travelogue


Comments

Unknown said…
ये कथा लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि तथा दलित समुदाय की आत्म कथा का चित्रण प्रस्तुत करती है ! ओमप्रकाश वाल्मीकि हिंदी के प्रमुख लेखक है उनका जन्म १९५० मैं बरला ,मुजफ्फर पुर उत्तर प्रदेश मैं हुआ था ! इस कथा मैं ये बताया गया है की किस प्रकार समाज मैं मनुष्य के मध्य जातिवादी समस्याओ ने जन्म लिया ! इस कथा मैं ये बताया गया है की किस प्रकार लेखक एक मराठी ब्राह्मण परिवार के सम्पर्क मैं आता है तथा उस परिवार की युवती का लेखक से प्रेम हो जाना ,तथा जब लेखक अपनी जाती के बारे मैं बताता है तो किस प्रकार जातिवादी समस्याएं उत्पन होती है !तथा लेखक ने अपनी आत्म कथा प्रस्तुत करते हुए दलितों के जीवन का चित्रण दिया है !

प्रकाशउपाध्याय ,
१०८३ बी.अ. प्रोग्राम २ण्ड इयर
Unknown said…
ये कथा लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्माकथा का अंश है !ये दलित समुदाय की आत्मा कथा भी है ,ओमप्रकाश वाल्मीकि हिंदी के प्रमुख दलित लेखक है, इस कथा मैं मनुष्य के बीच के रिश्य्तो पर भी जातिवादी मानसिकता की छाया किस प्रकार पड़ती है! और ये बताया गया है की लेखक का एक मराठी परिवार के सम्पर्क मैं आना तथा परिवार की युवती सहित लेखक के प्रेम मैं पड़ जाना फिर लेखक का जाति बताने के बाद जातिवादी समस्याए उत्पन होना !लेखक ने इस कथा मैं अपनी आत्म कथा प्रस्तुत करते हुए दलितों के जीवन का चित्रण दिया है!
अमितकुमार, १०२५ बी.अ प्रोग्राम२ण्डइयर
fake said…
यह लेखन ॐ प्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा का अंश है! यह दलित समुदाय की आत्मकथा भी है , जिस कदम पर अपनी सामाजिक हैसियत का एहसास कराया जाता है ! लेखक का एक मराठी ब्राह्मण परिवार के समारक में आना तथा परिवार की युवती का लेखक के प्रेम में पड़ जाना फिर लेखक का जाति बताने के बाद उस पर विमुख हो जाना !लेखक का जाति बताने के बाद जातिवादी समस्याए पैदा होना !लेखक ने इस कथा मैं अपनी आत्म कथा प्रस्तुत करते हुए दलितों के जीवन का वर्णन किया गया है!
नाम : कुंवर सिंह
रोल न. : १०४७
कोर्स : बी. ए. प्रोग्राम
Unknown said…
जूठन मे दलित जीवन के जीवंत का चित्रण
जूठन ओमप्रकाश वाल्मीकि की रचना है, यह एक दलित समुदाय की आतमकथा भी है
जिसे हर समय अपनी जत्ति का भान कराया जाता है भारत की जाति प्रथा ने भेदभाव को
जन्म दिया है और समाज के एक बड़े हिस्से को अत्याचार का शिकार बनाया है,
इस आतमकथा मे यह दर्शाया गया है लेखक जिनका एक मराठी परिवार के समपर्क
र्मे आना और उस परिवार की एक लड़की के प्यार मे पड़ना फिर लेखक का अपनी जत्ति बताने के बाद उसके साथ वैसा ही वयवहार होना जैसा दूसरों के साथ होता है लेखक अपनी
आतमकथा का जूठन इसलिए ही दिया क्योंकि अभी तक दलित समाज की दशा समाज
द्वारा ख़राब ही रही है इस आतमकथा मे दलितों की दुर्दशा पर मरम्भेदी टिपण्णी है .

सुप्रीत कौर
बी.ऐ प्रोग्राम द्वितीय वर्ष
रोल न.1100
Unknown said…
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Unknown said…
जूठन एक व्यक्ती की आतमकथा होन के साथ साथ उस समुदाय की वायथा -कथा
भी है , जीसमे लेखक पैदा हुआ है!लेखक पर अपनी कथा न लखने
के िलए कई दबाव बाहरी और आतंरिक दोनों तरह के थे - इन दबावों से
मुथ्भेरह करते हुए आतमकथा लिखता है! अपना लेखनं का औचित्य बताते
हुए लेखक कहता है, "दलित जीवन की पिराये अश्ह्नियेऔर अनुभव्घाद है ! ऐसे
अनुभव जो साहितिक अभिवय्क्ती में सथान नहीं पा सके! जूठन का यह अंश
दरसता है की दलीतो को कदम- कदमपर उनकी सामाजीक है हैसियत का भान
कराया जाता है! लेखक एक मराठी कुलकर्णी पिरवार के संपर्क में आता है !
कुलकर्णी पिरवार की सिवता लेखक की हमउम्र है !वह लेखक से परेम करती है!
सहस बटोरकर लेखक जब सविता को अपनी जाती
बताता है तो वह यकींन नहीं कर पाती है! उनके बीच जाित की दीवार खरी हो जाती है!
इशान रोहन
1043
hariom said…
जूठन सामाजिक सड़ाँध को उजागर करने वाले दलित लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा है।ओमप्रकाश वाल्मीकि हिन्दी के प्रमुख दलित लेखक है । इस आत्मकथा मे दलित-जीवन की पीड़ाएँ असहनीय और अनुभव-दुग्ध हैं। ऐसे अनुभव जो साहित्यिक अभिव्यक्तियों में स्थान नहीं पा सके। इस कथा मैं ये बताया गया है कि किस प्रकार समाज मे जातिवादी समस्याओ ने जन्म लिया । जूठन से यह सन्कलित अन्श दर्शाता है कि दलितो को कदम-कदम पर उनकी सामाजिक हैसियत का भान कराया जाता है । इस कथा मैं ये बताया गया है की किस प्रकार लेखक एक मराठी ब्राह्मण परिवार के सम्पर्क मैं आता है जिसकी युवती लेखक से प्रेम करती है। लेखक जब युवती को अप्नि जाति बताता है तो वह यकीन नही कर पाती और उनके बीच जाति की अलन्घ्य दीवार खडी हो जाती है।लेखक ने इस कथा मैं अपनी आत्म कथा प्रस्तुत करते हुए दलितों के जीवन का चित्रण किया है।
hariom said…
जूठन सामाजिक सड़ाँध को उजागर करने वाले दलित लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा है।ओमप्रकाश वाल्मीकि हिन्दी के प्रमुख दलित लेखक है । इस आत्मकथा मे दलित-जीवन की पीड़ाएँ असहनीय और अनुभव-दुग्ध हैं। ऐसे अनुभव जो साहित्यिक अभिव्यक्तियों में स्थान नहीं पा सके। इस कथा मैं ये बताया गया है कि किस प्रकार समाज मे जातिवादी समस्याओ ने जन्म लिया । जूठन से यह सन्कलित अन्श दर्शाता है कि दलितो को कदम-कदम पर उनकी सामाजिक हैसियत का भान कराया जाता है । इस कथा मैं ये बताया गया है की किस प्रकार लेखक एक मराठी ब्राह्मण परिवार के सम्पर्क मैं आता है जिसकी युवती लेखक से प्रेम करती है। लेखक जब युवती को अपनी जाति बताता है तो वह यकीन नही कर पाती और उनके बीच जाति की अलन्घ्य दीवार खडी हो जाती है।लेखक ने इस कथा मैं अपनी आत्म कथा प्रस्तुत करते हुए दलितों के जीवन का चित्रण किया है।


HARIOM CHADAR
1076,B.A. PROG 2ND YEAR
KHALSA COLLEGE.
Unknown said…
ये कथा लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्माकथा का अंश है !ये दलित समुदाय की आत्मा कथा भी है ,ओमप्रकाश वाल्मीकि हिंदी के प्रमुख दलित लेखक है, इस कथा मैं मनुष्य के बीच के रिश्य्तो पर भी जातिवादी मानसिकता की छाया किस प्रकार पड़ती है! और ये बताया गया है की लेखक का एक मराठी परिवार के सम्पर्क मैं आना तथा परिवार की युवती सहित लेखक के प्रेम मैं पड़ जाना फिर लेखक का जाति बताने के बाद जातिवादी समस्याए उत्पन होना !लेखक ने इस कथा मैं अपनी आत्म कथा प्रस्तुत करते हुए दलितों के जीवन का चित्रण दिया है!


vipin kumar
1029
Unknown said…
जूठन कहानी हमारे समाज में व्याप्त बुराइयों की आलोचना होने के आइना भी हे. जूठन कहनीं से लेखक अपने अन्दर व्याप्त उस लावे को शांत करना चाहते हे जो उनके अनुभवों के कारण उत्पन हुआ. वह जूठन कहानी के द्वारा बताने की कोशिश करते हे की दलित जीवन की पीडाए कितनी असहनीय और अनुभव्दग्द होती हे. एक ऐसे अनुभव जो कभी साहित्यक अभिव्यक्तियों में स्थान नहीं पा सकते. जूठन में दलित जीवन का जीवंत चित्रण हुआ हे. जूठन के माध्यम से लेखक बताने की कोशिश करते हे कि किस तरह दलितों को कदम-कदम पर उनकी सामाजिक हेसियत का भान या आभास कराया जाता हे. जूठन में लेखक अपने दलित जीवन के दलित अनुभवों को बाटते हुए बताते हे कि किस तरह वह एक मराठी कुलकर्णी परिवार के संपर्क में आते हे. वह संपर्क किस तरह एक दो मुलाकातों के बाद आत्मीयता में तब्दील हो जाता हे. सविता जो उस परिवार कि सदस्य होती हे वह उनसे प्यार करने लग जाती हे. पर वह एक दिन लेखक के जीवन में विकट मोड़ लेकर आ जाता हे जब वह कुलकर्णी परिवार का काम्बले की प्रति रवैया साथ- साथ दलित समाज का देखते हे और जो उन्हें उनके दलित होने का आभास कराता हे. वह सोचते हे की सचाई जानने के बाद कि वह ब्राह्मण न होकर दलित हे, उनके साथ भी वेसा ही व्यव्हार होगा. वह सारी सचाई सविता को बता देते हे जिसे जानने उपरांत उनके बिच जाति कि एक अलभ्य दीवार खडी हो जाती हे. अर्थात लेखक अपने दलित जीवन का जीवंत चित्रण कर के यह बताना चाहते हे कि आज, इस शिक्षित युग में भी लोग अपने आपको संस्कृति और भेदभाव से छुटकारा नहीं दिला पाते हे चूकि उन पर समाज का एक एसा बोज होता हे जो उन्हें उससे मुफ्त नहीं होने देता हे और यह जाति प्रथा हमारे भारतीय समाज का एक अभिन अंग बनकर रह गई हे जिसने हमारे समाज के एक बड़े हिस्से को उत्पीडन और अमानवीयता का शिकार बनाया हे.
manish choudhary,b.a proagram
Anonymous said…
'जूठन' एक आतमकथा है जिसके लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि जी है पर यह उनकी आतमकथा का अंस भी है और साथ ही साथ यह उस समुदाय की वायथा-कथा भी है! लेखक पर अपनी कथा न लिखने के कई दबाव बाहरी और आंतरिक दोनों तरह के थे इन दबावों से मुठ भेड करता है अपने लेखक का औचितय बताते हुए कहता है की "दलित" जीवन की पीड़ाये असहनीय और अनुभवदग्द है एसे अनुभव जो साहितयक अभीव्यकतीयो में स्थान नहीं प् सके! एक ऐसी समाज व्यस्था में हमने सांसे ली है जो बेहद कूरू और अमानवीय है! इस कथा मैं ये बताया गया है की किस प्रकार लेखक एक मराठी ब्राह्मण परिवार के सम्पर्क मैं आता है तथा उस परिवार की युवती का लेखक से प्रेम हो जाना ,तथा जब लेखक अपनी जाती के बारे मैं बताता है तो किस प्रकार जातिवादी समस्याएं उत्पन होती है इस कथा मैं यह भी बताया गया है कि किस प्रकार समाज मे जातिवादी समस्याओ ने जन्म लिया । जूठन से यह सन्कलित अन्श दर्शाता है कि दलितो को कदम-कदम पर उनकी सामाजिक हैसियत का मान कराया जाता है ।

Gopal Singh
B.A. Pro.
IInd Year
Unknown said…
जूठन' एक आतमकथा है जिसके लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि जी है पर यह उनकी आतमकथा का अंस भी है और साथ ही साथ यह उस समुदाय की वायथा-कथा भी है! लेखक पर अपनी कथा न लिखने के कई दबाव बाहरी और आंतरिक दोनों तरह के थे इन दबावों से मुठ भेड करता है अपने लेखक का औचितय बताते हुए कहता है की "दलित" जीवन की पीड़ाये असहनीय और अनुभवदग्द है एसे अनुभव जो साहितयक अभीव्यकतीयो में स्थान नहीं प् सके! एक ऐसी समाज व्यस्था में हमने सांसे ली है जो बेहद कूरू और अमानवीय है! इस कथा मैं ये बताया गया है की किस प्रकार लेखक एक मराठी ब्राह्मण परिवार के सम्पर्क मैं आता है तथा उस परिवार की युवती का लेखक से प्रेम हो जाना ,तथा जब लेखक अपनी जाती के बारे मैं बताता है तो किस प्रकार जातिवादी समस्याएं उत्पन होती है इस कथा मैं यह भी बताया गया है कि किस प्रकार समाज मे जातिवादी समस्याओ ने जन्म लिया । जूठन से यह सन्कलित अन्श दर्शाता है कि दलितो को कदम-कदम पर उनकी सामाजिक हैसियत का मान कराया जाता है ।
रेम्सी
रोल नंबर-१०२८