मीडिया जमीन से जुड़े, नई तकनीक अपनाए: आलोक तोमर स्मृति विमर्श



प्रभासाक्षी  21 मार्च 2015    नई दिल्ली

छोटे शहरों के उपेक्षित लोगों की आवाज उठाने वाले पत्रकारों की संख्या तेजी से सिकुड़ रही है। इसे गंभीरता से लेना होगा, तभी पत्रकारिता जिंदा रहेगी। इंटरनेट युग में पारंपरिक मीडिया के सामने नई किस्म की चुनौतियाँ सामने आ रही हैं जो कन्टेन्ट से लेकर डिलीवरी और विज्ञापनों से लेकर प्रॉडक्शन के स्तर तक हैं। इन्हें अनदेखा करना कुछ वर्ष बाद उसके लिए बड़ा संकट पैदा कर सकता है। यह बात आलोक तोमर के चौथे स्मृति विमर्श पर वक्ताओं ने कही। शुक्रवार को कांस्टीट्यूशन क्लब में इस बाबत एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया था, जिसमें राजनीति से लेकर मीडिया के कई अहम लोगों ने अपने विचार रखे।

परिचर्चा 'भविष्य के मीडिया की चुनौतियाँ' विषय पर हुई जिसमें केंद्रीय इस्पात और खान मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी, सांसद केसी त्यागी, प्रभात झा और डीपी त्रिपाठी, शिक्षाविद् निशीथ राय, बीबीसी हिंदी के संपादक निधीश त्यागी, प्रभासाक्षी.कॉम के समूह संपादक बालेन्दु दाधीच, टेलीविजन पत्रकार दीपक चौरसिया ने अपने विचार रखे। संचालन भारतीय जनसंचार संस्थान के प्रो. आनंद प्रधान ने किया। कार्यक्रम में आलोक तोमर की पत्नी सुप्रिया भी मौजूद थीं। अन्य उपस्थित लोगों में आज तक के प्रबंध संपादक सुप्रिय प्रसाद, जनसत्ता के संपादक ओम थानवी, टेलीविजन पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी, शैलेष, मुकेश कुमार, अनुरंजन झा, चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारतीय, प्रसिद्ध लेखिका पद्मा सचदेव, मीडिया वेबसाइटों के संपादक यशवंत सिंह, पुष्कर पुष्प आदि शामिल थे।

इस मौके पर इस्पात और खान मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आलोक तोमर के साथ अपने संबंधों का जिक्र किया और हाशिए के लोगों की आवाज उठाने की अपील की। प्रभात झा ने मीडिया की चुनौतियों को पत्रकार की अपनी समस्याओं और सीमाओं से जोड़ा। उनका कहना था कि पत्रकार खुद जीवन यापन की समस्या से जूझ रहा है और तमाम तरह के दबावों में काम कर रहा है ऐसे में सिद्धांतों पर टिके रहना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। उन्होंने इन हालात को बदलने की अपील की। पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने पत्रकारिता के मौजूदा दौर से संबंधित अनेक चुनौतियों का जिक्र किया और कहा कि पिछली सरकार ने ऐसे कई कदम उठाए थे जिनसे विज्ञापनों पर टेलीविजन पत्रकारिता की निर्भरता कम होती। यह उसे बाहरी प्रभावों से मुक्त करने की दिशा में अहम कदम था। उन्होंने कहा कि डीटीएच प्रणाली की स्थापना से टेलीविजन चैनलों को विज्ञापनों से अलग भी आय अर्जित करने का एक मजबूत जरिया हासिल हुआ है।

टेलीविजन पत्रकार दीपक चौरसिया ने कुछ वक्ताओं के इस आकलन से अहसमति जताई कि आज की पत्रकारिता जमीन से जुड़े मुद्दों से दूर होती जा रही है और गरीब तथा उपेक्षित व्यक्ति के लिए संघर्ष करने को कोई तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि आज भी पत्रकारिता जन-सरोकारों से जुड़ी है। वह बाहरी दबावों (आर्थिक या राजनैतिक) से मुक्त रहते हुए काम करने में सक्षम है। इस सिलसिले में उन्होंने बदायूं की दो लड़कियों की हत्या/आत्महत्या की घटना का जिक्र किया जिसे उभारने में मीडिया की अहम भूमिका रही।

प्रभासाक्षी के समूह संपादक बालेन्दु शर्मा दाधीच ने कहा कि मीडिया के सामने मौजूद चुनौतियों पर चर्चा करते समय हम प्रायः सैद्धांतिक और आदर्शवादी पक्षों में अधिक उलझ जाते हैं और उन व्यावहारिक चुनौतियों को अनदेखा कर देते हैं जो भविष्य में उसके लिए संकट पैदा कर सकती हैं। कार्यक्रम के मूल विषय 'भविष्य के मीडिया की चुनौतियाँ' पर बोलते हुए श्री दाधीच ने कहा कि वैकल्पिक मीडिया का उभार प्रिंट और टेलीविजन दोनों के लिए आने वाले दिनों में बड़ा खतरा सिद्ध होने वाला है। उन्होंने अमेरिका में सन् 2009-10 के दौर में बडी संख्या में अखबारों के बंद होने का जिक्र करते हुए कहा कि ऑनलाइन मीडिया पारंपरिक समाचार माध्यमों के पाठक और विज्ञापन दोनों को आकर्षित करने में सफल हो रहा है।

श्री दाधीच ने कहा कि भारत में अभी इसका विशेष प्रभाव दिखाई नहीं दिया है जिसके लिए भारतीय अखबारों की प्रशंसा की जानी चाहिए। अलबत्ता, भारत का प्रिंट मीडिया यदि डिजिटल मीडिया के प्रभाव से बचने में सफल रहा तो उसमें देश में इंटरनेट और तकनीकी माध्यमों का अधिक प्रसार न होना भी एक बड़ा कारण है। जैसे-जैसे यह स्थिति बदलेगी, डिजिटल माध्यमों की चुनौती बड़ी होती चली जाएगी। उन्होंने कहा कि टेलीविजन को भी देर सबेर डिजिटल माध्यमों की चुनौती का सामना करना पड़ेगा क्योंकि इंटरनेट ने वीडियो कन्टेन्ट की डिलीवरी के तरीके बदलने शुरू कर दिए हैं। अब एक नई किस्म का वीडियो कन्टेन्ट और नई तरह के इंटरनेट आधारित वीडियो प्लेटफॉर्म उभर रहे हैं जो पारंपरिक मीडिया के लिए खतरा पैदा करने में सक्षम हैं। बालेन्दु ने विज्ञापनों के क्षेत्र में आ रहे बदलावों का भी जिक्र किया और कहा कि ऑनलाइन विज्ञापन प्लेटफॉर्म न सिर्फ विज्ञापनदाता बल्कि दर्शक/पाठक के भी हितों के अनुकूल हैं और टेलीविजन जैसे पारंपरिक माध्यम लंबे समय तक पुराने तौर तरीकों पर आश्रित नहीं रह सकते। इस परिस्थिति का सामना करने के लिए इनोवेशन की तरफ बढ़ने की जरूरत है और नए मीडिया के साथ आने की जरूरत है।

बीबीसी हिंदी के संपादक निधीश त्यागी ने कहा कि आज के पत्रकारों को भाषा पर ध्यान देने की बेहद ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि सही वाक्य न लिख पाने वाले पत्रकारों की पूरी की पूरी पीढ़ी मीडिया के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ी भावी चुनौती सिद्ध होने वाली है।

कार्यक्रम के दौरान भारतीय जनसंचार संस्थान के दो छात्रों नंद राम प्रजापति और आशीष कुमार शुक्ला को आलोक तोमर फेलोशिप प्रदान की गई। लखनऊ स्थित शकुंतला देवी पुनर्वास विश्वविद्यालय के उप कुलपति निशीथ राय ने हिंदी विभाग के टॉपर छात्र को आलोक तोमर स्मृति स्वर्ण पदक देने की घोषणा की।

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