Wednesday, March 25, 2020

विज्ञापन बी ए प्रोग्राम 4th सेमेस्टर

नोट्स है।विस्तार से कुछ और भी भेजती हूँ।


Wednesday, March 18, 2020

सभी विद्यार्थियों के लिए

प्रिय विद्यार्थियों।
विश्वव्यापी संकट कोरोना से हम भारतीय भी अछूते नहीं है ।बचाव में ही सुरक्षा है।इसलिए हम और आप अपने अपने घरों में सामाजिक दूरी बनाए हुए हैं। हम जैसे मिलने जुलने वालों के लिए यह स्थिति खराब है लेकिन इस समय अनिवार्य है ताकि हम बचे रहे और हमारा देश बचा रहे।तभी विश्व भी बचेगा।

अब पढाई भी चलती रहे ।यह समय उपयुक्त है अपने को  पेशे में व्यस्त करने का ,नोट्स बनाने का ।कुछ रचनात्मक लिखने का।कुछ रचनात्मक पढ़ने का।
तृतीय वर्ष के विद्यार्थी ऑनलाइन  चेक करते रहे कि भविष्य की शिक्षा के लिए कहाँ कहाँ  फॉर्म निकल रहे हैं ।
देश के लगभग सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों की प्रवेश सूचना निकल गयी है । अतः ऑनलाइन भरे।

हम सभी अध्यापक आपकी सुविधा के लिये पाठ सामग्री एवं असाइनमेंट टॉपिक आपसे शेयर कर रहे है और  करते रहेंगे। मैं ऑडियो लेसन भी भेजूंगी।मेरे ब्लॉग
smitamishr.blogspot. com पर उपलब्ध रहेगा।

अंत में हम सभी अध्यापक चाहते है कि आप सब अपने हाथों को बार बार धोये और संक्रमण मुक्त रहें।
जल्दी हिह सब वापिस अपनी अपनी क्लास में मिलेंगे।
शुभाशीष

कंप्यूटर( BA program 6th sem)

कंप्यूटर के विकास के कारण ही वर्तमान डिजिटल युग आज संभव हुआ है। कंप्यूटर मानव द्वारा बनाया गया सबसे शक्तिशाली और बहुउद्देशीय उपकरण है। यह एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो तीन बुनियादी कार्य करता है, यानी इनपुटिंग (Inputing), प्रोसेसिंग(Processing) और आउटपुटिंग (Outputing)। यह विभिन्न इनपुट उपकरणों (Input Devices) के माध्यम से इनपुट (Input) को स्वीकार करता है। इनपुट डेटा प्राप्त करने के बाद, कंप्यूटर इन इनपुट पर उपयोगकर्ता द्वारा दिए गए निर्देशों (Instructions) के अनुसार विभिन्न ऑपरेशन करता है। अंत में, कंप्यूटर विभिन्न आउटपुट डिवाइस (Output Device) के माध्यम से आउटपुट डेटा के परिणाम उत्पन्न करता है। इसलिए, कंप्यूटर एक डेटा प्रोसेसिंग डिवाइस (Data Processing Device) है।
कंप्यूटर उपयोगकर्ता को थोड़े समय में हजारों लाखों डेटा को आसानी से प्रोसेस (Process) करने की कार्यक्षमता देता है। कंप्यूटर के काम की गति अतुलनीय है। कंप्यूटर (Computer) और इंटरनेट (Internet) ने हमारे काम करने के तरीके, संचार, खेल और लेखन को बहुत प्रभावित किया है। आज, कंप्यूटर हमारे जीवन के लगभग हर पहलू में एक प्रमुख भूमिका निभाता है और हमारे जीवन को एक या दूसरे तरीके से प्रभावित करता है। आज, आप शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र खोज सकते हैं जो कंप्यूटर से प्रभावित न हो।
कंप्यूटर मशीन गणना के लिए है, लेकिन यह सिर्फ एक गणना मशीन (Calculating Machine) से बहुत अधिक है। आज यह एक महत्वपूर्ण घरेलू उपकरण (Home Appliances) बन गया है। साथ ही, कंप्यूटर के कई लाभ हैं, इसका उपयोग घर (Home) और कार्यालय (Office) में किया जाता है।

विज्ञापन(बी ए प्रोग्राम 4th सेमेस्टर)

किसी उत्पाद अथवा सेवा को बेचने अथवा प्रवर्तित करने के उद्देश्य से किया जाने वाला जनसंचार विज्ञापन (Advertising) कहलाता है। विज्ञापन विक्रय कला का एक नियंत्रित जनसंचार माध्यम है जिसके द्वारा उपभोक्ता को दृश्य एवं श्रव्य सूचना इस उद्देश्य से प्रदान की जाती है कि वह विज्ञापनकर्ता की इच्छा से विचार सहमति, कार्य अथवा व्यवहार करने लगे।औद्योगिकीकरण आज विकास का पर्याय बन गया है। उत्पादन बढ़ने के कारण यह आवश्यक हो गया है कि उत्पादित वस्तुओ को उपभोक्ता तक पहुँचाया ही नहीं जाय बल्कि उसे उस वस्तु की जानकारी की दी जाय। वस्तुतः मनुष्य को जिन वस्तुओ की आवश्यकता होती है व उन्हें तलाश ही लेता इसके ठीक विपरीत उसे जिसकी जरूरत नहीं होती वह उसके बारे में सुनकर अपना समय खराब नहीं करना चाहता। इस अर्थ में विज्ञापन वस्तुओ को ऐसे लोगों तक पहुँचाने का कार्य करता है जो यह मान चुके होते है कि उन वस्तुओं की उसे कोई जरूरत नहीं है। आशय यह कि उत्पादित वस्तु को लोकप्रिय बनाने तथा उसकी आवश्यकता महसूस कराने का कार्य विज्ञापन करता है।
विज्ञापन अपने छोटे से संरचना में बहुत कुछ समाये होते है। आज विज्ञापन हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है।
किसी भी तथ्य को यदि बार-बार लगातार दोहराया जाये तो वह सत्य प्रतीत होने लगता है - यह विचार ही विज्ञापनों का आधारभूत तत्व है। विज्ञापन जानकारी भी प्रदान करते है। उदाहरण के लिए कोई भी वस्तु जब बाजार में आती है, उसके रूप - रंग - सरंचना व गुण की जानकारी विज्ञापनों के माध्यम से ही मिलती है। जिसके कारण ही उपभोक्ता को सही और गलत की पहचान होती है। इसलिए विज्ञापन हमारे लिए जरूरी है।
जहाँ तक उपभोक्ता वस्तुओं का सवाल है, विज्ञापनों का मूल उद्देश्य ग्राहको के अवचेतन मन पर छाप छोड़ जाना है और विज्ञापन इसमें सफल भी होते है। यह 'कहीं पे निगाहें, कही पे निशाना' का सा अन्दाज है।
विज्ञापन सन्देश आमतौर पर प्रायोजकों द्वारा भुगतान किया है और विभिन्न माध्यमों के द्वारा देखा जाता है जैसे समाचार पत्र, पत्रिकाओं, टीवी विज्ञापन, रेडियो विज्ञापन, आउटडोर विज्ञापन, ब्लॉग या वेब्साइट आदि। वाणिज्यिक विज्ञापनदाता अक्सर उपभोक्ताओं के मन में कुछ गुणों के साथ एक उत्पाद का नाम या छवि जोड़ जाते हैं जिसे हम "ब्रान्डिग" कहते है। ब्रान्डिग उत्पाद या सेवा की बिक्री बढाने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। गैर-वाणिज्यिक विज्ञापनों का उपयोग राजनीतिक दल, हित समूह, धार्मिक संगठन और सरकारी एजेंसियाँ करतीं हैं।

बनारसीदासकृत अर्ध-कथानक(6 सेमेस्टर)

। यह आत्मकथा है जिसे सन् 1641 में लिखा गया था। इसे हिन्दी की पहली आत्मकथा माना जाता है। आज से करीब पौने चारसौ साल साल पहले हिन्दी साहित्य का पद्यरूप ही लोकप्रिय था सो बनारसीदास की यह कथा भी छंदबद्ध ही है। जौनपुर निवासी, श्रीमाल जैन परिवार के बनारसीदास का जीवन आगरा में बीता। Image002 कम उम्र में ही उन्हें “आसिखी” अर्थात इश्कबाजी और “लिखत-पढ़त” का शौक लग गया था। जिससे ये प्रेमरोगी के साथ ज्ञानरोगी भी बन गए। प्रेमरोग तो उम्र के साथ ठीक हो गया मगर ज्ञानरोग ताउम्र रहा।  इन्होंने ब्रजभाषा में अरधकथानक के अलावा चार अन्य पुस्तकें लिखी हैं जिसमें नाटक, प्रबंध और छिटपुट कविताएं हैं। अर्धकथानक का विषय खुद बनारसीदास हैं। जैन शास्त्रों के अनुसार मनुष्य का जन्म 110 वर्ष होता है। बनारसीदास ने जब यह कथा लिखी तब उनकी आयु पचपन वर्ष थी, सो उन्होंने इसका नाम ‘अरधकथान’ उचित ही रखा था। ये अलग बात है कि इसके कुछ अरसा बाद उनका निधन हो गया। इस तरह यह आत्मकथा पूर्ण-कथानक ही है।
बनारसीदास की जीवनयात्रा अकबर, जहांगीर और शाहजहां के राजकाल में जौनपुर, इलाहाबाद, बनारस और आगरा के गली-कूचों, कोठियों और दुकानों से होती हुई गुजरती है और तत्कालीन हिन्दू वैश्य, जैन समाज की भरपूर झलक हमे मिलती है। ऐहि बिधि अकबर को फरमान। शीश चढ़ायौ नूरमखान।। पुस्तक में मुगलकालीन भारत में मुगलों के कुशासन, अत्याचार और इंसाफ के नजारे देखने को मिलते हैं। कुलमिलाकर बनारसीदास ने अपनी आत्मकथा बड़ी ईमानदारी से बताई है। पुस्तक ब्रजभाषा में है दोहा, चौपाई, छप्पय, सवैया छंद में लिखी गई है। इसमें तत्कालीन समाज में प्रचलित अरबी-फारसी मुहावरों और शब्दों का भी इस्तेमाल है। 

भाषा और समाज/ अविचल गौतम(4th sem)


एम।फिल।(भाषा प्रौद्योगिकी)

मेरी दृष्टि से भाषा मात्र मनुष्य के मनुष्य होने की पहचान और शर्त है। भाषा के बिना मनुष्य नहीं होता, पशु से मनुष्य के विकास में भाषा ही वह सीढ़ी है जिस को पार करके वह मनुष्यत्व प्राप्त करता है। अवधारणा करने की शक्ति और उसके साथ-साथ यह प्रश्न पूछने की शक्ति कि मैं कौन हूँ या कि मैं क्या हूँ या मैं क्यों हूँ। यही मनुष्यत्व की पहचान है,और यह शक्ति तब से प्रारम्भ होती है जब से जीव को भाषा मिलती है। भाषा मिलने के बाद यह मनुष्य रूपी जीव उसी प्रकार के सभी पशु रूपी जीवों से अलग हो जाता है।
भाषा के बिना समाज में अपनी अस्मिता की पहचान नहीं हो सकती। अत: सब से पहले भाषा अपने-आप को पहचानने का साधन है। अगर किसी समाज को उसकी भाषा से काट दिया जाये तो हम उसकी अस्मिता को खंडित कर देते हैं। हिंदी के प्रति मेरा जो लगाव है, उसकी बुनियाद में केवल अपने मनुष्य होने को नहीं बल्कि अपने पहचाने जाने की पहली और मूल भाषा मानता हूँ। हिंदी के बिना मैं, मैं नहीं रहता।
भाषा मूल्यों की सृष्टि करना संभव बनाती है। मनुष्य की जिजीविषा ही अंतिम और स्वयंसिध्द तर्क होता है, जीने के लिए। मनुष्य भाषा के माध्यम से ऐसे मूल्यों की सृष्टि करता है, जिनके लिए वह जीता है।
भाषा के द्वारा हम यथार्थ की एक नए ढंग़ की पहचान कर सकते हैं। जिस चीज को हम पहचान रहे हैं, उसको आत्मसात कर के उसके प्रति किसी तरह की भी विवके पर आधारित प्रतिक्रिया हम भाषा के बिना नहीं कर सकते। प्रतिक्रिया, अभिव्यक्ति और संप्रेष्ण भाषा के बिना संभव नहीं है।
भाषा एक समग्र संस्कृति की आत्माभिव्यक्ति का साधन है, लेकिन उसके साथ-साथ वह स्वरूप रक्षा का भी एक साधन है। समाज के साथ जब हम भाषा को जोडते हैं तो उसकी युगधर्मिता की ओर ध्यान देते हैं। आखिर हमारे सारे सामाजिक व्यवहार का आधार भाषा है, और भाषा है भी सामाजिक व्यवहार के लिए।
भाषा का एक फंक्षनल या प्रयोजनमूलक उपयोग है, हमारे दैनंदिन जीवन में उसका एक स्थान है। हमारे प्रयोजनों का वह साधन है। भाषा के बिना व्यवहार नहीं हो सकता और जिस भाषा का व्यवहार से संबंध नहीं है, वह भाषा समाज से भी टूट जाएगी। इसलिए जब पूरी संस्कृति का अवमूल्यन होता है तो समाज का अवमूल्यन होता है इसलिए भाषा का भी अवमूल्यन होता है।
भाषा में सर्जनशीलता है। हम देखते हैं कि कई समाज ऐसे होते है जिनमें सर्जनशीलता का स्थान उंचा होता है, और कई समाज ऐसे भी हैं जो कि एक खास तरह की मानसिक जड़ता गति का अभाव तथा सर्जनशीलता को विलासिता समझते हैं। यह इसलिए कि भाषा के मामले में सर्जनशीलता के प्रति एक संदेह का भाव है।
जिस परिस्थिति में हम जीते हैं, उसमें हमें निरंतर ध्यान में रखना चाहिए कि पूरा समाज जिस भाषा के साथ जीता है, उसमें और उसके साथ जीते हुए अगर हम उस जीवन संदर्भ को पहचानते हैं, और उस भाषा में रचना करते हैं, तो हमारा समाज भी रचनाशील हो सकता है। नहीं तो वहां भी उस के सामने नयी स्थिति एक चुनौती बन कर आती है। जरूरी नहीं की वह काव्य की कोई समस्या हो, जरूरी नहीं है कि विज्ञापन या रसायन की नई परिस्थिति हो। कोई भी नई चीज अनुवादजीवी समाज के सामने आती है, तो वह तुरंत दूसरे का मुँह देखने लगता है, क्योंकि अपनी शक्ति को पहचानना उसने सीखा ही नहीं। भाषा हमारी शक्ति है, उस को हम पहचाने-वह रचनाशीलता का उत्स है-व्यक्ति के लिए भी और समाज के लिए भी।
भाषा का अपना समाजशास्त्र होता है। कभी भाषा समाज को परिभाषित करती है, तो कभी समाज, भाषा को। समाज की प्रत्येक गतिविधि भाषा के माध्यम से तय होती है। हम अपने प्राचीन काव्य एवं परंपराओं का अवलोकन करें तो भाषिक स्तर पर समाज बँटा मिलेगा। भाषा का समाजशास्त्र ही इस बात का जवाब दे देगा कि मागधी प्राकृत के साथ संस्कृत आचार्यों ने सौतेला व्यवहार क्यों किया। इस तथ्य पर ध्यान देना चाहिए कि आखिर संस्कृत नाटकों में निम्न श्रेणी के पात्र इसका प्रयोग क्यों करते हैं? संस्कृत नाटकों में माँ प्राकृत बोलती है, बेटा संस्कृत बोलता है। लिंग के हिसाब से किसी समाज की भाषा नही बदलती है। वस्तुत: वर्ण-व्यवस्था के आधार पर भाषा को आरोपित किया गया है। प्राकृत निम्न श्रेणी के पात्रों पर उपर से थोपी गयी है, इसीलिए यह भाषा कृत्रिम है। सवाल है कि क्या भोजपुरी उसी की कोख से पैदा हुयी है? भोजपुरी का समाज यह मानने से रोकता है। भोजपुरी कृषि एवं श्रम-संस्कृति की भाषा है। इसके शब्दों में भोजपुर की माटी की सोंधी गंध है। यह मेहनतकशों और कामगारों, किसानों और मजदूरों की भाषा है।
अत: भाषा और समाज का नितांत गहरा संबंध है। समाज की हर झलक सुख, दुख, पीड़ा, अवसाद, गति, मूल्यों से संश्लिष्ट संस्कृति भाषा में बोलती है। यही भाषा का समाज-शास्त्र है।

Monday, March 16, 2020

भाषा का समाजशास्त्र 4 सेमेस्टर

https://samvedan-sparsh.blogspot.com/2016/10/blog-post_24.html?m=1

भाषा समाज और संस्कृति (4th sem)

https://www.academia.edu/27132932/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8_%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF_%E0%A4%94%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C._Language_culture_and_society._

हिंदी_जाति_और_रामविलास_शर्मा ( 4th sem )

http://gadyakosh.org/gk/हिंदी_जाति_और_रामविलास_शर्मा_/_रूपेश_कुमार

हिंदी की जातीयता (4th sem)

https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80_%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF

रानी केतकी की कहानी की समीक्षा (vith sem)





अमीर खुसरो के काव्य में सामाजिकता(vith sem)







फणीश्वरनाथ रेणु का कहानी संसार। (vith sem)