्टर भारतीय सिनेमा की विरासत को प्रदर्शन हेतु सुरक्षित रखना है और यह देश में एक स्वस्थ फिल्म संस्कृति के प्रसार के लिए एक केन्द्र के रूप में कार्य करता है। सिनेमा के विभिन्न पक्षों पर फिल्म छात्रवृत्तियों और अनुसंधान को प्रोत्साहन देना भी इसकी उद्देश्यों का भाग है। भारतीय सिनेमा के साथ विदेशी दर्शकों को परिचित करना और अभिलेखागार के अन्य घोषित कार्य में इसे दुनिया भर में और अधिक दृष्टव्य बनाना शामिल है।
एनएफएआई मई 1969 से अंतरराष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार का सदस्य है जो संरक्षण तकनीकी और दस्तावेज़ीकरण आदि के बारे में इसे विशेषज्ञों की सलाह उपलब्ध कराता है। अभिलेखागार के पास अंतरराष्ट्रीय फिल्म परिरक्षण मानकों के अनुरूप अपना फिल्म वॉल्ट्स है। रंगीन फिल्मों के संरक्षण हेतु विशेष वॉल्ट का निर्माण भी जारी है। विश्व भर में सिनेमा के बारे में प्रकाशित 25,000 से अधिक पुस्तकों की लाइब्रेरी सिनेमा के गंभीर छात्रों के लिए एक वरदान है। लाइब्रेरी में 100 से अधिक भारतीय और विदेशी फिल्म पत्रिकाएं आती हैं। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से प्राप्त भारतीय और विदेशी फिल्मों की 30,000 से अधिक पटकथाएं भी अभिलेखागार में सुरक्षित हैं।
यह पुरातत्व विभाग का कार्य है कि संग्रह को समृद्ध बनाने के लिए राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय फिल्मों की खोज और अधिग्रहण करें। विश्व भर में सिनेमा के बारे में प्रकाशित 30,000 से अधिक पुस्तकों की लाइब्रेरी सिनेमा के गंभीर छात्रों के लिए एक वरदान है। लाइब्रेरी में 100 से अधिक भारतीय और विदेशी फिल्म पत्रिकाएं आती हैं। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से प्राप्त भारतीय और विदेशी फिल्मों की 30,000 से अधिक पटकथाएं भी अभिलेखागार में सुरक्षित हैं।
अनुसंधान और दस्तावेजीकरण केंद्र में भारतीय सिनेमा की सहायक सामग्री का विशाल संग्रह है। यह केंद्र फिल्मों के फोटोग्राफ/स्टिल्स, गीतों की पुस्तिकाएं, पोस्टर, पर्चे और अन्य प्रचार सामग्री एकत्र करने की कोशिश करता है, जो विभिन्न फिल्म प्रमाणित की जाती हैं।
एनएफएआई सिनेमा के सभी पहलुओं के बारे में अनुसंधान और अकादमिक गतिविधियों को बढ़ावा देता है। यह जाने माने भारतीय फिल्म निर्माताओं और अग्रणी फिल्मी हस्तियों के बारे में मोनोग्राफ, भारतीय सिनेमा से जुड़ी विषयवस्तु पर अनुसंधान वृत्त और वरिष्ठ कलाकारों और तकनीशियनों से इतिहास की रिकॉर्डिंग का काम सौंपता है। अभिलेखागार अब तक ऐसी 12 परियोजना का प्रकाशन कर चुका है। फिल्म संस्कृति के प्रचार के लिए एनएफएआई के पास फिल्म वितरण लाइब्रेरी है जो फिल्म सोसायटियां, शिक्षा संस्थानों और सांस्कृतिक संगठनों को फिल्म की आपूर्ति करती है। यह मुंबई, कोलकाता, बैंगलोर, चैन्नई, हैदराबाद, तिरुवनंतपुरम, कोच्चि, जमशेदपुर, पुणे और दिल्ली जैसे केंद्रों पर संयुक्त प्रदर्शन का काम भी करता है। यह भारत और विदेश में अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के लिए फिल्मों का बड़ा स्रोत है।
एनएफआई पिछले तीन दशक से पुणे में भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान के सहयोग से हर वर्ष चार सप्ताह का फिल्म समीक्षा पाठ्यक्रम चलाता है। विभिन्न पेशों से जुड़े लोगों को भारत और विश्व के सर्वश्रेष्ठ सिनेमा के बारे में जानकारी मिलती है। इसमें फिल्म माध्यम की मूल बातें, एक कला के रूप में सिनेमा, फिल्म इतिहास, फिल्म सिद्धांत, सिनेमा का अन्य कलाओं से संबंध के बारे में पढ़ाया जाता है। अभिलेखागार पुणे से बाहर की शिक्षा संस्थाओं और सांस्कृतिक संगठनों के सहयोग से इसी तरह से पाठ्यक्रम चलाता है।
भारत और विदेश के विद्वान और शोधकर्त्ता एनएफएआई को स्रोत का बड़ा केंद्र मानते है, जहां उन्हें भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े संग्रह और संभवत: सिनेमा कला से जुड़ी सर्वश्रेष्ठ लाइब्रेरी मिलती है। एनएफएआई की वेबसाइट http://www.nfaipune.gov.in (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)है।
भारतीय बाल फिल्म समिति
भारतीय बाल फिल्म समिति की स्थापना 1955 में बच्चों को फिल्मों के माध्यम से उच्च आदर्शों की प्रेरणा देने वाला मनोरंजन प्रदान करने के उद्देश्य से की गई। समिति बच्चों की फिल्मों का निर्माण, संग्रहण, वितरण/प्रदर्शन और संवर्द्धन करती है।
बाल फिल्म समिति का मुख्यालय मुंबई में है और नई दिल्ली तथा चेन्नई में इसके क्षेत्रीय/शाखा कार्यालय है। समिति द्वारा निर्मित/संग्रहित फिल्मों का प्रदर्शन राज्य/जिलावार बाल फिल्म समारोहों, थियेटरों और स्कूलों में गैर थियेटर मंचों के माध्यम से वितरकों तथा गैर सरकारी संगठनों के जरिए किया जाता है। बाल फिल्मों का राज्य और जिला स्तर पर समारोहों का आयोजन अप्रैल-मई 2006 में उत्तर पूर्व क्षेत्र में किया गया। मेघालय, असम, त्रिपुरा में लगभग 97,000 बच्चों के लिए 206 शो किए गए। समिति अपनी फिल्मों के वीडियो कैसेट तथा सीडी का विक्रय भी करती है। भारतीय बाल फिल्म समिति की फिल्मों का प्रसारण नियमित रूप से टेलीविजन चैनलों पर किया जाता है। समिति द्वारा निर्मित फिल्मों का प्रसारण नियमित रूप से टेलीविजन चैनलों पर किया जाता है। समिति द्वारा निर्मित फिल्मों का प्रसारण विभिन्न राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय समारोहों में किया गया। इन फिल्मों ने कई पुरस्कार भी जीते। वर्ष 2006-07 के दौरान समिति ने अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म समारोह में हिस्सा लिया। यह हर दूसरे वर्ष अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म समारोह का आयोजन करती है। भारतीय बाल फिल्म समिति के सार्थक अस्तित्व के 50 वर्ष पूरे होने पर यह अपनी स्वर्ण जयंती मना रही हैं, जिसे 14 से 18 नवम्बर 2006 में सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली में मनाया गया।
विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय
डीएवीपी भारत सरकार की प्रमुख मल्टीमीडिया विज्ञापन एजेंसी है। सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों को विभिन्न माध्यमों से प्रचारित करने वाली यह सिंगल-विंडो एजेंसी है। इन माध्यमों में समाचार पत्र विज्ञापन, मुद्रित प्रचार सामग्री (फोल्डर, पोस्टर, ब्रोशर, किट, पुस्तिकाएं, कैलेंडर तथा डायरियां), बाहरी प्रचार (होर्डिंग, बस बैक पैनल, बैनर, कियोस्क, कंप्यूटर, एनिमेशन डिस्प्ले इत्यादि), दृश्य-श्रव्य प्रचार (ओडियो वीडियो स्पॉट, लघु फिल्में, डॉक्यु ड्रामा, जिंगल, प्रयोजित कार्यक्रम इत्यादि) और प्रदर्शनियां शामिल हैं। विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय का मुख्यालय दिल्ली में है। इसके बैंगलोर तथा गुवाहाटी में दो क्षेत्रीय कार्यालय हैं और देश भर में इसकी 32 क्षेत्रीय प्रदर्शनी इकाइयां हैं।
प्रेस विज्ञापन: डीएवीपी की सूची में 3000 समाचार पत्र तथा सावधि प्रकाशन हैं, जिन्हें सभी राज्यों में जानी जाने वाली 22 भाषाओं में विज्ञापन जारी किए जाते हैं। यह सूची भारत सरकार की विज्ञान नीति के दिशानिर्देशों तथा प्रक्रियाओं के आधार पर तैयार की जाती है। इसका उद्देश्य सरकार के संदेशों, लक्ष्यों तथा बजट का विज्ञापनों के माध्यम से अधिक से अधिक प्रचार करना है। निदेशालय ने वित्त वर्ष 2006-07 के दौरान तक 19,010 विज्ञापन जारी किए।
दृश्य-श्रव्य प्रचार: डीएवीपी का दृश्य-श्रव्य कक्ष, मंत्रालयों तथा विभागों के लिए सामाजिक विषयों पर स्पॉट तथा कार्यक्रम बनाता है तथा प्रसारित करता है। निदेशालय दृश्य/श्रव्य कार्यक्रम सूचीबद्ध निर्माताओं द्वारा निर्मित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों में ऑडियो तथा वीडियो स्पॉट/जिंगल, प्रयोजित तथा लोकसंगीत आधारित रेडियो कार्यक्रम, प्रेरणादायक टेली फिल्में शामिल हैं जिन्हें राष्ट्रीय प्रसारण के लिए हिंदी, अंग्रेजी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में डब किया जाता है। वर्ष 2006-07 के दौरान रेडियो स्पॉट/जिंगल, 467 वीडियो स्पॉट/फिल्मों तथा प्रायोजित रेडियो/वीडियो कार्यक्रमों सहित 1,34,380 ऑडियो-वीडियो कार्यक्रमों का निर्माण विभिन्न भाषाओं में किया गया।
मुद्रित प्रचार सामग्री: सरकार द्वारा जन-जन तक पहुंचाने के लिए सामाजिक महत्व के संदेशों के बारे में निदेशालय द्वारा विभिन्न प्रकार की प्रचार सामग्री जैसे पोस्टर, फोल्डर, पुस्तिकाएं, ब्रोशर, डायरी, कैलेंडर, दीवार पर लटकाने की सामग्री, स्टिकर आदि की डिजाइन और मुद्रण हिंदी, अंग्रेजी और विभिन्न भारतीय भाषाओं में होता है। वर्ष 2006-07 के दौरान डीएवीपी ने प्रचार मदों पर 570.35 लाख रु. मूल्य का प्रकाशन विभिन्न भाषाओं में किया।
प्रदर्शनी: फोटो प्रदर्शनियां राष्ट्रीय विकास और सामाजिक महत्व के विभिन्न मुद्दों का संदेश प्रचारित करने का महत्वपूर्ण माध्यम हैं। डीएवीपी निदेशालय विभिन्न विषयों पर प्रदर्शन के लिए प्रदर्शनी सामग्री, फिल्म-संग्रंथन (मोंटाज़) शिल्प तथ्य को मूर्त रूप देता है तथा तत्संबंधी डिजाइन, विकास और निर्माण कार्य करता है। वर्ष 2006-07 के दौरान देशभर में 704 फोटो प्रदर्शनियां लगाई गई, जो 2,860 प्रदर्शनी दिवसों तक जारी रहीं।
बाहरी प्रचार: केंद्र सरकार के मंत्रालयों/विभागों की नीतियों/कार्यक्रमों का संदेश प्रदर्शित करने के लिए डीएवीपी द्वारा होर्डिंग्स, दीवारों पर चित्रांकन, सिनेमा स्लाइड्स, कंप्यूटरीकृत एनिमेशन डिस्प्ले, कियोस्क, बस क्यू शेल्टरों, बस के पीछे लगे पैनल आदि विभिन्न प्रकार के बाह्य प्रचार-प्रचार का इस्तेमाल किया गया। यह एक पारम्परिक किन्तु किसी संदेश को फैलाने और प्रदर्शित करने का एक प्रभावी साधन है जो आने जाने वालों को लगातार इसकी याद दिलाता है। वर्ष 2006-07 में 449.38 लाख रु. मूल्य के 7870 डिस्प्ले का निष्पादन निदेशालय द्वारा किया गया।
मास मेलिंगडीएवीपी की मास मेलिंग विंग के पास 16.5 लाख से अधिक संगठनों के पते संरक्षित हैं, जहां लक्षित जानकारी और संदेश भेज कर देश भर में व्यापक जनसमुदाय तक पहुंचा जा सकता है। वर्ष 2006-07 के दौरान विभिन्न विषयों पर मुद्रित 1.18 करोड़ प्रतियां भेजी गई।
स्टूडियो: डीएवीपी का अपना एक संपूर्ण स्टूडियो हैं, जिसमें विभिन्न अभियानों के लिए अपेक्षित प्रचार सामग्री तैयार की जाती है। जिस क्षेत्र में प्रचार अभियान शुरू किया जाना है उसकी विशेष प्रचार जरुरतों को देखते हुए सामग्री का डिजाइन डीएवीपी ने अपने स्टूडियो में तैयार किए जाता है। स्टूडियो में डी.टी.पी. सेल है जिससे मुद्रित प्रचार सामग्री, प्रेस विज्ञापन, बाहरी विज्ञापन आदि तैयार किए जाते हैं।
प्रशिक्षण
भारतीय फिल्म तथा टेलीविजन संस्थान
पुणे का भारतीय फिल्म तथा टेलीविजन संस्थान, फिल्म निर्माण और टेलीविजन कार्यक्रमों के निर्माण की कला तथा शिल्प का प्रशिक्षण देने वाला एक प्रमुख संस्थान है। यह संस्थान फिल्म और टेलीविजन में तीन साल का पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा पाठ्यक्रम तथा टेलीविजन में एक वर्ष का प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम चलाता है। संस्थान ने अब फीचर फिल्म पटकथा लेखन में एक वर्ष का प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम और अभिनय में दो वर्ष का डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी शुरू किया है। शैक्षिक वर्ष 2005-06 से कला निर्देशन में दो वर्ष का पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा पाठ्यक्रम जिसमें 12 छात्र भर्ती किए गए, और एनिमेशन तथा कंप्यूटर ग्राफिक्स में डेढ़ वर्ष का प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम शुरू किया गया है। संस्थान, दूरदर्शन के कर्मचारियों के लिए टेलीविजन निर्माण तथा तकनीकी कार्यों का प्रशिक्षण पाठ्यक्रम चलाता है और अब तक पांच हजार से अधिक प्रशिक्षणार्थियों ने प्रशिक्षण पूरा कर लिया है। यह मीडिया से संबंधित विभिन्न व्यवसायिक विषयों में अल्पावधि पाठ्यक्रम भी चलाता है।
संस्थान अपने छात्रों द्वारा निर्मित फिल्में नियमित रूप से राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय समारोहों से प्रतियोगिता तथा गैर-प्रतियोगिता दोनों वर्गों के लिए भेजता है, ताकि उन्हें अपने काम के प्रदर्शन का मौका मिल सके। इनमें से कई फिल्मों ने राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं। संस्थान अपने छात्रों और संकाय सदस्यों के लिए आदान-प्रदान कार्यक्रम द्वारा दुनिया के प्रमुख अन्य फिल्म स्कूलों के साथ गठबंधन सुदृढ़ बनाने में भी शामिल है।
संस्थान का एक महत्वपूर्ण वार्षिक आयोजन चार सप्ताह का ग्रीष्मकालीन फिल्म समीक्षा पाठ्यक्रम है, जिसे वह पुणे के राष्ट्रीय भारतीय फिल्म अभिलेखागार के सहयोग से चलाता है।
सत्यजीत रे फिल्म तथा टेलीविजन संस्थान
सत्यजीत रे फिल्म तथा टेलीविजन संस्थान, कोलकाता की स्थापना, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत्, एक स्वायत्त शैक्षिक संस्थान के रूप में की गई। इसका पंजीकरण 1995 में, पश्चिम बंगाल, संस्था पंजीकरण अधिनियम, 1961 के अंतर्गत किया गया। यह एक राष्ट्रीय संस्थान है जिसमें 3 वर्ष के पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा पाठ्यक्रम:
फिल्म निर्देशन और पटकथा लेखन
मोशन फिल्म फोटोग्राफी
संपादन फिल्म और वीडियो और
साउंड रिकॉर्डिंग में चलते हैं।
विभिन्न पाठ्यक्रमों में भर्ती के लिए, संस्थान अखिल भारतीय स्तर पर परीक्षा आयोजित करता है। 'चेन पाओ चाइनीज चिली सॉस', 'हियर इज माय नॉक्टर्न' और 'फ्लाइट ऑफ डिस्ट्रेस' नामक वृत चित्रों को मुंबई फिल्म समारोह 2006 में अधिकारिक प्रविष्टि मिली। 'हियर इज माय नॉक्टर्न' को केंस फिल्म समारोह 2006 में प्रदर्शन के लिए चुना गया। संस्थान की कई फिल्मों को भारत और विदेश के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों का आमंत्रण मिला। संस्थान के छात्रों के प्रयासों को विश्व के सिने प्रेमियों ने हमेशा सराहा। संस्थान फिल्मों और दृश्य कला/मीडिया पर नियमित रूप से गोष्ठियों/सम्मेलन/प्रदशर्नियों का आयोजन करता है। संस्थान ने दिसंबर 2005 में दोएज-2005 नाम पटकथा विकास, सह-निर्माण पर अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया जो बहुत सफल रहा। इसके अलावा संस्थान ने भारतीय सूचना सेवा के अधिकारियों और केंद्रीय विद्यालय जैसे अन्य शिक्षा संस्थाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए।
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