Sunday, October 4, 2020

विज्ञापन

 किसी उत्पाद अथवा सेवा को बेचने अथवा प्रवर्तित करने के उद्देश्य से किया जाने वाला जनसंचार विज्ञापन (Advertising) कहलाता है। विज्ञापन विक्रय कला का एक नियंत्रित जनसंचार माध्यम है जिसके द्वारा उपभोक्ता को दृश्य एवं श्रव्य सूचना इस उद्देश्य से प्रदान की जाती है कि वह विज्ञापनकर्ता की इच्छा से विचार सहमति, कार्य अथवा व्यवहार करने लगे।औद्योगिकीकरण आज विकास का पर्याय बन गया है। उत्पादन बढ़ने के कारण यह आवश्यक हो गया है कि उत्पादित वस्तुओ को उपभोक्ता तक पहुँचाया ही नहीं जाय बल्कि उसे उस वस्तु की जानकारी की दी जाय। वस्तुतः मनुष्य को जिन वस्तुओ की आवश्यकता होती है व उन्हें तलाश ही लेता इसके ठीक विपरीत उसे जिसकी जरूरत नहीं होती वह उसके बारे में सुनकर अपना समय खराब नहीं करना चाहता। इस अर्थ में विज्ञापन वस्तुओ को ऐसे लोगों तक पहुँचाने का कार्य करता है जो यह मान चुके होते है कि उन वस्तुओं की उसे कोई जरूरत नहीं है। आशय यह कि उत्पादित वस्तु को लोकप्रिय बनाने तथा उसकी आवश्यकता महसूस कराने का कार्य विज्ञापन करता है।

विज्ञापन अपने छोटे से संरचना में बहुत कुछ समाये होते है। आज विज्ञापन हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है।
किसी भी तथ्य को यदि बार-बार लगातार दोहराया जाये तो वह सत्य प्रतीत होने लगता है - यह विचार ही विज्ञापनों का आधारभूत तत्व है। विज्ञापन जानकारी भी प्रदान करते है। उदाहरण के लिए कोई भी वस्तु जब बाजार में आती है, उसके रूप - रंग - सरंचना व गुण की जानकारी विज्ञापनों के माध्यम से ही मिलती है। जिसके कारण ही उपभोक्ता को सही और गलत की पहचान होती है। इसलिए विज्ञापन हमारे लिए जरूरी है।
जहाँ तक उपभोक्ता वस्तुओं का सवाल है, विज्ञापनों का मूल उद्देश्य ग्राहको के अवचेतन मन पर छाप छोड़ जाना है और विज्ञापन इसमें सफल भी होते है। यह 'कहीं पे निगाहें, कही पे निशाना' का सा अन्दाज है।
विज्ञापन सन्देश आमतौर पर प्रायोजकों द्वारा भुगतान किया है और विभिन्न माध्यमों के द्वारा देखा जाता है जैसे समाचार पत्र, पत्रिकाओं, टीवी विज्ञापन, रेडियो विज्ञापन, आउटडोर विज्ञापन, ब्लॉग या वेब्साइट आदि। वाणिज्यिक विज्ञापनदाता अक्सर उपभोक्ताओं के मन में कुछ गुणों के साथ एक उत्पाद का नाम या छवि जोड़ जाते हैं जिसे हम "ब्रान्डिग" कहते है। ब्रान्डिग उत्पाद या सेवा की बिक्री बढाने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। गैर-वाणिज्यिक विज्ञापनों का उपयोग राजनीतिक दल, हित समूह, धार्मिक संगठन और सरकारी एजेंसियाँ करतीं हैं।
विज्ञापन कॉपी के घटक (Component) या तत्व (Elements) क्या है?

विज्ञापन कॉपी/विज्ञापन की प्रति का मेकअप या घटक भागों को दो पहलुओं से देखा जा सकता है:

विज्ञापन लेआउट, और।
  1. विज्ञापन विषय।

विज्ञापन कॉपी के घटक (Component) या तत्व (Elements) क्या है? अब, समझाओ;

#विज्ञापन लेआउट:


लेआउट कॉपी में एक विज्ञापन के घटकों की तार्किक व्यवस्था है और संदेश की व्यवस्थित प्रस्तुति से संबंधित है। उपयोग किए जाने वाले माध्यम के अनुसार लेआउट का पैटर्न बदलता रहता है।

समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए, संदेश की प्रस्तुति लिखित शब्दों और चित्रों में दिखाई देती है; रेडियो में, प्रस्तुति बोले गए शब्दों और ध्वनि प्रभावों में श्रव्य है; और टेलीविजन में, ऑडियो और विजुअल दोनों प्रस्तुतियाँ व्यावहारिक हैं। सभी मामलों में, आवंटित स्थान या समय के भीतर संदेश प्रस्तुत करने में संतुलन और समरूपता का प्रमुख महत्व है।

किसी भी प्रकाशन में दृश्य लेआउट को निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:

सुर्खियों के विज्ञापन:

उपभोग करने वाली जनता का ध्यान खींचने के लिए सुर्खियों में मोटे अक्षरों का उपयोग किया जाता है। शीर्षक का आकार और लंबाई प्रकाशन के सामान्य प्रारूप और पृष्ठ आकार के लिए उपयुक्त होनी चाहिए; यह विज्ञापन के विषय और कॉपी के संपूर्ण मेकअप के साथ भी होना चाहिए।

आमतौर पर, छोटी-छोटी सुर्खियों में कुछ तथ्यों, सुझावों, प्रस्ताव या सजाओं पर जोर दिया जाता है। पत्रिकाओं और व्यापार पत्रिकाओं में, चरित्र में अधिक प्रमुख और विशिष्ट बनाने के लिए सुर्खियों में रंग मुद्रण को अपनाया जाता है।

दृष्टांतों का प्रकार क्या है?

चित्र चित्र, प्रतीकों या तस्वीरों के माध्यम से ध्यान आकर्षित करने के लिए दिए जाते हैं, रुचि पैदा करते हैं और साथ ही साथ इच्छा पैदा करते हैं। उत्पाद के लिए सार्वजनिक स्वागत हासिल करने में महत्वपूर्ण चित्र एक हजार शब्दों के लायक हो सकते हैं।

लेकिन शालीनता की सीमा चित्रों या तस्वीरों को प्रस्तुत करने में पार नहीं होनी चाहिए जो हमेशा अच्छे स्वाद में होनी चाहिए। अश्लील और आपत्तिजनक तस्वीरें विज्ञापन के कारण अच्छे से अधिक नुकसान पहुंचाती हैं।

ग्रंथों/पाठ का प्रकार:

ग्रंथ विज्ञापनों के संदेश का दिल प्रदान करते हैं, और उन्हें एक विज्ञापन विषय के आसपास बुना जाना है। एक व्यक्तिगत प्रतिलिपि के लिए, एक विषय वांछनीय है; विषयों की बहुलता भ्रम पैदा करती है और अपील की ताकत को कमजोर करती है। पाठ को प्रस्तुत करने के लिए, व्यापारिक दुनिया में विभिन्न प्रथाओं का पालन किया जाता है।

कुछ मामलों में, पाठ पाठक को समस्या के एक बयान से पहले दिया जाता है और उसके बाद एक समाधान होता है। अन्य मामलों में, पठन सामग्री को विश्लेषणात्मक तथ्यों और प्रासंगिक तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया जाता है। इसके अलावा, टेक्स्ट को एक कॉपी में टाइप फेस के उपयोग से या दूसरी कॉपी में हार्ड लेटरिंग के द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।

#विज्ञापन विषय:


एक विषय एक विशेष दृष्टिकोण या एक केंद्रीय विचार का प्रतिनिधित्व करता है जिसके साथ संदेश को उपभोग्य जनता तक पहुँचाया जाता है। विषय में मानवीय भावनाओं, इच्छाओं या भावनाओं के आधार पर एक तर्कसंगत अपील शामिल है। इस तरह के सुविचारित और विशिष्ट अपील इच्छा जताने और उपभोक्ताओं की ओर से कार्रवाई शुरू करने में प्रभावी हुईं।

विज्ञापन में प्रयुक्त सामान्य विषय निम्नलिखित हैं:

सौंदर्य विषय:

सौंदर्य प्रसाधन, इत्र, और शौचालय उत्पादों की बिक्री अपील आमतौर पर सुंदरता के विषय पर आधारित होती है। तदनुसार, विज्ञापन के संदेश में "रोमांटिक या आकर्षक उपस्थिति के लिए, उत्पाद ए का उपयोग करें", "उत्पाद बी आकर्षक या उत्कृष्ट रंग सुनिश्चित करता है", या "चमकदार झलक और शानदार विकास के लिए उत्पाद सी के साथ अपने बालों की देखभाल करना" जैसे भाव हैं।

गर्व विषय:

गहने, रेडियो, महंगे कपड़े, मोटर कार, और अन्य के मामले में बिक्री संदेश गर्व के विषय पर रखा गया है क्योंकि इस तरह के उत्पादों के अधिग्रहण को खरीदारों की ओर से गर्व की संपत्ति माना जाता है। उदाहरण के लिए, "प्रेस्टीज कार का अर्थ है ए", "रेडियो बी किसी भी घर में शालीनता जोड़ता है", "समझदार लोग कपड़े सी पसंद करते हैं", या "एक्स के आभूषण फैशनेबल महिलाओं को मानते हैं।"

स्वास्थ्य विषय:

स्वास्थ्य के विषय पर निर्भरता के माध्यम से खाद्य उत्पादों और दवाओं का विज्ञापन किया जाता है। कुछ उदाहरण लेने के लिए, "उत्पाद एक असीम ऊर्जा और शक्ति की आपूर्ति करता है", "स्वास्थ्य खुशी लाता है- और स्वास्थ्य की कुंजी उत्पाद बी द्वारा आयोजित की जाती है", "उत्पाद सी आपको रोग से मुक्त रखता है", या "प्रख्यात चिकित्सक ठंड के लिए डी लिखते हैं और खाँसी। ”

आराम विषय:

उत्पाद जो लोगों को काम पर या घर पर आराम देने में सहायता करते हैं, उन्हें आराम के विषय के माध्यम से विज्ञापित किया जाता है। बिजली के पंखे, एयर कंडीशनिंग संयंत्र, रेफ्रिजरेटर और पसंद आराम प्रदान करने के लिए बने उत्पादों के समूह से संबंधित हैं।

अर्थव्यवस्था विषय:

यह एक सामान्य अपील है जिसका उपयोग मोलभाव करने और धन को नष्ट करने और विनाश से महंगी चीजों को बचाने के लिए मोलभाव करने के लिए किया जाता है।

डर विषय:

डर का विषय बीमा कंपनियों और सुरक्षा-तिजोरी ऑपरेटरों द्वारा उनकी सेवाओं की मांग का विस्तार करने में उपयोग किया जाता है। संभावित खतरों और उनके परिणामों को विज्ञापन की कॉपी में अपने ग्राहकों की ओर से कार्रवाई शुरू करने के लिए प्रस्तुत किया जाता है।

अनुकरण विषय:

नकल की इच्छा मानव स्वभाव में दृढ़ता से आरोपित है। कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों के रूप में चित्र और तथ्यात्मक जानकारी देकर, विज्ञापन का संदेश दूसरों की ओर से नकल के लिए कॉल कर सकता है। एक मामले को लेने के लिए, "दुनिया भर में सफल पुरुष ब्लेड ए का उपयोग करते हैं"

भेद विषय:

व्यक्तिगत मान्यता, विशिष्ट सामाजिक स्थिति, और श्रेष्ठ समुदाय के खड़े होने की इच्छा मनुष्य में निहित है। उस अंतर के एक बाहरी निशान के रूप में, बहुत महंगी प्रकृति के चयनित उत्पादों को उन लोगों के एक वर्ग द्वारा अधिग्रहित किया जाता है जो उच्च-जन्म या अभिजात वर्ग हो सकते हैं।

स्नेह विषय:

इस विषय के आधार पर शिशु खाद्य पदार्थ, खिलौने और अन्य प्लेथिंग्स का विज्ञापन किया जाता है। अभिभावक प्रेम की ओर अपील का निर्देशन करके, खरीदारों की ओर से कार्रवाई हासिल करने में विज्ञापन की प्रति प्रभावी हो जाती है।

देशभक्ति के विषय:

राष्ट्रीय मूल के उत्पादों के लिए अपील कभी-कभी राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित होती है। एक राष्ट्र और उसके नागरिकों की समृद्धि के लिए, देशभक्ति का विषय विदेशी मूल के सामानों को वरीयता में राष्ट्रीय उत्पादों का उपयोग करने के लिए एक मामला बनाता है।
साभार ....
https://in.ilearnlot.com/2019/02/vigyapan-copy-ke-ghatak-ya-tatv-kya-hai.html

Wednesday, June 10, 2020

पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।/कबीरदास

 पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।

इस पद्य में कबीर साहब अपनी उलटवासी वाणी के माध्यम से लोगों की अज्ञानता पर व्यंग्य किये हैं कि सरोवर, नदी या फिर समुद्र में पानी के बीच रहकर भी मछली प्यासी है. मुझे यह देखसुनकर हंसी आ रही है. कबीर साहब की इस वाणी का वस्तुतः अर्थ यह है कि पूरी सृष्टि एक सरोवर, नदी या कहिये समुद्र के सदृश है. उसका जल ब्रह्म यानि परमात्मा का प्रतीक है और मछली जीवात्मा यानि मनुष्य की प्रतीक है. परमात्मा के बीच रहकर भी लोग उनसे अनजान हैं और अज्ञानतावश परमात्मा को यहां वहां भटकते हुए ढूंढ रहे हैं. जीव ब्रह्म का अंश है और ब्रह्म यानि परमात्मा का अंश होते हुए भी उसे इसका ज्ञान नहीं है, क्योंकि जीव मायाधीन होकर अपने ब्रह्म स्वरूप को भुला बैठा है.

आतम ज्ञान बिना नर भटके, कोई मथुरा कोई काशी।
मिरगा नाभि बसे कस्तूरी, बन बन फिरत उदासी॥
पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी॥

आत्मज्ञान के अभाव में मनुष्य धार्मिक स्थलों पर यत्र तत्र भटक रहा है. भगवान् की खोज में कोई मथुरा भाग रहा है तो कोई काशी. अधिकतर धार्मिक स्थल मनुष्य को ब्रह्म प्राप्ति का उचित मार्ग नहीं सुझा पा रहे हैं, क्योंकि ज्यादातर धार्मिक स्थलों के पुजारी खुद ही उस सत्य से अनजान हैं. कबीर साहब कहते हैं कि यदि वस्तु घर में पड़ी है तो उसे ढूंढने के लिए बाहर भटकना ठीक वैसी ही अज्ञानता है, जैसे कस्तूरी का वास और सुगंध तो मृग की नाभि में होती है पर अज्ञानवश सुगन्धि को बाहर से आता हुआ महसूस कर हिरण भ्रमित हो जाता है और उसे वन में इधर उधर भटककर खोजता फिरता है. कस्तूरी जब जंगल में बाहर कहीं नहीं मिलती है तो मृग उदास हो जाता है और उसे कस्तूरी के होने पर ही संदेह होने लगता है. ठीक यही स्थिति मनुष्य की भी है. परमात्मा मनुष्य के भीतर है और वो उसे बाहर ढूंढ रहा है. परमात्मा को आज भी मनुष्य मंदिर-मस्जिद में ढूंढ रहा है और मंदिर-मस्जिद के लिए आपस में लड़झगड़ भी रहा है. संतों की दृष्टि में यह बेहद हास्यास्पद स्थिति है. कबीर साहब ने एक दोहे में कहा है-

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना।
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना॥ 
हिन्दू अपने को राम का भक्त कहते हैं और मुसलामानों को रहमान प्यारा है. राम और रहमान के नाम पर दोनों आपस में लड़कर मौत के मुंह में जा पहुँचते हैं. राम और रहमान के नाम पर वो दंगेफसाद और कई तरह के हिंसक अपराध करते हैं, लेकिन एक छोटी सी बात नहीं समझ पाते हैं कि राम और रहमान दोनों अलग-अलग नहीं, बल्कि एक ही हैं. चाहे उसे राम कहो या रहमान, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है.

जल-बिच कमल कमल बिच कलियाँ तां पर भँवर निवासी।
सो मन बस त्रैलोक्य भयो हैं, यति सती सन्यासी।
पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी॥
कमल जल के बीच रहता है और कमल के फूल में कलियाँ रहती हैं, जिस पर भौरा मंडराता रहता है. ठीक वैसे ही संसार रूपी कमल जल रूपी परमात्मा के बीच ही रहकर ही खिला हुआ है और मन रूपी भंवरा उसपर मंडरा रहा है. मन शक्तिशाली है और माया का प्रतिरूप है. समस्त त्रिलोक मन और माया के वशीभूत हैं. साधना करने वाले यति, सती और सन्यासी सब मन को ही नियंत्रित करने की कोशिश में लगे रहते हैं, लेकिन मन संसार रूपी माया की ओर भागने से मन नियंत्रित नहीं होगा. मन तो केवल भगवान् की भक्ति से ही नियंत्रित होगा.

है हाजिर तेहि दूर बतावें, दूर की बात निरासी।
सो तेरे घट मांहि बिराजे, सहज मिले अबिनासी।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, गुरु बिन भरम न जासी।
परमात्मा का निवास मनुष्य के ह्रदय में है, जो हमारे एकदम समीप है उसे अज्ञानी धर्मगुरु दूर के लोक का निवासी बताते हैं. ऐसे धर्मगुरुओं की बात सुनने वाला व्यक्ति भगवान् को दूर लोक का वासी जान निराश हो जाता है और उसकी खोज ही बंद कर देता है. जबकि सत्य तो यह है कि जन्मजन्मांतर से जिस परमात्मा की हम तलाश कर रहे हैं वो हमारी देह के भीतर ही है. परमात्मा हमारी देह के भीतर है, यह विश्वास करके और संतों की संगति करके सहजता से उसका अनुभव किया जा सकता है. कबीर साहब फरमाते हैं कि जब तक जीवन में किसी ब्रह्मज्ञानी व ब्रह्मनिष्ठ सतगुरु से भेंट नहीं होगी, तब तक मन के भीतर स्थित भ्रम और संदेह भी नहीं मिटेंगे, इसलिए जीव को किसी सतगुरु की खोज करनी चाहिए. गीता में भी कहा गया है-

तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः॥ ४.३४॥
अर्थात आत्मा-परमात्मा से संबंधित तत्त्व-ज्ञान को तत्त्वदर्शी ज्ञानी महापुरुषों के पास जाकर समझना चाहिए. उनको भलीभांति साष्टांग दण्डवत् प्रणाम करना चाहिए, उनकी यथासामर्थ्य सेवा करनी चाहिए और तत्पश्चात निच्छल मन से सरलता-पूर्वक प्रश्न करना चाहिए. वे ज्ञानी, अनुभवी, और तत्त्वदर्शी महापुरुष उस तत्त्व-ज्ञान का उपदेश देंगे। जिस तत्वज्ञान का वे उपदेश देंगे और अनुभव कराएंगे, उससे यह ज्ञात हो जाएगा कि ये शरीर मेरा है, किन्तु मैं शरीर नहीं हूँ. मैं प्राण, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार आदि भी नहीं हूँ, मैं चैतन्य आत्मा हूँ और परमात्मा का अंश हूँ. वह ईश्वर तत्व मुझ में है और वही ईश्वर तत्व सब मनुष्यों के भीतर भी है. अतः आत्मा-परमात्मा को देह के भीतर ही ढूंढना चाहिए.

हमारे अधिकांशतः धार्मिक स्थल आज मनुष्य को न तो सांसारिक सन्मार्ग दिखा रहे हैं और न ही आध्यात्मिक दृष्टि से तृप्त कर रहे हैं, बल्कि धर्म के नाम पर लोंगो को सिर्फ भड़काने, अनुयायी बनाकर लूटने, आपस में लड़ाने-भिड़ाने और ईश्वर-पथ से भटकाने का ही कार्य कर रहे हैं. जब तक मनुष्य को अपने वास्तविक स्वरुप का बोध नहीं होगा, तब तक वो तीर्थों और कमर्काण्ड़ों के भंवरजाल में फंसकर छटपटाता रहेगा, धर्मगुरु शिष्य बनाकर उसे जीवन भर मूर्ख बनाते रहेंगे, अपनी तुच्छ स्वार्थ सिद्धि करते रहेंगे और उसकी जन्मजन्मांतर की आध्यात्मिक प्यास भी कभी नहीं बुझेगी. कबीर साहब कहते हैं कि किसी सद्गुरु की मदद से जिस दिन किसी व्यक्ति का परिचय अपने स्वरूप की सहजता से हो जाता है, उसे सहज स्वरूप परमात्मा प्राप्त हो जाते हैं. वस्तुतः यही गुरुपूर्णिमा का मूल सन्देश है और गुरु पूर्णिमा पर पढ़े जाने वाले मन्त्र ‘गुरु परंपरा सिद्धयर्थ व्यास पूजाम करिष्ये’ अर्थात ‘गुरु पम्परा से प्राप्त ज्ञान की सिद्धि के लिए व्यास पूजा कर रहे हैं’ का वास्तविक अर्थ भी यही है.
[29/04, 10:15] Sm: कबीरदास के  इस पद में पहली पंक्ति उलटवासी पद्धति की है ,यद्यपि 

शेष पंक्तियों में अध्यात्म कथन का सीधा प्रवाह है। वस्तुत :पानी ब्रह्म 

सरोवर का प्रतीक है और मछली जीवात्मा का प्रतीक है। ब्रह्म का अंश 

होते हुए भी जीव मायाधीन होकर अपने स्वरूप को भुला बैठता है। आत्म 

विस्मृति में जीता हुआ जीव अनेक प्रकार  सांसारिक उत्थान पतन से 

गुज़रता  हुआ कष्टों और भ्रमों में जीवन बिता देता है। हालांकि वह ब्रह्म 

का अंश है पर ब्रह्म पाने के लिए वह सहज भक्ति मार्ग से  चलने से दूर 

चला जाता है। भाव का स्वरूप होते हुए भी अभाव में जीता है। कबीरदास 

कहते हैं अपने स्वरूप को विस्मृत करने के कारण जीव अपनी ब्रह्मरूपता 

को पहचान नहीं पाता। ये ठीक वैसे है जैसे सरोवर के बीच में रहती हुई 

मछली को यह महसूस हो कि वह प्यासी है ,ऐसी आत्मविस्मृति पर 

कबीरदास उलटवासी के माध्यम से कहते हैं कि जीव की स्थिति पर मुझे 

हँसी  आती है।अपने स्वरूप को जाने बिना बाहर का कर्मकांड आत्म ज्ञान 

प्रदान नहीं करता चाहे वह मथुरा हो या फिर काशी या इसी प्रकार के और 

धार्मिक स्थल क्यों न हों वे मनुष्य को ब्रह्म प्राप्ति का कोई मार्ग नहीं 

सुझाते  . ब्रह्म प्राप्ति के लिए अपने ब्रह्म स्वरूप से परिचित होना पड़ता 

है। बाहर 

भटकने का कोई लाभ नहीं है। यदि वस्तु घर में पड़ी है और उपलब्ध 

अवस्था से अपरिचित होकर हम उसे बाहर खोजने जाते हैं तो लोक- 

उपहास का पात्र बनते हैं पर माया की प्रबलता को भी उपेक्षित नहीं किया 

जा सकता जैसे कस्तूरी का वास तो मृग की नाभि में होता है पर 

अज्ञानवश सुगन्धि से भ्रमित हुआ हिरण उसे वन वन में खोजता फिरता 

है। यही जीव की स्थिति है। वह परमात्मा को पाने के लिए कर्मकांड और 

प्रदर्शन वृत्ति में रमा रहता है ,जिस दिन अपने स्वरूप की सहजता से 

उसका परिचय हो जायेगा  वह सहज स्वरूप परमात्मा  उसे 

प्राप्त हो जायेंगे। भाव यह कि इस पद में परमात्मा की सर्वव्यापकता 

माया की प्रबलता और सहज अवस्था के महत्व को प्रतिपादित करते हुए 

कबीर दास जी यह कहना चाहते हैं कि सहज स्वरूप परमात्मा को सहज 

होकर ही प्राप्त किया जा  सकता है।

Sunday, June 7, 2020

कबीर हमारे समय में/स्मिता मिश्र












पेज ज़रा  टेढ़े है . मोबाइल की पोज़िशन एडजस्ट कर लेना 









Friday, May 22, 2020

कबीर की उलटबांसी/डॉ सुरेश(6th sem)


कबीर की उलटबांसी
     
मसि कागज छूवो नहीं, कलम गही नहिं हाथ, के बावजूद कबीरदास का नाम हिंदी भक्त कवियों में बहुत ऊँचा है। वे सच्चे अर्थों में समाज-सुधारक तथा युग पुरुष थे। कबीर निर्गुण भक्ति धारा की ज्ञानमार्गी ¶ााखा में सर्वोपरि माने जाते हैं। उनके जन्म के सम्बन्ध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। कुछ उन्हें हिन्दू की सन्तान मानते हैं तो कुछ उनके माता-पिता को मुसलमान-जुलाहे की जाति से जोड़ते हैं। "तू ब्रााहमन मैं का¶ाी का जुलाहा' कहकर कबीर ने अपने को जुलाहा तो स्वीकार किया है, पर एक अन्य पद में "ना हिन्दू, ना मुसलमान' बताकर उन्होंने अपने को धर्मों से अलग रखा है। हजारी प्रसाद द्विवेदीजी के ¶ाब्दों में "यह सामाजिक और आध्यात्मिक भी हो सकता है।' उनका जन्म पंद्रहवीं सदी में का¶ाी में हुआ था, परन्तु उनकी मृत्यु मगहर में हुई। ऐसी मान्यता है कि लम्बे समय तक का¶ाी में रहने वाले कबीर अपने अन्त समय यह कहते हुये मगहर चले गये कि "जो कबिरा का¶ाी मरे तो रामहिं कौन निहोरा।' 
कबीर को समझने के लिये उनके जन्मकाल के समय के राजनैतिक तथा धार्मिक इतिहास को टटोलना बेहतर होगा। कबीर का जन्म उस काल में हुआ जब भारत में इस्लाम का चतुर्दिक बोलबाला था। बौद्धधर्म को अफगानिस्तान तथा दे¶ा के प¶िचमी प्रदे¶ाों से पूर्णतः समाप्त कर यह सुसंगठित धर्म भारत की मुख्यधारा में ¶ाामिल हो राजसत्ता के सहयोग से फल-फूल रहा था। दे¶ा की हिंदू जनता पर मुस्लिम आतंक का कहर छाया हुआ था। जिस बौद्ध-मत का आधार कभी चारित्रिक संयम और चिन्तन हुआ करता था, वह समय की धारा में "महायान' से ढ़लता हुया वज्रयान तथा वाममार्ग के योग और भोग (नर-नारी समागम) के बीच झूल रहा था। वेद तथा उपनिषद के स्वर्णिम युगों से निकलकर उस काल का हिन्दू-धर्म कर्मकांड, जातिवाद, छुआछूत, पाखंड और ब्रााहृण-श्रेष्ठता की विसंगतियों से ग्रसित था। अनेक गुरु-विचारक जैसे रामानन्द, रामानुजाचार्य, माधवाचार्य आदि अपने-अपने ढंग और परम्परा में हिन्दू समाज को सम्भालने का प्रयत्न कर रहे थे। निराकार ब्राहृ के उपासक कबीर ने वज्रयान से राजयोग को अपनाया। नाथपंथियों की साधना पद्धति हठयोग राजयोग का ही एक सोपान है। "ॐ रामाय: नम:' केे अधिष्ठाता रामानन्द के साथ कबीर दास का गुरू-¶िाष्य का सम्बन्ध था। संस्कृति के चार अध्याय में दिनकर जी ने लिखा है - "रामानन्द का सम्प्रदाय रामावत-सम्प्रदाय कहलाता है जो वि¶िाष्टाद्वैतवादी तो है, किन्तु वह उपासना विष्णु के बदले राम का करता है।' रामानन्द आचार में कठोर वर्णाश्रमी नहीं थे और भक्ति-मार्ग में उदारता के पहले बीज बोये थे। उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायी दो दलों में बँट गये। तुलसीदास और नाभादास वि¶िाष्टाद्वैतवादी के साथ-साथ वेद और वर्णाश्रम-वि·ाासी थे, जबकि कबीर दूसरी धारा के भक्त हुये जो वि¶िाष्टाद्वैत, वर्णाश्रम और वेद के विरुद्ध थे। पर दोनों ही दल रामानन्द के भक्ति-धर्म को आदर्¶ा मानते थे। हजारीप्रसाद द्विवेदी जी के ¶ाब्दों में - "रामानन्द के प्रधान उपदे¶ा अनन्य भक्ति को कबीर ने ¶िारसा स्वीकार कर लिया था।' परन्तु कबीर स्वयं गुरु-महिमा "कबिरा हरी के रूठते, गुरु के ¶ारणे जाए' एवं "गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागूँ पाँय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय' के दायरे से आगे निकलकर "राम रहीमा एक हैं, नाम धराया दोय' तथा "का¶ाी-काबा एक है, एकै राम रहीम' से होते हुये दुर्बलताओं ("नींद नि¶ाानी मौत की, उठ कबीरा जाग') तथा आडम्बरों ("माला फेरत जुग गया, फिरा न मन का फेर' एवं "मन न रँगाये, रँगाये जोगी कपड़ा' तथा "पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार' और "कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई बनाय, ता चढि मुल्ला बाँग दे क्या बहरा हुआ खुदाय') के विरोध तक पहुँच गये। दिनकर जी के ¶ाब्दों में - "इस्लाम का एके·ारवाद कबीर को बहुत पसन्द था। किन्तु उन पर छाये हिन्दू-संस्कारों ने उनके तसव्वुफ को ठीक इस्लामी नहीं रहने दिया।' कबीर ने भारतीय समाज को तंगदिली से बाहर निकालकर एक नयी राह पर डालने का प्रयास किया। उन्होंने अपनी अलग राह बनायी जिसे आज कबीर-मत अथवा कबीर-पंथ कहते हैं। इस मत ने हिन्दू-मुस्लिम को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया था। दिनकर जी के अनुसार - "वेदान्त और इस्लाम से अर्जित निराकारवादी संस्कार तथा जात-पाँत की उदारता के साथ-साथ धार्मिक सहिष्णुता की धारा जो कबीर और उनके अनुयायियों ने बहायी वह अपनी नकारात्मकता के कारण अपने ही घाट से बहती हुयी आगे निकली। उसने सम्पूर्ण संस्कृति और साहित्य को प्लावित नहीं किया।' इसके बावजूद कबीर दास की महत्ता कमतर नहीं होती। वे नि:सन्देह भक्तिकाल के प्रमुख कवि तथा समाज-सुधारक थे।
कबीर की भाषा सधुक्कड़ी है। इस भाषा में राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्राजभाषा के ¶ाब्दों की बहुलता है। उन्होंने अपनी भाषा सरल और सुबोध रखी ताकि वह आम आदमी तक पहुँच सके। इसका स्पष्ट उदाहरण उनके ये कुछ पद हैं -
ज्यों तिल माहीं तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा सार्इं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग।
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
कबिरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।
निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करें सुभाव।
हिन्दू कहत राम हमारा, मुसलमान रहमाना।
आपस में दोऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना।
कबीर की रचनाएँ साखी, सबद, रमैनी के अतिरिक्त बीजक में संग्रहित हैं। उनकी उलटबांसियाँ (जो न्न्ड्ढद द्धत्ड्डथ्ड्ढद्म के समान हैं) बहुत लोकप्रिय हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "कबीर' में इन उलटबांसियों की विस्तृत चर्चा की है। योगियों, सहजयानियों और तांत्रिकों के ग्रन्थों में "उल्टी बानियों' का बाहुल्य है। कबीर दास ने उनकी ¶ाब्दावली में अपने मत के ¶ाब्दों को मिलाकर अपनी उलटबांसियाँ कहीं। "कबीर' में द्विवेदी जी ने कबीर के उपमानों (संकेतों) को उदाहरण के साथ विद्वतापूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है। द्विवेदी जी के अनुसार कबीर की उलटबांसियों को समझने के लिये ¶ाास्त्रीय परंपरा और कबीर दास का व्यक्तिगत मत सामने रखना चाहिये। उलटबांसियों के पीछे की सच्चाई को उजागर करते हुए ¶िावकुमार मिश्र जी लिखतें हैं - "उलटबांसियों को कबीर ने साधारण जनता को अपने ज्ञान से आतंकित करने के लिए नहीं लिखा। उनका लक्ष्य पोथी ज्ञान से दबे पंडित थे, जिनके बीच कबीर को रहना और जीना था। जाहिर है कि उनकी उलटबांसियों के अर्थ पोथियों में नहीं थे और पंडितों की नगरी का¶ाी का कोई भी पंडित उनका अर्थ करने में समर्थ नहीं था। पंडितों के अहंकार को कबीर की ये उलटबांसियाँ तोड़ती हैं, उनके सारे ज्ञान की पोल खोल देती है।'
यहाँ उदाहरण के लिये दो उलटबांसियाँ दी गयी हैं (उदाहरण 1 तथा उदाहरण 2, अखण्ड ज्योति, दिसम्बर 1984 तथा अगस्त 1985 के अंकों से साभार लिये गये हैं।) जिनसे पता चलता है कि इनके ¶ाब्दार्थ कितने व्यंग भरे हैं, परन्तु तत्वार्थ कितने सारगर्भित हैं - देखि-देखि जिय अचरज होई / यह पद बूझें बिरला कोई / धरती उलटि अकासै जाय, चिउंटी के मुख हस्ति समाय / बिना पवन सो पर्वत उड़े, जीव जन्तु सब वृक्षा चढ़े / सूखे-सरवर उठे हिलोरा, बिनु-जल चकवा करत किलोरा।
धरती उलटकर आका¶ा को चली, चींटी के मुँह में हाथी समा गया, हवा के बिना ही पर्वत उड़ने लगा, जीव जन्तु सब वृक्ष पर चढ़ने लगे। सूखे सरोवर में हिलोरें उठने लगीं, चकवा बिना पानी के ही कलोल करने लगा। 
इस उलटबांसी में योगी की अन्तरंग और बहिरंग स्थिति का वर्णन है। गीता में कहा गया है कि जब संसार जागता है तब योगी सोता है। जब योगी सोता है तब संसार जागता है। अर्थात् मायाग्रस्त संसारी और माया-मुक्त योगी की स्थिति एक दूसरे से सर्वथा उलटी होती है। योगी के लिये मायावी संसार सर्वथा हेय होता है, किन्तु जो मोह ग्रस्त हैं वे उसी में हर घड़ी तल्लीन रहते हैं।
तात्पर्य- माया मोह ग्रसित जीवन में जो कर्म व्यवहार होते हैं वे साधना-रत जीवन में एकदम उलट जाते हैं। दृ¶य जगत अदृ¶य जगत में समा जाता है। यह संसार हाथी है। आत्मा सूक्ष्म है, चींटी से भी छोटी। आत्मा जब जागृत होती है तो उसमें सारा संसार विलीन हो जाता है। पर्वत जैसा दिखने वाला माया-मोह बिना प्रयास के ही, बिना हवा के ही गायब हो जाता है। जमीन में छेद करके अधोगति को जाने वाले गुण कर्म स्वभाव आत्मा के आनन्द रूपी वृक्ष में डूबने लगते हैं। यह भौतिक जीवन मायाग्रस्त, नीरस और दुःख-दारिद्र से भरा है। पर उसी सूखे सरोवर में अन्तःकरण आनन्द की हिलोरें लेने लगता है। चित्त रूपी चकवा को जब आत्म ज्ञान का अमृत मिल जाता है तो वह कलोल करने लगता है ।
उलटबांसी के इस दूसरे उदाहरण में कबीर कहते हैं - एकै कुँवा पंच पनिहारी / एकै लेजु भरै नौ नारी / फटि गया कुँआ विनसि गई बारी / विलग गई पाँचों पनिहारी।
एक कुएँ पर नौ पनिहारी पहुँचीं। रस्सी तो एक थी, पर नौ नारियाँ पानी भर रही थीं। कुँआ फट गया और बारी का खेत नष्ट हो गया। पाँचों पनिहारी अलग-अलग चली गर्इं।
तात्पर्य- अन्तःकरण रूपी कुआँ एक है। इसमें नौ पनिहारी (¶ारीर की नौ इन्द्रियाँ) कषाय-कल्मष की तरह पानी भरती हैं। आत्मा का भगवत् समर्पण होने पर वह मोह ग्रस्त अन्तःकरण फट जाता है। इस कुएँ में से पानी खींचकर पनिहारियों ने जो ¶ााक-भाजी की क्यारी उगाई थी सो नष्ट हो जाती है। खेल बिगड़ जाने पर पाँच पनिहारी अर्थात् पाँच-तत्व यथा क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर अलग-अलग चली जाती हैं।
आचार्य रामचन्द्र ¶ाुक्ल ने लिखा है - "कबीर में जो रहस्यवाद मिलता है, वह तो बहुत कुछ उन पारिभाषिक संज्ञाओं के आधार पर है जो वेदान्त तथा हठयोग में निर्दिष्ट है।' रहस्यवाद वह भावनात्मक अभिव्यक्ति है जिसमें कोई व्यक्ति या रचनाकार उस अलौकिक, परम, अव्यक्त सत्ता से अपने प्रेम को प्रकट करता है। उस पारलौकिक आनंद को व्यक्त करने के लिए प्रतीकों का सहारा लेना पड़ता है, जो आम जनता के लिए रहस्य बन जाते है। रहस्यवाद की चर्चा करते हुये संस्कृति के चार अध्याय में दिनकर जी लिखते हैं - हिन्दी के भक्ति-आन्दोलन काल में तीन प्रकार के कवि हुये थे। प्रथम वर्ग उनका है जो कथा-काव्य की प्रणाली से रहस्यवाद का कथन करते थे। इनके सिरमौर जायसी हैं। इनका रहस्यवाद सूफी सौन्दर्यवाद और प्रतिबिम्बवाद से प्रभावित है। दूसरे वर्ग के कवि निर्गुण का उपदे¶ा करते थे और साथ ही वर्णाश्रम धर्म की निन्दा भी। इस ¶ााखा में अग्रगणी कबीर हुये। तीसरा वर्ग सूर और तुलसी का था। यह वर्ग वर्णाश्रम के साथ था और भक्त होने के कारण सभी मनुष्यों के साथ प्रेम करता था। दिनकर जी कबीर वाली धारा को सिद्धों की धारा का विकास-मात्र मानते हैं क्योंकि वे परम सत्ता से जुड़ने के लिये योग का माध्यम लेते हैं।

by डॉ. सुरेश

Thursday, May 7, 2020

Online Classes taken by Dr Smita Mishra in Lockdown

डॉ स्मिता मिश्र
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभाग प्रभारी
वैश्विक आपदा कोरोना के कारण ऑनलाइन अध्यापन एवं विद्यार्थियों से संपर्क
दिनांक 16/03/20से 30/04/20 तक    Uploaded on Blog and FB Page  smitamishr.blogspot.com ,  Smita Mishra students 2019-20

FB page-  

क्रम संख्या
कक्षा
ऑनलाइन अध्यापन मोड
तिथि
पेपर
विषय
1.        
B.A(Hindi)6th semester
Blog
16/03/20
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
फणिश्वरनाथ रेणु की कहानियाँ
2.        
B.A(Hindi)6th semester
Blog
16/03/20
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
अमीर खुसरो की सामाजिकता
3.        
B.A(Hindi)6th semester
Blog
16/03/20
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
रानी केतकी की कहानी
4.        
B.A(Hindi)4th semester
Blog
16/03/20
भाषा और समाज
हिंदी की जातीयता
5.        
B.A(Hindi)4th semester
Blog
16/03/20
भाषा और समाज
हिंदी जाति और रामविलास शर्मा
6.        
B.A(Hindi)4th semester
Blog
16/03/20
भाषा और समाज
भाषा समाज और संस्कृति
7.        
B.A(Hindi)4th semester
Blog
16/03/20
भाषा और समाज
भाषा का समाजशास्त्र
8.        
B.A(Hindi)4th semester
Blog
18/03/20
भाषा और समाज
भाषा और समाज
9.        
B.A(Hindi)6th semester
Blog
18/03/20
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
अर्धकथानक
10.    
B.A(Program)4th semester
Blog
18/03/20
विज्ञापन और हिंदी भाषा
विज्ञापन
11.    
B.A(program)6th semester
Blog
18/03/20
कंप्यूटर और हिंदी भाषा
कंप्यूटर की संकल्पना 
12.    
B.A(Hindi)6th semester
FB  Messenger  group
19/03/20
B.A(Hindi)4th semester
विद्यार्थियों से विचार विमर्श
13.    
B.A(Hindi)4th semester
FB Messenger group
19/03/20
B.A(Hindi)4th semester
विद्यार्थियों से विचार विमर्श
14.    
B.A(Hindi)4th semester
FB Messenger group
20 /03/20
B.A(Hindi)6th semester
विद्यार्थियों से विचार विमर्श
15.    
B.A(Hindi)6th semester
FB Live
21/03/20
B.A(Hindi)6th semester
कबीरदास के पद की व्याख्या
16.    
B.A(Hindi)6th semester
FB Live
22/03/20
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
अमीर खुसरो की मुकरियां
17.    
B.A(Hindi)6th semester
FB Live
28/03/20
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
अर्धकथानक
18.    
B.A(Program)4th semester
Blog
25/03/20
विज्ञापन और हिंदी भाषा
विज्ञापन
19.    
B.A(Hindi)6th semester
Blog
30/03/20
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
ग़ज़ल का स्वरूप
20.    
B.A(Hindi)6th semester
Fb live
31/3
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
कबीरदास समीक्षा
21.    
B.A(Hindi)6th semester
Fb live
1/4
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
अर्धकथानक
22.    
B.A(Hindi)6th semester
Fb live
7/4
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
आमिर खुसरो की सामाजिकता
23.    
B.A(Hindi)6th semester
Test (FB Page)
9/4
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
पंचलेट ,अमीर खुसरो ,कबीर ,अर्धकथानक
24.    
B.A(Hindi)4th semester
Test( FB Page)
10/4
भाषा और समाज

25.    
B.A(Hindi)4th semester
Blog
17/4
भाषा और समाज
समाज भाषा विज्ञान
26.    
B.A(Hindi)4th semester
Blog
17/4
भाषा और समाज
भाषा का समाजशास्त्र
27.    
B.A(Program)6th semester
Blog
17/4
कंप्यूटर और हिंदी भाषा
SMS
28.    
B.A(Program)6th semester
Fb page posting
18/4
कंप्यूटर और हिंदी भाषा
SMS का स्वरुप
29.    
B.A(Hindi)6th semester
Fb live
19/4
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
कबीरदास
30.    
B.A(Hindi)6th semester
Fb live
20/4
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
कबीरदास
31.    
B.A(Hindi)6th semester
Fb live
21/4
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
कबीर के पद की व्याख्या
32.    
B.A(Hindi)6th semester
Fb live
24/4
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
कबीर के पद की व्याख्या
33.    
B.A(Hindi) 4th semester
Blog
25/4
भाषा और समाज
द्विभाषिकता और बहुभाषिकता
34.    
B.A(Hindi)6th semester
YouTube link on blog
25/4
हिंदी की भाषिक विविधताएँ
हिंदी उर्दू ग़ज़ल का स्वरूप
35.    
B.A(Hindi) 4th semester
Blog
27/4
भाषा और समाज
रामविलास शर्मा (अतिरिक्त सामग्री )
36.    
B.A(Program)6th semester
Blog
29/4/20
कंप्यूटर और हिंदी भाषा
ई पत्रकारिता
37.    
B.A(Program)4th semester
Blog
29/4/20
विज्ञापन और हिंदी भाषा
विज्ञापन लेखन
38.    
B.A(Program)6th semester
Blog
29/4/20
कंप्यूटर और हिंदी भाषा
SMS का इतिहास,मार्केटिंग टूल
39.    
B.A(Hindi)6th semester
Test ईमेल 
30/4
हिंदी की भाषिक
विविधताएँ
कबीरदास के पदों की व्याख्या