इस कहानी के लेखक श्री जयशंकर प्रसाद हैं।
इस कहानी में एक बालक का माता के प्रति प्रेम, व्यवहार की कुशलता और परिश्रम से जीवन बिताने का वर्णन है।
लेखक बड़े दिन की छुट्टियों में कोलकाता घूमने गया। वहाँ एक मेले में उसने एक
तेरह-चौदह वर्ष के बालक को देखा। वह जादू के छोटे-छोटे खेल दिखाकर अपनी बीमार माँ
का इलाज कराता था। कहानी का अंत छोटे-जादूगर की बाँहों में उसकी माँ के निधन के
साथ होता है।
इस पाठ का
शीर्षक ‘छोटा जादूगर’ पूरी तरह उपयुक्त है। पूरी कहानी उस छोटे
बालक के आस-पास घूमती है जो जादू का खेल दिखाकर अपनी बीमार माँ के उपचार के लिए और
अपना पेट भरने के लिए कुछ पैसे कमा लेता है। आयु में छोटा होते हुए भी उसमें एक
कुशल जादूगर जैसी प्रतिभा है। इस पाठ का अन्य शीर्षक ‘पुरुषार्थी बालक’ या ‘छोटा श्रवण’ हो सकता है।
चरित्र --छोटा
जादूगर इस कहानी का प्रमुख पात्र है। उसके चरित्र में अनेक गुण दिखाई देते हैं। वह
पुरुषार्थी बालक है। अपने और अपनी माँ के जीवनयापन के लिए वह अपनी जादू कला से
पैसा कमाता है। निर्धन होते हुए भी वह किसी के सामने हाथ नहीं फैलाता। कठिनाइयों
का सामना करते हुए स्वाभिमान के साथ जीवन बिताना चाहता है। लेखक के व्यंग्य करने
पर वह गर्व से कहता है “तमाशा देखने नहीं, दिखाने आया हूँ।” उसमें एक कुशल जादूगर बनने के सभी गुण
हैं। वह वाचाल है और आत्मविश्वास से पूर्ण है। निर्जीव खिलौने से वह ऐसा खेल
दिखाता है कि सभी हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाते हैं। उसका सबसे बड़ा
गुण है उसकी मातृ-भक्ति। माँ के लिए ही वह परिश्रम से पैसे कमाता है। माँ की
मृत्यु पर उसकी करुण दशा सभी के हृदय को द्रवित कर देती है।
इस कहानी में
लेखक ने एक निर्धन माँ-बाप के स्नेह से वंचित बालक के कठिनाइयों से जूझते हुए जीने
की झाँकी प्रस्तुत की है। माँ बीमार है और पिता जेल में हैं। लेकिन बालक हार नहीं
मानता। किसी के समाने हाथ नहीं फैलाता। अपने परिश्रम और चतुराई से स्वाभिमान के
साथ जीना चाहता है। लेखक इस कहानी से बालकों को आत्मविश्वास, स्वाभिमान और परिश्रम की तथा माता-पिता की सेवा करने का संदेश देना चाहता है।II. इस कहानी से हमें कठिनाइयों से निराश न होने और कला-कौशल, परिश्रम और चतुराई से जीवनयापन करने की प्रेरणा मिलती है। इसके साथ ही
माता-पिता की सेवा करने तथा स्वाभिमान के साथ जीने की प्रेरणा भी प्राप्त होती है।
और तुम तमाशा देख रहे हो ? लेखक के इन शब्दों ने छोटे जादूगर (लड़के) के दिल को चोट पहुँचाई। उसने कहा कि वह वहाँ तमाशा देखने नहीं दिखाने आया था ताकि कुछ पैसे कमाकर माँ के पथ्य (भोजन) को प्रबन्ध कर सके।लेखक ने जब छोटे जादूगर से उसके परिवार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि घर में उसके पिता और बीमार माँ थी। पिता देश के लिए जेल में थे और बीमार माँ घर में, लेखक ने लड़के पर व्यंग्य करते हुए यह बात कही।
छोटा जादूगर’ कहानी प्रसादजी की उद्देश्यपूर्ण रचना है। छोटा जादूगर के पिता जेल में है।
उनकी देश के लिये जेल यात्री पर उसको गर्व है उसकी माता बीमारी से पीड़ित है। माँ
की दवा और पथ्य के लिए पैसा चाहिए। अपने भरण-पोषण के लिए भी धन चाहिए। अवयस्क
जादूगर यह जानता है। अपनी कच्ची उम्र में ही वह पैसा कमाने निकल पड़ता है और छोटा
जादूगर बन जाता है। असहाय बालक किसी के सामने हाथ नहीं फैलाता। वह अपनी निर्धनता
का उल्लेख कर भीख नहीं माँगता।
पूँजी के अभाव में व्यापार हो नहीं सकता। जादूगर बनना उसके
बुद्धि के कौशल का प्रमाण है वह संघर्ष करके जीवन बिताने का साहस दिखाता है वह
बालसुलभ करुणा के साथ दायित्व बोध का परिचय देता है। छोटा जादूगर के इन मानवीय
गुणों का उद्घाटन कर आत्मनिर्भरता और दायित्व बोध का संदेश देना ही कहानी का
उद्देश्य है।
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