Sunday, September 28, 2014

नवरात्रि - मौसम और जीवन में बदलाव की घड़ी..मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से साभार

हिन्दू पंचांग के आश्विन माह की नवरात्रि शारदीय नवरात्रि कहलाती है। विज्ञान की दृष्टि से शारदीय नवरात्र में शरद ऋतु में दिन छोटे होने लगते हैं और रात्रि बड़ी। वहीं चैत्र नवरात्र में दिन बड़े होने लगते हैं और रात्रि घटती है, ऋतुओं के परिवर्तन काल का असर मानव जीवन पर न पड़े, इसीलिए साधना के बहाने हमारे ऋषि-मुनियों ने इन नौ दिनों में उपवास का विधान किया।
संभवत: इसीलिए कि ऋतु के बदलाव के इस काल में मनुष्य खान-पान के संयम और श्रेष्ठ आध्यात्मिक चिंतन कर स्वयं को भीतर से सबल बना सके, ताकि मौसम के बदलाव का असर हम पर न पड़े। इसीलिए इसे शक्ति की आराधना का पर्व भी कहा गया। यही कारण है कि भिन्न स्वरूपों में इसी अवधि में जगत जननी की आराधना-उपासना की जाती है।
नवरात्रि पर्व के समय प्राकृतिक सौंदर्य भी बढ़ जाता है। ऐसा लगता है जैसे ईश्वर का साक्षात् रूप यही है। प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ वातावरण सुखद होता है। आश्विन मास में मौसम में न अधिक ठंड रहती है न अधिक गर्मी। प्रकृति का यह रूप सभी के मन को उत्साहित कर देता है। जिससे नवरात्रि का समय शक्ति साधकों के लिए अनुकूल हो जाता है। तब नियमपूर्वक साधना व अनुष्ठान करते हैं, व्रत-उपवास, हवन और नियम-संयम से उनकी शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक शक्ति जागती है, जो उनको ऊर्जावान बनाती है।
इस काल में लौकिक उत्सव के साथ ही प्राकृतिक रूप से ऋतु परिवर्तन होता है। शरद ऋतु की शुरुआत होती है, बारिश का मौसम बिदा होने लगता है। इस कारण बना सुखद वातावरण यह संदेश देता है कि जीवन के संघर्ष और बीते समय की असफलताओं को पीछें छोड़ मानसिक रूप से सशक्त एवं ऊर्जावान बनकर नई आशा और उम्मीदों के साथ आगे बढ़े।

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विजय कुमार मल्होत्रा
पूर्व निदेशक (राजभाषा),
रेल मंत्रालय,भारत सरकार

Friday, September 12, 2014

क्यों मनाया जाता है ‘हिंदी दिवस

हर साल 14 सितंबर को पूरे देश में हिन्दी दिवस मनाया जाता है. दरअसलदेश आजाद होने के बाद 1949 में 14 सितंबर के दिन ही संवैधानिक सभा ने एक प्रस्ताव पारित कर देवनागरी लिपि में हिन्दी को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी थीइसीलिए इस तिथि को हिन्दी के नाम समर्पित कर दिया गया और इस तिथि को हिन्दी दिवस के रूप में घोषित कर दिया गया. तब से प्रति वर्ष 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है. हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में अधिकांश स्कूल और सरकारी विभाग कई तरह के कार्यक्रम आयोजित करते हैं.

Monday, September 8, 2014

हिन्दी वॉयस टायपिंग व हिन्दी वॉयस सर्च/ हिन्दी-श्रुतलेखन अर्थात् जादू का पिटारा /कविता वाचक्नवी

           - कविता वाचक्नवी 


कल मैंने गूगल द्वारा हिन्दी में जारी श्रुतलेखन सुविधा की सूचना दी थी। यह सुविधा ने गूगल ने कई माह से उपलब्ध करवा रखी है। मैंने फ़ोन पर इसे स्थापित/सक्रिय भी किया हुआ था किन्तु प्रयोग नहीं किया था। इसी बीच मध्य अगस्त में जब गूगल ने वॉयस सर्च के लिए भी हिन्दी उच्चारण की सुविधा जारी की तो मित्रों से बातचीत करते हुए लम्बे लेख आदि लिखने के लिए पूर्व में ही जारी व अपने मोबाईल पर स्थापित की हुई इस सुविधा को सक्रिय करने का प्रसंग भी आ गया और कल उसका तुरन्त प्रयोग कर पहला ईमेल व फेसबुक आदि पर इसकी सार्वजनिक सूचना भी जारी की। 

उत्तर में कल से अब तक कई सौ लोगों ने इसके प्रयोग की विधि पूछी है। क्रमवार दोनों सुविधाओं का प्रयोग करने की विधि यों है - 


गूगल हिन्दी वॉयस सर्च 

यह चित्र मेरे सिस्टम पर हिन्दी वायस-सर्च का 

गूगल ने ऍण्ड्रॉइड पर मध्य अगस्त में हिन्दी में वॉयस सर्च की सुविधा जारी की। वॉयस सर्च का नया अपडेट हिन्दी का विकल्प साथ ले कर आया है 


यदि आप हिन्दी को वाचिक 'सर्च' की भाषा के रूप में प्रयोग करना चाहते हैं तो ऐसा करें - 

Google Settings >> select Search and Now >> Voice >> Language >> select हिन्दी (भारत)

  • यह सुविधा सक्रिय करने के बाद आप गूगल सर्च पर जाने पर पाएँगे कि सर्च बॉक्स में एक माईक्रोफ़ोन का चिह्न बना हुआ है। 
  • उस पर कर्सर ले जाने पर 'ध्वनि द्वारा खोजें' लिखा हुआ दिखाई देगा। इसे आप क्लिक कीजिए। 
  • क्लिक करते ही लाल रंग का माईक दिखाई देगा और लिखा होगा 'अब बोलें'। 
  • आपको जो खोजना है उसे बोलिए। मैंने तो मन्त्रों का उच्चारण कर भी देखा। किसी आश्चर्य की भाँति आपके बोले जाने वाले शब्द स्वतः 'सर्च बार' में लिखे जाते हुए दिखाई देंगे व तुरन्त उन शब्दों के सर्च परिणाम आपके सामने प्रकट हो जाएँगे। सर्च परिणाम इस बात पर निर्भर करते हैं कि आपका उच्चारण कितना शुद्ध व स्पष्ट था, आसपास शोर व ध्वनियों का स्तर कितना था आदि। 
क्योंकि यह वाचिक सर्च है अतः माईक में जाने वाली अन्य कोई भी ध्वनि इसे प्रभावित कर सकती है। सर्च में 'हूँ' इत्यादि के लिए कभी-कभी आपको परिणाम सन्तोषप्रद नहीं भी लग सकते हैं। वस्तुतः मशीन अक्षर व ध्वनि का अन्तर नहीं समझ पाती। हिन्दी का कोई शब्द/ अक्षर यदि किसी ध्वनि से साम्यता रखता है, जैसे 'हूँ', तो सर्चपरिणाम कुछ बेमेल आ सकते हैं। 

यह सुविधा आप लैपटॉप व ऍण्ड्रॉइड फोन दोनों पर पा सकते हैं।


गूगल हिन्दी श्रुतलेखन / वॉयस टायपिंग / डिक्टेशन

मोबाईल पर आप अब बोलकर कितना भी बड़े आकार का लेख लिख सकते हैं। गूगल की इस सुविधा द्वारा आप मोबाईल से मैसेज, फेसबुक अपडेट, वाट्सएप पर चैट, ब्लॉग में लेख, वर्ड फाईल में सामग्री आदि अर्थात जहाँ-जहाँ आप मोबाईल से टाईप कर करते हैं, वहाँ-वहाँ केवल बोलकर देवनागरी में टाईप किया हुआ पा सकते हैं। 

यह सुविधा ऍण्ड्रॉइड वाले फ़ोन पर ही उपलब्ध है, अर्थात जहाँ-जहाँ गूगल लैंग्वेज़ इनपुट टूल लगाया हो। लैपटॉप अथवा सिस्टम पर यह सुविधा उपलब्ध नहीं। हाँ, आप लंबे आकार का लेख आदि लिखने के बाद उसे गूगल ड्राईव पर 'सेव' कर सकते हैं और फिर जब समय व सुविधा हो उसे लैपटॉप या सिस्टम पर बैठ सम्पादित कर सकते हैं। 
 मेरे मोबाईल पर हिन्दी श्रुतलेखन का स्क्रीनशॉट

अतः इस सुविधा का प्रयोग करने के लिए आवश्यक है कि आप अपने गूगल खाते से गूगल के 'प्ले स्टोर' पर जाकर 'गूगल हिन्दी इनपुट टूल' को अपने फोन में स्थापित (इन्स्टाल) कर लें व भाषा सेटिंग्स में जाकर इसे सक्रिय कर लें। 


अब फोन पर श्रुत लेखन करने के लिए आपको इस प्रकार करना होगा - 

  • Settings >>Language & Input >>Google Voice Typing (आप इसे सलेक्ट करें व इसके सामने बने 'स्टार' के चिह्न को क्लिक कर खोलें) तो भाषाओं की सूची दिखाई देगी।
  • इस सूची के लगभग एकदम अन्त में 'हिन्दी (भारत)' लिखा हुआ पाएँगे। इसे सलेक्ट करें और फिर सबसे नीचे लिखा हुआ Save दबा दें।
  • सेव होते ही वापिस 'गूगल वॉयस' पर आ जाएँगे। यहाँ Languages के बाद Speech output को क्लिक करें तो तीन विकल्प खुलेंगे। उसमें आपको On चुन कर उसे चिह्नित करना है। 
  • इसके पश्चात् पुनः मुख्य सूची में थोड़ा नीचे जाने पर Block offensive words लिखा दिखाई देगा, उसे भी चिह्नित रहने दें, ताकि हिन्दी के वे शब्द जिन्हें संभवतः ध्वनियाँ मान कर सर्च में रोक दिया जाता हो, वे भी प्रकट हो सकें। 
  • अब लौट कर पुनः language & Input में आइये, Google Hindi Input के पश्चात् सूची में Google voice typing का विकल्प सलेक्ट किया हुआ दीखेगा। आपका काम हो गया है। 

चाहें तो, भाषाओं की सूची से जब हिन्दी (भारत) चुन रहे थे उस समय अंग्रेजी को सलेक्ट करना हटा दें और केवल हिन्दी को ही रखें। ऐसा करने से हिन्दी श्रुतलेखन के परिणाम अधिक स्पष्ट व अच्छे/उत्तम होंगे। 


अब आप फेसबुक, ब्लॉग, ईमेल, वाट्सएप, मैसेज आदि पर कहीं भी देवनागरी श्रुतलेखन के लिए तैयार हैं। टाईप करने के लिए कीबोर्ड खुलते ही स्पेस बार को थोड़ी अधिक देर तक दबाए रखने पर या तो स्वतः माईक का चिह्न आ जाएगा अथवा एक पॉपअप विंडो खुलेगी जिसमें आपको Google voice typing को सलेक्ट करना होगा। ऐसा करते ही एक माईक प्रकट होगा जिस के साथ अब बोलें अथवा Speak Now लिखा होगा। आप एक एक शब्द को ठहर ठहर कर शुद्ध रूप में बोलते जाइए, जैसे डिक्टेशन देते हुए बोलते हैं, वे शब्द स्वतः टाईप होते जाएँगे। 

बस इस सुविधा का प्रयोग करते समय आपको विराम चिन्ह इत्यादि स्वयं हाथो से प्रयोग करने होंगे। मैंने बोलकर चिह्न लगवाना चाहा तो पाया कि यदि मैं पूर्णविराम का उच्चारण करुँ तो गूगल 'पूर्णविराम' शब्द लिखकर टाइप कर देता है। अभी इस सुविधा मेँ कुछ ओर सुझाव सुधार भविष्य मेँ होते रहेंगे ऐसी आशा है। कल भेजी श्रुतलेखन वाली मेरी सूचना व ईमेल में इस तथाय का उल्लेख पढ़कर मित्र श्रीश बेंजवाल ने इसका निदान करने का उपयोगी सुझाव यों दिया है - 

"अगर लम्बा डॉक्यूमेंट है तो विरामचिह्नों का एक जुगाड़ कर सकती हैं। पहले बोलते समय उन्हें शब्द रूप में ही आ जाने दें यानि जहाँ-जहाँ पू्र्णविराम हो 'पूर्णविराम' ही बोलें। दस्तावेज पूरा हो जाने पर वर्ड या किसी अन्य एडीटर में Find and Replace में "पूर्णविराम" को "।" से रिप्लेस कर दें।"


श्रुत लेखन की इस सुविधा का उपयोग करते समय ध्यान रखें कि आप शोर-शराबे में न बैठे हों व आसपास लोगों के बोलने आदि की आवाजें न आ रही हों। 
कल क्योंकि मैं दिन भर हीथ्रो एयरपोर्ट पर थी, लोगों के ईमेल लगातार आ रहे थे कि इसकी विधि बताऊँ तो मैंने बोलकर उत्तर देने का प्रयोग करने की सोची, यत्न भी किया किन्तु आसपास निरन्तर लोगों के बोलने-चालने की ध्वनियों के बीच शुद्ध परिणाम आ ही नहीं पा रहे थे। 


आशा है, आप लोग लोग इस निश्शुल्क सुविधा का उपयोग करते समय गूगल व उसकी टीम को धन्यवाद अवश्य देंगे और हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग नेट पर करने के लिए लोगों को प्रेरित व उत्साहित अवश्य करेंगे। 

हिन्दी-दिवस (14 सितम्बर) वाले माह में ये दोनों सुविधाएँ प्रयोग में लाना प्रारम्भ कर सही अर्थों में हिन्दी-दिवस मनाएँ। 
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Posted  वागर्थ By

साक्षरता दिवस:इस वर्ष की थीम 'साक्षरता और सतत विकास'

साक्षरता दिवस:इस वर्ष की थीम 'साक्षरता और सतत विकास'
आज अंतर्राष्‍ट्रीय साक्षरता दिवस है. यूनेस्को ने पहली बार सात नवंबर, 1965 को यह फैसला लिया था कि प्रत्येक वर्ष आठ सितंबर को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस का आयोजन किया जायेगा. उसके बाद पहली बार 1966 में इसका आयोजन किया गया. इस वर्ष भी अंतर्राष्‍ट्रीय साक्षरता दिवस पूरी दुनिया में आयोजित किया जायेगा. हालांकिमुख्य कार्यक्रम बांग्लादेश की राजधानी ढाका में आयोजित किया जायेगा. बांग्लादेश की सरकार युनेस्को के सहयोग से बालिकाओं और महिलाओं की साक्षरता और शिक्षा: सतत विकास की नींव विषय पर अंतर्राष्‍ट्रीय गोष्ठी आयोजित करेगी
इस वर्ष की थीम है- साक्षरता और सतत विकास 
इस वर्ष अंतर्राष्‍ट्रीय साक्षरता दिवस का थीम है- साक्षरता और सतत विकास. साक्षरता उन प्रमुख तत्वों में से एक हैजिसकी ज़रूरत सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है. चूँकि साक्षरता आम आदमी को सशक्त बनाती हैइसलिए इंसान अपनी आर्थिक क्षमता में बढ़ोतरी और सामाजिक विकास समेत पर्यावरण के बारे में सही फैसले ले सकता है. 

साक्षरता व्यक्तिगत सशक्तीकरण का एक माध्यम है और सामाजिक व मानव विकास का मापक है. शिक्षा हासिल करने का मौका साक्षरता पर आधारित है. साक्षरता सभी के लिए बुनियादी शिक्षा के केंद्र में हैऔर गरीबी निवारणबाल मृत्यु दर कम करनेआबादी में बढ़ोतरी को रोकनेमहिलाओं को समान अधिकार दिये जाने और शांति व लोकतंत्र के लिए आवश्यक है. 

साक्षरता एक प्रकार से जीवनपर्यंत सीखने और समझने पर आधारित कौशल है और यह सततसमृद्ध और शांतिपूर्ण समाज के निर्माण में अहम भूमिका निभाती है. साक्षरता और कौशल इंसान के जीवन को उन्नत स्तर की ओर ले जाता है. इससे अपनी जिम्मेवारियों को समझनेअपनी एवं अपने आसपास की गरीबी कम करनेकिसी विषय पर गंभीर चिंतन करनेसत्ता में भागीदारी निभानेपारिस्थितिकीजैव-विविधता के संरक्षण और आपदाओं से उपजे जोखिम को कम करने आदि के बारे में समझ पैदा होती है. 

साक्षरता एक सेतु हैजो इंसान को विपदा से निकाल कर अच्छी अवस्था की ओर ले जाती है. 
कोफी अन्नानसंयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव

Wednesday, August 27, 2014

गृहमंत्री हिन्दी में बोले तो इकॉनामिक्स टाईम्स को हजम नहीं हुआ


गृहमंत्री हिन्दी में बोले तो इकॉनामिक्स टाईम्स को हजम नहीं हुआकरीब एक महीने पहले ही जनसंख्या दिवस पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र संघ के एक कार्यक्रम में देश के गृहमंत्री राजनाथ सिहं ने हिंदी में भाषण देकर न केवल हिंदी के प्रति अपनी और सरकार की दृढ़ता को दर्शाया बल्कि हिंदी का मान भी बढ़ाया, लेकिन राजनाथ सिंह का यह साहस एक अंग्रेजी अखबार इकोनॉमिक टाइम्स को रास नहीं आया। क्या आप बिना अंग्रेजी जाने विदेश सेवा की नौकरी करने के बारे में सपना भी देख सकते हैं। अगर नहीं तो फिर भारत में विदेशी नाजनयिकों या फिर किसी रूप में काम करने वाले विदेशी लोगों से हिंदी जानने की अपेक्षा क्यों नहीं की जानी चाहिए। अगर उन्हें हिंदी नहीं आती है तो यह उनकी विशेषता नहीं कमजोरी है, जिसके लिए हमारी सरकार या हिंदी बोलने वाले नेता या मंत्री कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं?

ईटी ने अगले दिन राजनाथ की एक तरह से खिल्ली उड़ाते हुए अपने फ्रंट पेज पर ‘क्या आप यह भाषा समझ पा रहे हैं?’ हेडिंग के साथ प्रकाशित किया। अखबार ने इस तरह से न केवल एक राजनेता के मान पर आघात किया बल्कि एक राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को भी अपमानित करने का काम किया।

लेकिन 'नया इंडिया'  अखबार के संपादक (समाचार) अजित द्विवेदी ने दूसरे दिन अपनी लेखनी के माध्यम से न केवल राजनाथ और उनकी हिंदी की प्रशंसा की बल्कि उनकी हिंदी नहीं समझने वाले अखबार इकोनॉमिक टाइम्स को भी समझाने का पूरा प्रयास किया। अपने जिस तर्क के साथ इकोनॉमिक टाइम्स ने राजनाथ सिंह और हिंदी की आलोचना की है वह उसका तर्क नहीं कुतर्क ही कहा जाएगा।

इसी मसले पर नया इंडिया के संपादक (समाचार) अजित द्विवेदी ने कुछ इस प्रकार हिंदीभाषियों, पत्रकारों और मीडिया समूहों से हिंदी के प्रति दुराग्रह रखनेवालों को करारा जवाब देने का आग्रह किया है। उनका इस मसले पर प्रकाशित आलेख हम आपके समझ ज्यों का त्यों पेश कर रहे हैं...

भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को हम हिंदीभाषियों का गौरव बढ़ाया। वे न झिझके, न हिचके और मातृभाषा हिंदी के प्रति अपना लौह निश्चय प्रमाणित किया। वे संयुक्त राष्ट्र संघ की एक एजेंसी के कार्यक्रम में हिंदी में बोले। यह बात अंग्रजीदाओं को अखरी। अंग्रेजी अखबरा इकोनॉमिक टाइम्स ने पहले पेज पर प्रमुखता से हिंदी और राजनाथ सिंह का मजाक उड़ाने के अंदाज में आलोचना की। हम हिंदीभाषी पत्रकारों,   अखबारों का कर्तव्य है कि हम राजनाथ सिंह की इच्छाशक्ति और दृढ़ता का अबिनंदन करें। इसलिए सभी से आग्रह है कि राजनाथ सिंह और मोदी सरकार के हिंदी के प्रति नजरिए को ले कर अभिनंदन करें। हम हिंदीभाषियों का दायितव् है कि अंग्रेजी अखबारों उलट प्रचार के खिलाफ मुहिम चलाएं और सरकारमें हिंदी उपयोग के लिए मोदी सरकार के मनोबल को बढ़ाने में जी जान से जुटें।
राजनाथ सिंह ने मिसाल कायम की। उन्होंने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ के एक कार्यक्रम में धाराप्रवाह हिंदी में भाषण दिया। इस बात का झूठा लिहाज नहीं बरता कि यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड की भारत प्रतिनिधि फ्रेडरिका मिजर और उनके डिप्टी डेविड मैकलॉलिन मंच पर बैठे हैं और उनको हिंदी समझ में नहीं आएगी या यूनेस्को के प्रतिनिधि और दूसरे विदेशी मेहमान बैठे हैं, भला उनके सामने हिंदी में क्या भाषण देना!

वे चाहते तो अंग्रेजी में भाषण दे सकते थे। दिल्ली में सरकार बनने से पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते वे अमेरिका गए थे, तब उन्होंने अंग्रेजी में वहां की मीडिया को संबोधित किया था। लेकिन चूंकि उनकी सरकार ने तय किया है कि हिंदी को बढ़ावा देना है और खुद उनके मंत्रालय ने हिंदी में कामकाज और सोशल मीडिया में हिंदी को बढ़ावा देने का निर्देश जारी किया था, इसलिए उन्होंने बताया कि वे दिल्ली में झूठे लिहाजों में नहीं उलझेंगे और मातृभाषा में ही बोलेंगे। भारत का गृह मंत्री अपनी भाषा में बोलेगा वह दूसरों की चिंता करते हुए उनकी चिंता में नहीं बोलेगा। राजनाथसिंह ने वही किया जो चीन, रूस और स्पेन, जर्मनी आदि के मंत्री और नेता करते हैं।

यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड के भारत चैप्टर और भारत के महापंजीयक की ओर से जनसंख्या दिवस के मौके पर आयोजित इस कार्यक्रम में राजनाथ सिंह ने प्रतीकात्मक हिंदी प्रेम नहीं दिखाया, बल्कि स्वाभाविक प्रतिबद्धता दिखाई। भारत के कई प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा की बैठकों में हिंदी में भाषण देते रहे हैं। लेकिन वह एक प्रतीकात्मक भंगिमा होती है। हिंदी में एक भाषण देने के बाद सारे कामकाज अंग्रेजी में ही होते रहते हैं।

नरेंद्र मोदी की सरकार को यह प्रतीकात्मकता तोड़नी है। हिंदी को बोलचाल की भाषा से निकाल कर राजकाज की भाषा बनानी है और यह तभी होगा जब राजनाथ सिंह जैसी प्रतिबद्धता होगी, विश्व मंच पर हिंदी में भाषण करने का हौसला होगा और सहज स्वाभाविक प्रवृत्ति होगी। उनका भाषण स्वतःस्फूर्त था, इसलिए पहले से उसकी अंग्रेजी प्रति बना कर श्रोताओं को नहीं दी जा सकती थी। वे चाहते तो उसी तरह अपने भाषण का अंग्रेजी अनुवाद करा सकते थे, जैसे भारत के महापंजीयक सी चंद्रमौली ने अपने हिंदी भाषण का खुद अंग्रेजी अनुवाद किया। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

उन्होंने बिल्कुल सहज अंदाज में हिंदी में भाषण दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ के पदाधिकारी और दूसरे विदेशी मेहमान उनके अंदाज से हैरान हुए होंगे। क्योंकि उनको इसकी आदत नहीं है। इससे पहले भारत के हुक्मरान अपनी भाषा से ज्यादा उन विदेशी मेहमानों की भाषा का लिहाज किया करते थे और वही भाषा बोलते थे, जो उन्हें समझ में आती थी।

दरअसल जब आप भाषा के मामले में विदेशी का लिहाज करेंगे तो उस भाषा में कही गई बातें भी उनके मनमाफिक होंगी। ऐसा लिहाज दुनिया के किसी भी देश के नेता नहीं करते हैं। मैंडेरिन नहीं समझने वाले विदेशी मेहमानों के लिए कोई भी चीनी नेता अंग्रेजी में भाषण नहीं देने लगता है। हालांकि चीन का नया नेतृत्व अच्छी अंग्रेजी बोलने और समझने वालों का है, लेकिन वह अपनी बात अपनी जुबान में कहता है और जिसको जरूरत होती है, वह उसे समझता है।

राजनाथ सिंह के इस भाषण के बाद यह एक नजीर बन जाएगी। विदेशी मेहमान उनकी अगली सभाओं में हिंदी समझने की तैयारी करके आएंगे। लेकिन राजनाथ सिंह की यह प्रतिबद्धता दूसरे सभी नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों में दिखनी चाहिए। उनके राज्यमंत्री किरण रिजीजू ने उसी मंच से अंग्रेजी में भाषण दिया जबकि हिंदी में कामकाज का निर्देश जारी होने के बाद आगे बढ़ कर उन्होंने इसका बचाव किया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दुनिया भर के नेताओं से हिंदी में बात कर रहे हैं। लेकिन पीएसएलवी के लांच के मौके पर वे श्रीहरिकोटा गए तो वहां उन्होंने वैज्ञानिकों से पहले अंग्रेजी में बात की। ब्रिक्स के मंच पर भी उन्होंने शुरुआती संबोधन अंग्रेजी में किया। लेकिन अगर मोदी की सरकार यह सोच कर आई है कि जिस हिंदी को हथियार बना कर आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी और जिसे एक साजिश के तहत दोयम दर्जे की भाषा बना दिया गया और साजिश के तहत ही जिसे लगातार कमजोर करते जाने की कोशिश हो रही है, उसे उसका सम्मान दिलाना है तो रत्ती भर भी हिचक या लिहाज की जरूरत नहीं है।
(साभार : नया इंडिया व http://samachar4media.com/ से )