Monday, May 3, 2010
भारत में क्रिकेट किसी खेल की तरह रहे और अंग्रेजी किसी भाषा की तरह तो किसी को कोई आपत्ति क्यों होगी ? डॉ.वैदिक
•अंग्रेजों के लिए अंग्रेजी उनकी सिर्फ मातृभाषा और राष्ट्रभाषा है लेकिन
‘भद्र भारतीयों’ के लिए यह उनकी पितृभाषा, राष्ट्रभाषा, प्रतिष्ठा-भाषा,
वर्चस्व-भाषा और वर्ग-भाषा बन गई है। अंग्रेजी और क्रिकेट हमारी गुलामी
की निरंतरता के प्रतीक हैं।
•जैसे अंग्रेजी भारत की आम जनता को ठगने का सबसे बड़ा साधन है, वैसे ही
क्रिकेट खेलों में ठगी का बादशाह बन गया है।
•जैसे अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में भोले लोग अपने बच्चों को अपना पेट
काटकर पढ़ाते हैं, वैसे ही लोग क्रिकेट-मैचों के टिकिट खरीदते हैं, टीवी
से चिपके बैठे रहते हैं और खिलाड़ियों को देवताओं का दर्जा दे देते हैं।
•हमारे नेता जैसे अंग्रेजी की गुलामी करते हैं, वैसे ही वे क्रिकेट के
पीछे पगलाए रहते हैं। अब देश में कोई राममनोहर लोहिया तो है नहीं, जो
गुलामी के इन दोनों प्रतीकों को खुली चुनौती दे।
•भारत में क्रिकेट किसी खेल की तरह रहे और अंग्रेजी किसी भाषा की तरह तो
किसी को कोई आपत्ति क्यों होगी ? लेकिन खेल और भाषा यदि आजाद भारत की
औपनिवेशिक बेड़ियाँ बनी रहें तो उन्हें फिलहाल तोड़ना या तगड़ा झटका देना
ही बेहतर होगा।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी। इस पद्य में कबीर साहब अपनी उलटवासी वाणी के माध्यम से लोगों की अज्ञानता पर व्यंग्य किये हैं कि ...
-
Films Division The Films Division was constituted in January 1948 by re-christening the erstwhile Information Films of India and the Indian ...
-
रविवार, अगस्त 28, 2011 दिल्ली में लहलहाती लेखिकाओं की फसल Issue Dated: सितंबर 20, 2011, नई दिल्ली एक भोजपुरी कहावत है-लइका के पढ़ावऽ,...

1 comment:
बहुत खरा सत्य लिखा आपने कि अंग्रेजी श्रेष्ठता सिद्ध करने का पैमाना बन गई है सिर्फ भाषा तक सीमित नहीं रही.. क्या किसी को अंग्रेजी ना आने पर लेकिन ४ अन्य भाषाओँ का ज्ञान होने पर वही सम्मान मिलेगा जो अंग्रेजी जानने पर मिलता है? कतई नहीं. इसी तरह क्रिकेट को खेल नहीं बल्कि एक पूजा की तरह बना दिया गया है.. ये सब सिर्फ बाजारवाद के कारण है. आभार
Post a Comment